*"संसार में दो प्रकार के लोग दिखाई देते हैं। एक सुलझे हुए, और दूसरे उलझे हुए।"*
*"जो लोग सुलझे हुए दिखाई देते हैं, वे कोई जन्म से सुलझे हुए नहीं होते। वे भी अपने अंदर वर्षों तक उलझते रहते हैं। समस्याओं से संघर्ष करते रहते हैं। प्रश्नों के समाधान ढूंढते रहते हैं।" "यदि उनमें पूर्वजन्मों के उत्तम संस्कार हों, तो वे पूर्वजन्म के उत्तम संस्कारों के कारण कुछ प्रश्नों का समाधान अपने अंदर से स्वयं निकाल लेते हैं। परंतु सारी समस्याओं का समाधान वे भी नहीं ढूंढ पाते।"*
कुछ समस्याओं का समाधान वे अपने माता-पिता और गुरुजनों से प्राप्त करते हैं। कुछ नई नई बातें उनके पुरुषार्थ के अनुसार ईश्वर की ओर से भी उनको अंदर से प्राप्त होती रहती हैं। *"यदि उनके पूर्वजन्मों के संस्कार अच्छे हों, उनमें ईमानदारी सच्चाई सत्यग्राहिता सभ्यता नम्रता और जिज्ञासा भाव हो, तो वे अपने माता-पिता तथा गुरुजनों से बहुत शीघ्र एवं बहुत सा लाभ प्राप्त कर लेते हैं। तथा वे इन्हीं गुणों के कारण ईश्वर से भी लाभ प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार से वे वर्षों तक अपने प्रश्नों को अंदर ही अंदर सुलझाते रहते हैं। तब जाकर वे संसार के लोगों को सुलझे हुए व्यक्ति दिखाई देते हैं।"*
*"परंतु जो लोग पूर्व जन्म के उत्तम संस्कारवान नहीं होते और वर्तमान में भी माता-पिता एवं गुरुजनों से तथा ईश्वर से कोई लाभ नहीं उठाते, जिनमें सत्यग्राहिता जिज्ञासा आदि गुण नहीं होते, हठी दुराग्रही लोभी क्रोधी इत्यादि खराब संस्कारों वाले होते हैं, वे स्वयं तो जीवन भर उलझे ही रहते हैं, साथ ही साथ दूसरों को भी उलझाते रहते हैं। ऐसे लोग स्वयं तो दुखी रहते ही हैं, साथ में दूसरों को भी दुख देते रहते हैं।"*
*"इसलिए यदि आपके भी पूर्व जन्मों के संस्कार अच्छे हों, आप में सेवा सभ्यता नम्रता जिज्ञासा सत्यग्राहिता आदि गुण हों, तो आप भी ऊपर बताई विधि से अपने प्रश्नों को सुलझाते रहें। कुछ लंबे समय के बाद आप स्वयं भी एक सुलझे हुए व्यक्ति कहलाएंगे। स्वयं सुखी रहेंगे और दूसरों को भी सुख देंगे। और तभी आपका जीवन सफल होगा।"*
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