आज आंवला या अक्षय नवमी है!अंग क्षेत्र में इसे औरा नवमी कहते हैं।
मान्यता है कि आज इस वृक्ष के नीचे पूजा करने से विष्णु और महेश दोनों प्रसन्न होते हैं, इसके जड़ में "ऊं धात्र्यै नमः" मंत्र से दूध की धारा देने से पितृ प्रसन्न होते हैं और अक्षय सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
इस वृक्ष के तले भोजन पका कर खाने-खिलाने से अक्षय आरोग्य की प्राप्ति होती है।
ऐसी मान्यता है कि देव उठावनी एकादशी (जेठौन) से पहले कार्तिक शुक्ल के नवमी से पूर्णिमा तक भगवान विष्णु यही विश्राम करते हैं ।
शास्त्रों के एक कथा के अनुसार पृथ्वी परिक्रमा के दौरान मां लक्ष्मी के मन में भगवान विष्णु और भगवान शिव (हरि और हर) की एक साथ पूजा करने का विचार उत्पन्न हुआ।
विष्णु भगवान को जहां तुलसी पत्र अति प्रिय हैं तो शिव जी को विल्व पत्र!
चूंकि एक मात्र आंवले के वृक्ष में ही तुलसी और विल्व दोनों का गुण पाया जाता है अतः मां लक्ष्मी ने हरिहर की प्रसन्नता के लिए आंवले की वृक्ष की पूजा की।
वो तिथि कार्तिक शुक्ल की नवमी तिथि थी। तभी से इस पूजन की प्रथा चल पड़ी।
एक कथा ये भी है कि इसी तिथि पर भगवान श्री कृष्ण वृंदावन से मथुरा को प्रस्थान किया था।
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