फील्ड मार्शल का ड्राइवर
जैसा कि हम जानते हैं, ये ड्राइवर आर्मी हेडक्वार्टर्स की ट्रांसपोर्ट कंपनी, धौला कुआँ, दिल्ली से चयनित आर्मी सर्विस कोर के सिपाही होते हैं।
स्वाभाविक है कि सेना प्रमुख (Army Chief) के पास अपनी सरकारी ड्यूटी के लिए एक से अधिक ड्राइवर रहे होंगे। सभी सेवा में लगे सैनिकों की तरह, ड्राइवर को भी हर साल छुट्टी लेने का अधिकार होता है। ऐसे ही एक ड्राइवर थे हरियाणा के निवासी हविलदार श्याम सिंह।
एक दिन जनरल सैम मानेकशॉ, नॉर्थ ब्लॉक में एक बैठक से हँसते हुए बाहर निकले। ड्राइवर, सख्त सावधान की मुद्रा में खड़ा था और उसने तुरंत गाड़ी का दरवाजा खोल दिया। अप्रैल का महीना था – एक सुखद, नरम धूप और हल्की हवा वाला दिन।
तुम्हें पता है श्याम सिंह,” जनरल ने हँसते हुए कहा, “आज रक्षामंत्री ने मेरा नाम ही बदल दिया। मुझे श्याम कहकर बोले – श्याम, मान भी जाओ।”
जनरल मानेकशॉ का इशारा रक्षामंत्री बाबू जगजीवन राम की उस विनती की ओर था, जो प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के कहने पर पूर्वी पाकिस्तान पर अप्रैल में हमले के लिए की गई थी। सैम ने यह कहकर मना कर दिया था कि अगर अप्रैल में हमला हुआ तो भारत को 100% हार मिलेगी।
“वैसे श्याम और सैम में ज्यादा फर्क नहीं है – बस एक H और Y का ही तो खेल है,” जनरल ने मुस्कुरा कर कहा।
जब युद्ध समाप्त हो गया और जनरल मानेकशॉ के रिटायरमेंट की तारीख नजदीक आने लगी, उन्होंने देखा कि श्याम सिंह कुछ असामान्य रूप से तनावग्रस्त रहने लगे हैं। उनके चेहरे पर बेचैनी साफ झलक रही थी, जो जनरल ने तुरंत भांप ली।
क्या बात है श्याम सिंह, इन दिनों तुम्हारा चेहरा ऐसा लग रहा है जैसे तुम्हारे घर की भैंस ने दूध देना बंद कर दिया हो?”
नहीं साहब, वो बात नहीं है,” और फिर वह कुछ और बोले बिना चुप हो गए।
दिन बीतते गए और रिटायरमेंट का समय करीब आता गया। एक दिन श्याम सिंह ने जनरल से कहा:
“साहब, एक निवेदन है जो सिर्फ आप ही पूरा कर सकते हैं।”
“हाँ, बोलो श्याम सिंह।”
साहब, मैं समय से पहले सेवा से निवृत्त होना चाहता हूँ। कृपया मेरी छुट्टी की सिफारिश करें।”
“लेकिन बात क्या है? कोई ज़मीन-जायदाद का मुकदमा है या पारिवारिक परेशानी? तुम अपनी पूरी सेवा पूरी करो। मैं तुम्हें नायब सूबेदार बनवा दूँगा, लेकिन सेवा मत छोड़ो,” जनरल ने समझाया।
नहीं साहब, बात कुछ और है, लेकिन मैं वह तब तक नहीं बता सकता जब तक सेवा से मुक्त नहीं हो जाता।”
जनरल ने उसकी साफगोई और इज़्ज़त की भावना को समझा और आवश्यक कार्रवाई कर दी। जब ड्राइवर की रिहाई के आदेश आ गए, जनरल ने फिर पूछा:
“अब तो खुश हो? अब बताओ क्यों जल्दी रिटायर हो रहे हो?”
