ऋषि #दधीचि जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपने शरीर की अस्थियों का दान किया था !
उनकी अस्थियों से तीन धनुष बने -
1. #गांडीव
2. #पिनाक
3. #सारंग
गांडीव अर्जुन को मिला था जिसके बल पर अर्जुन ने महाभारत का युद्ध जीता !
सारंग से भगवान श्री राम जी ने युद्ध किया था और रावण के अत्याचारी राज्य को ध्वस्त किया था !
पिनाक था भगवान शिव जी के पास जिसे रावण ने अपनी कठोर तपस्या के बल पर भगवान शिव से मांग लिया था !
रावण उसका भार लम्बे समय तक नहीं उठा पाने के कारण बीच रास्ते में जनकपुरी में उसे छोड़ आया था !
इसी पिनाक की नित्य सेवा माता सीताजी किया करती थी ! पिनाक का भंजन करके ही भगवान राम ने सीता जी का वरण किया था !
ऋषि दधीचि जी की अस्थियों से ही #एकघ्नी नामक वज्र भी बना था जो भगवान इन्द्र को प्राप्त हुआ था !
इस एकघ्नी वज्र को इन्द्र ने कर्ण की तपस्या से खुश होकर अमोघ बाण के रुप में कर्ण को दे दिया था ! इसी अमोघ बाण से महाभारत के युद्ध में भीम का महाप्रतापी पुत्र घटोत्कच कर्ण के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ था ! कई अन्य अश्त्र-शस्त्रों का निर्माण भी ऋषि दधीचि जी की अस्थियों से हुआ था !
ऋषि दधीचि जी के इस अस्थि-दान का एक मात्र संदेश था की,
''हे वीरों शस्त्र उठाओ और अधर्म तथा अन्याय के विरुद्ध युद्ध करो''
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद् धर्मं न त्यजामि मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ।।
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