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रविवार, 13 जुलाई 2025

Dharm & Darshan !! Guru kya hai !!

  *गुरू क्या है*

स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी कैंसर रोग से पीड़ित थे। उन्हें खाँसी बहुत आती थी और वे खाना भी नहीं खा सकते थे। स्वामी विवेकानंद जी अपने गुरु जी की हालत से बहुत चिंतित थे। 

एक दिन की बात है स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी ने विवेकानंद जी को अपने पास बुलाया और बोले - 

नरेंद्र, तुझे वो दिन याद है, जब तू अपने घर से मेरे पास मंदिर में आता था ? तूने दो-दो दिनों से कुछ नहीं खाया होता था। परंतु अपनी माँ से झूठ कह देता था कि तूने अपने मित्र के घर खा लिया है, ताकि तेरी गरीब माँ थोड़े बहुत भोजन को तेरे छोटे भाई* *को परोस दें। हैं न ?" 

 नरेंद्र ने रोते-रोते हाँ में सर हिला दिया।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस फिर बोले - "यहां मेरे पास मंदिर आता, तो अपने चेहरे पर ख़ुशी का मुखौटा पहन लेता। परन्तु मैं भी झट जान जाता कि तेरा शरीर क्षुधाग्रस्त है। और फिर तुझे अपने हाथों से लड्डू, पेड़े, माखन-मिश्री खिलाता था। है ना ?" 

नरेंद्र ने सुबकते हुए गर्दन हिलाई। 

अब रामकृष्ण परमहंस फिर मुस्कुराए और प्रश्न पूछा - "कैसे जान लेता था मैं यह बात ? कभी सोचा है तूने ?" 

नरेन्द्र सिर उठाकर परमहंस को देखने लगे। 

बता न, मैं तेरी आंतरिक स्थिति को कैसे जान लेता था ?"

नरेंद्र - "क्योंकि आप अंतर्यामी हैं गुरुदेव"। 

राम कृष्ण परमहंस - "अंतर्यामी, अंतर्यामी किसे कहते हैं ?" 

नरेंद्र - "जो सबके अंदर की जाने" !! 

 परमहंस - "कोई अंदर की कब जान सकता है ?"

नरेंद्र - "जब वह स्वयं अंदर में ही विराजमान हो।" 

परमहंस - "अर्थात मैं तेरे अंदर भी बैठा हूँ। हूँ ना ?" 

नरेंद्र - "जी बिल्कुल। आप मेरे हृदय में समाये हुए हैं।" 

परमहंस - "तेरे भीतर में समाकर मैं हर बात जान लेता हूँ। हर दुःख दर्द पहचान लेता हूँ। तेरी भूख का अहसास कर लेता हूँ, तो क्या तेरी तृप्ति मुझ तक नहीं पहुँचती होगी ?" 

 नरेंद्र -  "तृप्ति ?"

परमहंस - "हाँ तृप्ति! जब तू भोजन करता है और तुझे तृप्ति होती है, क्या वो मुझे तृप्त नहीं करती होगी ? अरे पगले, गुरु अंतर्यामी है, अंतर्जगत का स्वामी है। वह अपने शिष्यों के भीतर बैठा सब कुछ भोगता है। मैं एक नहीं हज़ारों मुखों से खाता हूँ।"

 याद रखना, गुरु कोई बाहर स्थित एक देह भर नहीं है। वह तुम्हारे रोम-रोम का वासी है। तुम्हें पूरी तरह आत्मसात कर चुका है। अलगाव कहीं है ही नहीं। अगर कल को मेरी यह देह नहीं रही, तब भी जीऊंगा, तेरे माध्यम से जीऊंगा। मैं तुझमें रहूँगा।

गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णुः  गुरुः देवो महेश्वरः

गुरुर्साक्षात परब्रह्मः तस्मै श्री गुरुवे नमः


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