ड्राइवर सावधान मुद्रा में खड़ा हो गया और बोला:
साहब, आपकी गाड़ी चलाने के बाद मैं किसी और की गाड़ी नहीं चला सकता। यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा सम्मान था। मैं इसी इज़्ज़त के साथ घर जाना चाहता हूँ।”
फील्ड मार्शल हँसे और बोले:
“तू बहुत बड़ा बेवकूफ है! तुम हरियाणवी लोग भी ना – एकदम ज़िद्दी और पक्के!”
लेकिन अब जब छुट्टी के काग़ज़ बन चुके थे, कुछ नहीं किया जा सकता था। वह तो ठेठ हरियाणवी था – जो मन में ठान ले, फिर पीछे नहीं हटता।
फिर भी जनरल ने एक दिन उससे पूछा:
“रिटायरमेंट के बाद क्या करेगा?”
“कुछ न कुछ कर लूंगा साहब, कोई नौकरी ढूंढ़ लूंगा।”
“तुम्हारे पास खेती की ज़मीन कितनी है?”
“कुछ भी नहीं साहब, मैं तो गरीब परिवार से हूँ।”
जनरल सन्न रह गए। एक निर्धन व्यक्ति, जिसने सिर्फ इसलिए नौकरी छोड़ दी क्योंकि वह किसी और की गाड़ी नहीं चला सकता था।
जिस दिन ड्राइवर विदा हुआ, सैम मानेकशॉ ने उसे एक लिफाफा दिया।
“श्याम सिंह, इसे घर जाकर ही खोलना।”
“जी साहब।” ड्राइवर ने सलाम किया और चला गया।
घर पहुँचकर वह नौकरी ढूँढ़ने में व्यस्त हो गया और लिफाफा भूल ही गया। एक दिन उसे माल ढोने वाले ट्रक की ड्राइवरी का काम मिल गया। फिर एक दिन उसकी पत्नी बोली:
“मैं तुम्हारी आर्मी की वर्दी संदूक में रख रही थी, ये लिफाफा तुम्हारी जेब में मिला।”
“अरे, इसे तो मैं भूल ही गया था। मैंने इसे नहीं खोला क्योंकि मुझे ज्यादा पढ़ना-लिखना नहीं आता। साहब ने शायद मुझे एक प्रशंसा पत्र दिया होगा, जैसे बड़े अफसर देते हैं।”
“फिर भी, इसे खोलो और स्कूल मास्टरजी से पढ़वा लो, मैं जानना चाहती हूँ इसमें क्या है।”
तो दोनों पति-पत्नी गाँव के स्कूल गए और हेडमास्टर से निवेदन किया कि वह पत्र पढ़कर सुनाएँ।
मास्टरजी ने चश्मा पहना, लिफाफा खोला और काग़ज़ को देखकर चुपचाप रह गए।
“क्या हुआ मास्टरजी, ऐसे क्या देख रहे हैं?” श्याम सिंह ने पूछा।
“क्या तुम्हें पता है ये क्या है?”
“नहीं साहब।”
“यह एक हस्तांतरण पत्र (transfer deed) है। 1971 की जीत के बाद हरियाणा सरकार ने फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को 25 एकड़ ज़मीन युद्ध जागीर के रूप में दी थी। उन्होंने वह सारी ज़मीन तुम्हारे नाम कर दी है। अब तुम 25 एकड़ के मालिक हो।”
यह सुनकर पत्नी ने गुस्से में पति को डाँटा:
“तू तो पूरा बेवकूफ निकला! मैं तो इस लिफाफे को चूल्हा जलाने के लिए जलाने ही वाली थी! भगवान का शुक्र है मैंने पहले पूछ लिया। तू तो सबसे बड़ा मूर्ख है!”
इस तरह यह कहानी है महान जनरल सैम मानेकशॉ की – जिन्होंने अपनी युद्ध जागीर सोनीपत के पास अपने मड्राइवर को दे दी और अपनी फील्ड मार्शल की पेंशन आर्मी विडोज़ वेलफेयर फंड को दान कर दी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें