अगर मैं आपसे पूछूँ कि अगर आपको किसी टेप से पृथ्वी की परिधि नापनी हो, तो आपको कितने लम्बे टेप की जरुरत पड़ेगी? रुकिए, अगर आप “हजारों किलोमीटर” में उत्तर तलाश रहे हों, तो आप गलत हैं। ये काम आप घर बैठे घरेलू इंची-टेप से भी कर सकते हैं।
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आज से लगभग 2300 बरस पहले यूनान के अलेक्जेंड्रिया में एरिटोस्थिनिस नामक एक व्यक्ति हुआ था। एक सुबह चाय पीते हुए उसने एक किताब में यह पढ़ा कि वहां से कुछ दूर स्थित साईनी नामक शहर में 21 जून को दोपहर 12 बजे किसी भी उर्ध्वाधर चीज की छाया नहीं बनती।
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यह खबर कितने लोगों के सामने आई होगी और दरकिनार कर दी गयी होगी, पर एरिटोस्थिनिस एक वैज्ञानिक था। उसने आने वाले 21 जून को 12 बजे अपने शहर अलेक्जेंड्रिया में एक सीधी लकड़ी जमीन पर गाड़ कर देखा कि छाया बन रही है। अब एक ही समय में पृथ्वी के एक हिस्से में किसी वस्तु की छाया बन रही है, और दूसरे हिस्से में नहीं। क्या मतलब है इसका?
. इसका पहला निहितार्थ तो यह है कि पृथ्वी गोल है! एक फ्लैट सरफेस पर ऐसा होना संभव नहीं है।
.लगभग 5000 वर्ष से पूर्व और पश्चिम की सभ्यताएं जानती थी कि एक गोले (वृत्त) में 360 डिग्री होते हैं। अब अगर आपको लकड़ी और उसकी छाया की लम्बाई ज्ञात है, जो कि जाहिर तौर पर आप इंची-टेप से नाप सकते हैं, तो बेसिक त्रिकोणमिति के गणित से Tangent फंक्शन के सहारे आप लकड़ी को रिफरेन्स पॉइंट मान कर आसमान में सूर्य की स्थिति का कोण ज्ञात कर सकते हैं, जो कि इस केस में लगभग 7.2 डिग्री था।
अगला काम एरिटोस्थिनिस ने अपने नाविक मित्रों के सहारे अलेक्जेंड्रिया से सायनी की दूरी पता करवाने का किया, जो कि लगभग 800 किलोमीटर निकली। अब चूँकि सायनी में सूर्य बिलकुल सर के ऊपर था, इसलिए वहां मौजूद लकड़ी का सूर्य से कोण शून्य डिग्री हुआ और 800 किमी दूर अलेक्जेंड्रिया में जैसा हम चर्चा कर चुके हैं – 7.2 डिग्री !!!
.अब वृत्त की कुल परिधि यानी 360 को 7.2 से भाग देने से हमारे पास 50 यूनिट आ जाती हैं। जिसमें एक यूनिट (7.2 डिग्री) 800 किमी लम्बी है तो 50 यूनिट कितनी लम्बी हुईं?
उत्तर है – 50 × 800 = 40000 किमी – जो कि हमारी पृथ्वी की वास्तविक परिधि (40075 किमी) के बेहद करीब है।
.अर्थात, इस तरह आज से 2300 साल पहले एक हाडमांस के व्यक्ति ने घर बैठे, सिर्फ एक लकड़ी और दिमाग के सहारे, पृथ्वी की गोलाई नाप दी!!
.यह एक छोटा सा उदाहरण है, उन लोगों के लिए, जो अक्सर विस्मित होकर पूछते हैं कि – हमारे पूर्वज ने बिना किसी आधुनिक मशीन के हजार साल पहले सूर्यग्रहण गणना कैसे की? ये काम कैसे किया? हमारी किताब में विज्ञान का थ्योरी है, इत्यादि फित्यादी! ऐसे सभी लोगों को जानना चाहिए कि आप सिर्फ एक लकड़ी, परछाई और गणित के सहारे घर बैठे-बैठे सूर्य, चाँद, ग्रहों इत्यादि की माप, दूरी, परिधि इत्यादि न जाने क्या-क्या ज्ञात कर सकते हैं।
देखा जाए तो सिर्फ जटिल गणनाओं अथवा इन्द्रियातीत विषयों (आणविक संसार) के अध्ययन मात्र के लिए मशीनें लगती हैं। संसार के प्रारंभ से लेकर वर्तमान तक - खगोलीय गणनाओं से लेकर ब्रह्माण्ड के प्रसार, एवोल्यूशन, बिगबैंग, टेक्टोनिक प्लेट्स की खोज अथवा सापेक्षता के सिद्धांत तक – न जाने कितनी अनगिनत खोजें सिर्फ दैनिक अवलोकनों, कॉमन-सेन्स और सामान्य गणित के बूते ही की गयी हैं, किसी अत्याधुनिक मशीन से नहीं।
.मनुष्य प्रज्ञावान हो, विवेक ही उसका साधन हो और सत्य की खोज का संकल्प हो, तो एक लकड़ी परछाई और दिमाग के बूते ही ब्रह्माण्ड के रहस्यों की परतें उधेड सकता है।
.All it takes is a bit of scientific temperament…!!!
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