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रविवार, 17 दिसंबर 2023

Dharm & Darshan !! Bhavishyavani !!

 कॉमन  सेंस....



किसी जमाने में पं. विष्णुदत्त शास्त्री ज्योतिष के प्रकांड विद्वान हुआ करते थे।


उनकी पहली संतान का जन्म होने वाला था, पंडितजी ने दाई से कह रखा था कि जैसे ही बालक का जन्म हो, एक नींबू प्रसूति कक्ष से बाहर लुढ़का देना।


बालक का जन्म हुआ... लेकिन बालक रोया नहीं। तो दाई ने हल्की सी चपत उसके तलवों में दी, पीठ को मला और अंततः बालक रोने लगा।


दाई ने नींबू बाहर लुढ़का दिया और बच्चे की नाल आदि काटने की प्रक्रिया में व्यस्त हो गई।


उधर पंडितजी ने गणना की तो पाया कि बालक कि कुंडली में "पितृहंता योग" है, अर्थात उनके ही पुत्र के हाथों उनकी ही मृत्यु का योग। पंडितजी शोक में डूब गए और पुत्र को इस लांक्षन से बचाने के लिए बिना कुछ बताए घर छोड़कर 

चले गए।


सोलह साल बीते....


बालक अपने पिता के विषय में पूछता, लेकिन बेचारी पंडिताइन उसके जन्म की घटना के विषय में सब कुछ बताकर चुप हो जाती। क्योंकि उसे इससे ज्यादा कुछ नहीं पता था।


अस्तु !! पंडितजी का बेटा अपने पिता के पग चिन्हों पर चलते हुये प्रकांड ज्योतिषी बना..!!


उसी बरस राज्य में वर्षा नहीं हुई...


राजा ने डौंडी पिटवाई कि जो भी वर्षा के विषय में सही भविष्यवाणी करेगा उसे मुंह मांगा इनाम मिलेगा। लेकिन गलत साबित हुई तो उसे मृत्युदंड मिलेगा !


बालक ने गणना की और निकल पड़ा।


लेकिन जब वह राजदरबार में पहुंचा तो देखा एक वृद्ध ज्योतिषी पहले ही आसन जमाये बैठे हैं।


"राजन आज संध्याकाल में ठीक चार बजे वर्षा होगी"

वृद्ध ज्योतिषी ने कहा। 


बालक ने अपनी गणना से मिलान किया,, 

और आगे आकर बोला,,

"महाराज मैं भी कुछ कहना चाहूंगा" 


राजा ने अनुमति दे दी,,

"राजन वर्षा आज ही होगी,, 

लेकिन चार बजे नहीं,, 

बल्कि चार बजने के कुछ पलों के बाद होगी" 


वृद्ध ज्योतिषी का मुँह अपमान से लाल हो गया,, 


इस पर वृद्ध ज्योतिषी ने दूसरी भविष्यवाणी भी कर डाली,,

"महाराज वर्षा के साथ ओले भी गिरेंगे,, 

और ओले पचास ग्राम के होंगे" 


पर बालक ने फिर गणना की,,

"महाराज ओले गिरेंगे,, 

लेकिन कोई भी ओला पैंतालीस से 

अडतालीस ग्राम से ज्यादा का नहीं 

होगा" 


अब बात ठन चुकी थी,, 

लोग बड़ी उत्सुकता से शाम का 

इंतजार करने लगे !!


साढ़े तीन तक आसमान पर बादल का एक कतरा भी नहीं था,,लेकिन अगले बीस मिनट में क्षितिज से मानो बादलों की सेना उमड़ पड़ी, अंधेरा सा छा गया।


बिजली कड़कने लगी... 

लेकिन चार बजने पर भी पानी की एक बूंद नहीं गिरी। लेकिन जैसे ही चार बजकर दो मिनट हुए,, 

मूसलाधार वर्षा होने लगी।


वृद्ध ज्योतिषी ने सिर झुका लिया,,


आधे घण्टे की बारिश के बाद 

ओले गिरने शुरू हुए, राजा ने ओले मंगवाकर तुलवाये,, कोई भी ओला पचास ग्राम का नहीं निकला।


शर्त के अनुसार वृद्ध ज्योतिषी को 

सैनिकों ने गिरफ्तार कर लिया,, 


और राजा ने बालक से इनाम मांगने को कहा !


"महाराज,, इन्हें छोड़ दिया जाये" 

बालक ने कहा ! 


राजा के संकेत पर वृद्ध ज्योतिषी को 

मुक्त कर दिया गया !


"बजाय धन संपत्ति मांगने के तुम इस 

अपरिचित वृद्ध को क्यों मुक्त करवा रहे हो"


बालक ने सिर झुका लिया,,


और कुछ क्षणों बाद सिर उठाया,, 

तो उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे,, 


"क्योंकि ये सोलह साल पहले मुझे 

छोड़कर गये मेरे पिता श्री विष्णुदत्त शास्त्री हैं" 


वृद्ध ज्योतिषी चौंक पड़ा,,


दोनों महल के बाहर चुपचाप आये,, 

लेकिन अंततः पिता का वात्सल्य 

छलक पड़ा,,


और फफक कर रोते हुए बालक को 

गले लगा लिया,,


"आखिर तुझे कैसे पता लगा,, 

कि मैं ही तेरा पिता विष्णुदत्त हूँ" 


"क्योंकि आप आज भी गणना तो सही करते हैं,,


लेकिन कॉमन सेंस का प्रयोग नहीं करते" 


बालक ने आंसुओं के मध्य मुस्कुराते हुए कहा,, 

"मतलब" ??  पिता हैरान था !


"वर्षा का योग चार बजे का ही था,, 

लेकिन वर्षा की बूंदों को पृथ्वी की 

सतह तक आने में कुछ समय लगेगा 

कि नहीं ???" 


"ओले पचास ग्राम के ही बने थे,, 

लेकिन धरती तक आते-आते कुछ 

पिघलेंगे कि नहीं ???" 


"और......" 

"दाई माँ बालक को जन्म लेते ही 

नींबू थोड़े फेंक देगी,, 


उसे भी कुछ समय बालक को 

संभालने में लगेगा कि नहीं ???


और उस समय में ग्रहसंयोग 

बदल भी तो सकते हैं..??


और... “पितृहंता योग”

“पितृरक्षक योग” में भी 

तो बदल सकता है न ???


पंडितजी के समक्ष जीवन भर की 

त्रुटियों की श्रंखला जीवित हो उठी,, 


और वह समझ गए,, 

कि केवल दो शब्दों के गुण के 

अभाव के कारण वह जीवन भर 

पीड़ित रहे और वह था- Common Sense 



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