मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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शनिवार, 16 दिसंबर 2023

Bikhare Panne : Ek thi Nirupama!! {9C}

 रिसोर्ट मे विवाह । नई सामाजिक बीमारी

कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियाँ होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है!

अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादियाँ होने लगी हैं!

शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है।

आगंतुक और मेहमान सीधे वहीं आते हैं और वहीं से विदा हो जाते हैं।

जिसके पास चार पहिया वाहन है वही जा पाएगा,

दोपहिया वाहन वाले नहीं जा पाएंगे। 

बुलाने वाला भी यही स्टेटस चाहता है।

और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है। 

दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी हैं,

किसको सिर्फ लेडीज संगीत में बुलाना है !

किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है !

किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है !

और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है!!

इस आमंत्रण में अपनापन की भावना खत्म हो चुकी है!

सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है!!

महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं!

मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं

मेहंदी में सभी को हरी ड्रेस पहनना अनिवार्य है जो नहीं पहनता है उसे हीन भावना से देखा जाता है लोअर केटेगरी का मानते हैं

फिर हल्दी की रस्म आती है 

इसमें भी सभी को पीला कुर्ता पाजामा पहनना अति आवश्यक है इसमें भी वही समस्या है जो नहीं पहनता है उसकी इज्जत कम होती है ।

इसके बाद वर निकासी होती है 

इसमें अक्सर देखा जाता है जो पंडित को दक्षिणा देने में 1 घंटे डिस्कशन करते हैं is 

वह बारात प्रोसेशन में 50 हजार से लाखों रूपाईआ नाच गाने पर उड़ा देते हैं ।

इसके बाद रिसेप्शन स्टार्ट होता है 

स्टेज पर वरमाला होती है पहले लड़की और लड़के वाले मिलकर हंसी मजाक करके वरमाला करवाते थे,,,,,, आजकल स्टेज पर  धुंए की धूनी छोड़ देते हैं 

 दूल्हा दुल्हन को अकेले छोड़ दिया जाता है 

बाकी सब को दूर भगा दिया जाता है 

और फिल्मी स्टाइल में स्लो मोशन में वह एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं 

साथ ही नकली आतिशबाजी भी होती है ।

स्टेज के पास एक स्क्रीन लगा रहता है 

उसमें प्रीवेडिंग सूट की वीडियो चलती रहती है 

जिसमें यह बताया जाता है की शादी से पहले ही लड़की लड़के से मिल चुकी है और कितने अंग प्रदर्शन वाले कपड़े पहन कर 

कहीं चट्टान पर 

कहीं बगीचे में 

कहीं कुएं पर 

कहीं बावड़ी में 

कहीं श्मशान में कहीं नकली फूलों के बीच अपने परिवार की इज्जत को नीलाम कर के आ गई है ।

प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं 

जिसके कारण दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है!!

क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं!

मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका है!

रस्म अदायगी पर मोबाइलों से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं !

सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं!

और यही अमीरीयत का दंभ उनके व्यवहार से भी झलकता है !

कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं

परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता !

वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने अपने कमरो में ही गुजार देते हैं!!

हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है। 

मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है 

आपका पैसा है ,आपने कमाया है,

आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं,

पर किसी दूसरे की देखा देखी नहीं!

कर्ज लेकर अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा!

जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा

4 - 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है !

दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए!

अपना दांपत्य जीवन सर उठा के, स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए !

यहाँ मन कुछ अतीत के अनुभव लिख रही हूँ --

सबसे छोटी बुआ गंगा के बड़े बेटे ने बताया ---

मेरी शादी ब्राम्हण सभा जेल रोड मे हुई थी ,शादी के लिए स्पेशल मेम्बर शिप ली थी ,हमारी मेम्बर शिप वैदिकाश्रम रामबाग  मे भी है तब पंगत मे जिमाया जाता था लडके वालो के लिए सुनमुख पंगत का थाट अलग से रहता था जिसमें वर पक्ष के लोगो को पंगत मे विषेश आदर के साथ एक निश्चित वरिष्ठता क्रम से बैठाया जाता था। 

छोटे भाई भरत के विचार --मेरे ख़्याल से अपने परिवार में काफ़ी विवाह ब्राह्मण सभा जेल रोड पर हुए है , हमारा घर सामने ही था । पहले के विवाह की बात ही अलग थी काफ़ी दिन का प्रोग्राम , नाश्ते के लिए लडू चिवड़ा का तैयार सामान , बहुत प्रेम और उत्साह , शहनाई वादन वो भी लाइव , बहुत से शहनाई वादक और तबले वाले पूरी शादी में सम्मानित रूप से उपस्थित रहते थे अब वो व्यवसाय ही समाप्त हो गया एक भी शहनाई वादक दिखने को नहीं मिलेगा ।

मेरे स्वयं के विचार --

वाक़ई में क्या शादियाँ हुआ करतीं थीं । लाडु चिवड़ा नाश्ते में और बड़ी बड़ी भट्टियों में बड़े बड़े बर्तनों में खाना पकाते अय्या ( मेरे ख़याल से अय्यर ही होते होंगे ) अय्या अपभ्रंश होगा । बड़ा सा टेंट , बच्चों की धमाचौकड़ी और प्रत्येक पत्तल के आगे रँगोली, आलू में लगी उदबत्ती, और दक्षिणा का पैसा भी प्रत्येक पत्तल के सामने होता था । भोजन के अंत में वीड़ा खाने का मज़ा ही कुछ और था । शायद कइयों  हो। 

रामकृष्ण पेरलेकर बड़े चाचा के बेटे दीपक के विचार ---

शैला की शादी मे राजेश्वर अय्या ने बुंदी के लड्डु बनाए थे, बेसन व शक्कर का अंदाज चुक गया था सो दुगने तादाद में लड्डू  बन गये शादी के बाद एक कोठी भर लड्डू बच गये तो उनको रिश्तेदारो के यहा बाटा गया फिर भी १५किलो के तिन डब्बे लड्डु बच गये इसी दोरान मुझे कालेज के एजुकेशन टुर पर उदयपुर जाना हुआ तब भाऊ ने सुझाव दिया की लड्डु ट्रेन  मे साथ ले जाओ ,मेरे कहने पर दोस्त घर से डिब्बे ट्रेन  पर ले गये व आनंद उठाया( 

अशोक दादा की शादी की बारात जब बुरहानपुर  से लौट रही थी लड्डु के डिब्बे बस की छत पर रखे थे रास्ते मे बुंदा बांदी होने पर डिब्बे निचे उतारे गये थे

अलका मीना जयश्री  की शादी तक शादी के रसोई के स्टोर रुम का कब्जा दुर्गा आत्या के पास ही रहता था वो अय्या लोगो से मन मुताबिक खाना बनवाती थी

Narsingh ayya aur Rameshwar ayya us samay Maharshtrian logo ke yaha axar khana banate the.( Dilip )

मेरे विचार ---कितना अच्छा लग रहा है पढ़ कर ! स्वर्णिम दिन ! आँखों के सामने चलचित्र की तरह घूम जाते हैं ! हमारे सारे प्रिय अति प्रिय आत्मीय लोग की स्मृतियाँ मन को आह्लादित कर देती हैं । शादियों के संदर्भ में दुर्गा आत्या की उपस्थिति , निर्देशन अनिवार्य हुआ करता था । 

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