रावण -वध
आईए देखते हैं रावण वध के विषय में शास्त्र क्या कहते हैं।
वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के 92 सर्ग मे इंद्रजीत वध के पश्चात सुपार्श्व कहते हैं-:
राजन् आज चैत्र माह की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी है अतः आज ही युद्ध की तैयारी करके कल अमावस्या के दिन सेना के साथ विजय के लिए प्रस्थान करो (श्लोक संख्या 66)
आगे वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के 102 सर्ग मे महर्षि वाल्मीकि लिखते है
कि जब राम और रावण का युद्ध हो रहा था उस समय अमावस्या तिथि थी बुध ग्रह रोहिणी नक्षत्र में था तथा मंगल ग्रह विशाखा नक्षत्र में था।
वाल्मीकि रामायण ही नहीं स्कंद पुराण और पद्म पुराण भी यही कहते हैं और बड़ी सटीकता से कहते हैं।
पद्म पुराण पाताल खंड अध्याय 36 में राम के जीवन के प्रत्येक और हर तीर्थ के बारे में विस्तार से बताया गया है। उस अध्याय के प्रासंगिक छंद हैं:
संस्कारो रावणमतीनाममावस्यादिनेोभवत् ादी
वैशाखादितिथौ राम उवास रणभूमिषु।
अभिषिक्तो द्वितीयांस लङकाराज्ये विभीषणः ित
सीताशुद्धिस्तृतीयायां देवेभ्यो वरलम्भणम्।
हती चिरेण लेश्केशं लक्ष्मणाग्रज एव सः ङ
गृहीता जानकीं पुण्यं दुःखितां राक्षससेन तु।
आये परया प्रीत्या जानकीं स न्यवंत ीत
वैशाखस्य चतुर्थ्यं तु रामः पुष्पकमाश्रितः।
विहायसा निवृत्तस्ते भूयोऽयोध्यां पुरीं ृत्त
पूर्णे चतुर्दशे वर्षे पञ्चम्यं माधवस्यतु।
भरद्वाजाश्रमे रामः सत्सः समुपाविशत् ्र
नन्दिग्रामे तुश्त्यं स भरतेन समाग्।
सप्तम्याभिषिक्तोऽसावयोध्यांस रघुवरहः भि
दशैकारमासांस्तु चतुर्दशाहिनी मैथिली।
उवास रामरहिता रावणिस निवेशन िता
द्विचत्वारिंशक वर्षे रामो राज्यमकारायत्।
सीक्षितश्च त्रयस्त्रिंशद्वत्सराश्च तदान्भवं स्त्र
स चतुर्दशन्ताते एंटरिश च पुरीं प्रभुः।
अयोध्याँ मुदितो रामो हती रावणमहवे द
भद्रातृभि: सहितस्तत्र रामो राज्यमर्थकरोत्।
रावण और अन्य लोगों के अंतिम संस्कार अमावस्या के दिन हुए। राम वैशाख के पहले दिन रणभूमि में रुके थे। वैशाख के दूसरे दिन विभीषण ने लंका के राजा के रूप मे अभिषेक किया था । तीसरे दिन सीता का शुद्धिकरण हुआ और देवताओं से वरदान प्राप्त किया।लंबे समय के बाद, लंका के स्वामी की हत्या कर दी और उन्होंने, लक्ष्मण के बड़े भाई, ने शुभ जानकी को स्वीकार किया, जो राक्षस (रावण) से पीड़ित था और उसे (उसके साथ) बड़े प्यार से ले गया, वह वापस लौट आया। वैशाख के चौथे दिन राम पुष्पक विमान में सवार हुए और आकाश से होते हुए पुन: अयोध्या आए। जब चौदहवाँ वर्ष पूरा हो गया , तब राम अपने समूह के साथ वैशाख के पाँचवें दिन भारद्वाज के आश्रम में रुके थे। छठे दिन वे नंदीग्राम में भरत से मिले। सातवें पर अयोध्या में रघु के इस वंशज का (राजा के रूप में) का अभिषेक हुआ।
इन सब प्रमाणो से यही सिद्ध होता है की रावण का वध व मृत्यु चैत्र मास की अमावस्या को हुआ था।
अब प्रश्न यह उठता है कि दशहरे के दिन ऐसा क्या हुआ था जो इसका नाम विजयदशमी पड़ा
श्रीमद् देवी भागवत व अन्य देवी ग्रन्थो के अनुसार आश्विन मास में 9 दिनों तक दुर्गा जी और महिषासुर में और युद्ध हुआ और दशमी तिथि को महिषासुर का वध हुआ इसलिए इसे विजयादशमी कहते हैं ।
अब यह प्रश्न उठता है की जब असल में रावण का वध इस दिन हुआ ही नहीं था तो रावण आदि जलाने की परंपरा कैसे चालू हुई?
वस्तुत तुलसीदास ने नवरात्र मे रामचरितमानस के नवाह्णपरायण व रामलीला के मंचन का प्रचार प्रसार किया था जिस कारण दसवे दिन रावण वध व दहन की परंपरा चालू हुई।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें