मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

मेरी फ़ोटो
I love writing,and want people to read me ! I some times share good posts for readers.

शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

Dharm & Darshan !! Krishna Arjun !!

 कृष्ण और बलराम दो भाई है। सारे जीवन परछाई की तरह साथ रहे लेकिन पांडव- कौरवों में क्या चल रहा है ये बलराम कभी नहीं समझ पाए। उन्होंने दुर्योधन को गदा सिखाई फिर अपनी बहन सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से करना चाहा। बाद में अपनी बेटी का विवाह दुर्योधन के बेटे से करना चाहा। 


कृष्ण हर बार कैसे न कैसे वीटो लगाते रहे। जब तय हो गया कि पांडव और कौरवों में युद्ध होगा तब बलराम तीर्थ करने चले गए और तब लौटे जब भीमसेन दुर्योधन की जांघ तोड़ रहा था इस पर क्रोधित हो गए। 


कहते हैं जो कुछ संसार में है वो सब कुछ महाभारत में है। 

महाभारत के बलराम जी का चरित्र आपको आंख पर पट्टी बांधे सेक्युलर हिन्दूओ की याद दिलाता है जो लक्षागृह से लेकर अभिमन्यु वध तक कुछ नहीं बोलते लेकिन भीम द्वारा नियम तोड़कर दुर्योधन पर वार करते ही भड़क जाते हैं। सब कुछ सामने हो कर भी उन्हें कुछ नहीं दिखता वो निरपेक्ष रहते हैं और उनकी ये निरपेक्षता असुरी शक्तियों को मौन समर्थन का काम करती है। 


लेकिन कृष्ण का पक्ष है पहले दिन से। वो दुर्योधन को उस स्तर पर ले आते हैं जहां बोल दे कि सुई के बराबर जमीन नहीं दूंगा ताकि ये घोषित और साबित हो जाए ये सत्ता का युद्ध नहीं है survival की लड़ाई है इसे आधुनिक शब्दावली में एक्सपोज करना कहते हैं। 


वो शांतिदूत बनकर जाते हैं लेकिन वक्त आने पर युद्ध छोडकर भाग रहे अर्जुन को गीता ज्ञान देकर युद्ध करने के लिए प्रेरित करते हैं। शांति समझौता न्याय को ताक पर रख कर नहीं किया जा सकता। न्याय साबित करने के लिए हिंसा होती है हो जाए। 

सेक्युलर हिन्दू समाज पूजता कृष्ण को लेकिन बर्ताव बलराम जैसा करता है जिसे अपने ऊपर हमला करना वाले जरासंध तो दिखते हैं लेकिन द्रोपदी का वस्त्रों तक पहुंचने वाले कौरव खराब नहीं लगते क्योंकि दुयोधन से लगाव है।


आम हिन्दू  अर्जुन का प्रतीक है वो क्या सही गलत में इतना उलझा है कि अंत में धनुष छोड़कर खड़ा हो जाता है इसलिए शायद अर्जुन को गीता में भारत कहकर भी संबोधित किया गया है। अर्जुन बनने का लाभ तब ही है जब आपके पास कृष्ण जैसा सारथी हो। जब आपकी सारे महान विचार जानने के बाद सिर्फ ये बोले-


अर्जुन-  हे मधुसूदन! इन्हें मारकर और इतनों को मारकर तीनों लोकों का राज्य भी मिले तो भी नहीं चाहिए, फिर पृथ्वी के तो कहने ही क्या


कृष्ण- यदि तू इस धर्म के लिये युद्ध नहीं करेगा तो अपनी कीर्ति को खोकर कर्तव्य-कर्म की उपेक्षा करने पर पाप को प्राप्त होगा। लोग सदैव तेरी बहुत समय तक रहने वाली अपकीर्ति का भी वर्णन करेंगे और सम्मानित मनुष्य के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी बढ़कर है


आज 

कर्मयोगी कृष्ण के मार्ग के अनुकरण की जरूरत है...

न दैन्यं न पलायनम्


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Dharavahik crime thriller ( 152) Apradh !!

  Nirmal did many works in this week. He got the reception cards printed and distributed them to all. The friends and the only relative his ...

Grandma Stories Detective Dora},Dharm & Darshan,Today's Tip !!