मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

मेरी फ़ोटो
I love writing,and want people to read me ! I some times share good posts for readers.

शनिवार, 6 अप्रैल 2024

Limited Edition !! {9}

 हमारा भी एक जमाना था...

खुद ही स्कूल जाना पड़ता था ,

क्योंकि साइकिल बस आदि से भेजने की 

रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद 

कुछ अच्छा बुरा होगा ;

ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे... उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था,

 पास/नापास यही हमको मालूम था... 

% से हमारा कभी संबंध ही नहीं था...

ट्यूशन लगाई है ऐसा बताने में भी 

शर्म आती थी क्योंकि हमको 

ढपोर शंख समझा जा सकता था...


किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, 

मोर पंख रखकर हम होशियार हो सकते हैं ,

ऐसी हमारी धारणाएं थी...

 कपड़े की थैली में...बस्तों में..

और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में...

किताब कॉपियां बेहतरीन तरीके से 

जमा कर रखने में हमें महारत हासिल थी.. .. 

 हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर रद्दी पेपर की जिल्द चढ़ाते थे और यह काम...

एक वार्षिक उत्सव या त्योहार 

की तरह होता था..... 

  साल खत्म होने के बाद किताबें बेचना 

और अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी प्रकार की शर्म नहीं होती थी..

क्योंकि तब हर साल न किताब बदलती थी 

और न ही पाठ्यक्रम...

 हमारे माताजी पिताजी को हमारी 

पढ़ाई का बोझ है..

ऐसा कभी  लगा ही नहीं....  

  किसी दोस्त के साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली में घूमना हमारी दिनचर्या थी....

इस तरह हम ना जाने कितना घूमे होंगे....

स्कूल में सर के हाथ से मार खाना, पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना, 

और कान लाल होने तक मरोड़े जाते वक्त हमारा ईगो कभी आड़े नहीं आता था.... 

सही बोले तो ईगो क्या होता है 

यह हमें मालूम ही नहीं था...

घर और स्कूल में मार खाना भी हमारे दैनंदिन जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया थी.....

मारने वाला और मार खाने वाला दोनों ही खुश रहते थे... मार खाने वाला इसलिए 

क्योंकि कल से आज कम पिटे हैं 

और मारने वाला है इसलिए कि 

आज फिर हाथ धो लिए...

बिना चप्पल जूते के और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पटियों से कहीं पर भी 

नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या सुख था 

वह हमको ही पता है... 

 हमने पॉकेट मनी कभी भी मांगी ही नहीं और पिताजी ने भी दी नहीं.....

इसलिए हमारी आवश्यकता भी छोटी छोटी सी ही थीं....साल में कभी-कभार 

एक हाथ बार सेव मिक्सचर मुरमुरे का 

भेल खा लिया तो बहुत होता था......

उसमें भी हम बहुत खुश हो लेते थे.....

छोटी मोटी जरूरतें तो घर में ही कोई भी पूरी कर देता था क्योंकि परिवार संयुक्त होते थे ..

दिवाली में लोंगी पटाखों की लड़ को 

छुट्टा करके एक एक पटाखा फोड़ते रहने में हमको कभी अपमान नहीं लगा...

 हम....हमारे मां बाप को कभी बता ही नहीं पाए कि हम आपको कितना प्रेम करते हैं 

क्योंकि हमको आई लव यू 

कहना ही नहीं आता था...

आज हम दुनिया के असंख्य धक्के और 

टाॅन्ट खाते हुए......और संघर्ष करती हुई 

दुनिया का एक हिस्सा है..

किसी को जो चाहिए था वह मिला और 

किसी को कुछ मिला कि नहीं..

क्या पता.. 

स्कूल की डबल ट्रिपल सीट पर घूमने वाले हम और स्कूल के बाहर उस हाफ पेंट मैं रहकर गोली टाॅफी बेचने वाले की  दुकान पर दोस्तों द्वारा खिलाए पिलाए जाने की कृपा हमें याद है.....

वह दोस्त कहां खो गए 

वह बेर वाली कहां खो गई....

वह चूरन बेचने वाली कहां खो गई...

पता नहीं.. 

  हम दुनिया में कहीं भी रहे पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में बड़े हुए हैं 

हमारा वास्तविकता से सामना 

वास्तव में ही हुआ है...

 कपड़ों में सिलवटें ना पड़ने देना और रिश्तों में औपचारिकता का पालन करना 

हमें जमा ही नहीं......

सुबह का खाना और रात का खाना 

इसके सिवा टिफिन क्या था ,

हमें मालूम ही नहीं...

हम अपने नसीब को दोष नहीं देते....

जो जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं 

और यही सोचते हैं....

और यही सोच हमें जीने में मदद कर रही है.. ni

जो जीवन हमने जिया...

उसकी वर्तमान से तुलना 

हो ही नहीं सकती ,,,,,,,,

हम अच्छे थे या बुरे थे ,

नहीं मालूम !

पर हमारा भी एक जमाना था....


*"हमारा बचपन"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

A famous story !!

  The love triangle and murder of passion that rocked Bombay of the sixties! It was one of the most sensational murder cases in the history ...

Grandma Stories Detective Dora},Dharm & Darshan,Today's Tip !!