तुलानाम लवेनापि न स्वर्ग ना पुनर्भवम्
भगवत्संगी सङ्गस्य मर्त्यानां किमुताशिषः
अर्थात भगवत्प्रेमी पुरुष के क्षण मात्र के भी संग के साथ ,हम स्वर्ग की तो क्या मोक्ष की भी तुलना नहीं कर सकते हैं,फिर संसार के तुच्छ भोगों की तो बात ही क्या है
Swami Ranteerth as a poor brahmin boy faltered not under any circumstances and who was never daunted by any difficulty
व्यक्ति के लिए व्यक्तित्व का उतना ही महत्व है जितना की पुष्प के लिए गंध का ---चार्ल्स सेट्वेन
चरित्र की सरलता गंभीर चिंतन का ही प्रकृतिक परिणाम होती है ----हेज़लिट
मैंने अपनी इच्छाओं का दमन काके सुख प्राप्त करना सीखा है ---जॉन स्टुअर्ट मिल
सौंदर्य तो दर्शक के नेत्रों में होता है ---रोमा रोलां
एक ही अंडे से आमलेट और चिकन दोनों प्राप्त नहीं किया जा सकते ---एक कहावत
तीर आर कुल्हाड़ी का घाव तो भर सकता है ,पर बोली का नहीं ---महात्मा विदुर
छोटी सी प्रार्थना -----
फ़्रांस के समुद्र तट पर प्रत्येक मछुआरा एक बहुत प्राचीन प्रार्थना किया करता है ----"हे ईश्वर तुम्हारा समुद्र इतना विशाल है और मेरी किश्ती इतनी छोटी सी है "बस इतनी ही प्रार्थना ,शायद कुछ लोग इसे प्रार्थना नहीं माने ,लेकिन इसमें समस्त प्रार्थनाओं का सार पाया jata है,मनुष्य का सचेत होकर ईश्वर के सम्मुख खड़े होना ---विलियम ऑर्थर
नमस्ते सते ते जगत्कारणाय,
नमस्ते चीते सर्व लोकाश्रयाय
नमो अद्वैत तत्वाय मुक्ति प्रदाय
नमो ब्रम्हने व्यापिनी शाश्वताय
त्वमेकम शरण्यं त्वमेकम वरेण्यम
त्वमेकम जगदपालकम स्वप्रकाशम
त्वमेक जगत कर्त पातृ प्रहर्तृ
त्वमेकम परम निश्छलम निर्विकल्पं
भयाना भयं,भीषणं भीषणानां
गतिः प्राणिनां पावनं पावनानाम
महोच्चेः पदानाम नियंतृ त्वमेकम
परेषां परम रक्षणं रक्षणानां
वयम त्वाम स्मरामो क्याम त्वाम भजामो
वयम त्वाम जगद्साक्षिरूपम् नमामः
सडकम निधानं निरलम्बमीशम्
भवाम्भोधिपोतम शरण्य व्रजामः !
अजीब बात है लोग दीर्घ जीवी होना चाहते हैं मगर बूढ़े नहीं ---डॉ देवकीनन्दन
वृत्रासुर की प्रार्थना ----
अहम हरे तव पादैकमूलः ,दासा नु दासो भवतास्मि भूयः
मनः स्मरेता सुपातेर्गुणंस्ते,गृहिणवाक कर्म करोतु कायः
न नाक पृष्ठम् न च पारमेष्ठ्यम् ,न सार्वभौम न रसाधिपत्यम्
न योग सिद्धिरपुनर्भवम् व सामंजस्य त्वा विरहाययकाम
अजातपक्षiv मातरम खगाः स्तन्यं यथा वतस्तरः क्षुधार्ताः
प्यीय प्रियेव व्युषितम् विषण्णा मनोअरविंदाक्ष दीक्षते त्वम्
मामोत्तम श्लोक जनेषु संख्यं,संसार चक्रे भ्रमतः स्वकर्मभिः
त्वन्मायया आत्मज्दार गेहे ,श्वासाचितस्य न नाथ भूयात !
विपत्ति में भी जिस हृदय में सद्ज्ञान उत्पन्न ना हो ,वह एक ऐसा सुख वृक्ष है जो पानी पाकर पनपता नहीं बल्कि सड़ जाता है ---प्रेमचंद
मनुष्य जब तक जीवन के एक क्षेत्र में गलत काम करने में व्यस्त रहता है तब तक वह दूसरे क्षेत्र में सही काम नहीं कर सकता ---बापू
स्वामी विवेकानंद की निशाने बाजी ------{मन की एकाग्रता की शक्ति }
बात उन दिनों की है जब स्वामीजी अमेरिका गए हुए थे ,एक शाम वे समुद्र के किनारे घूम रहे थे तब उन्होंने देखा कुछ अमेरिकी युवक निशानेबाजी कर रहे थे ,युवक रबर की गेंद पानी की सतह पर उछालते,जब गेंद सतह पर तैरने लगती तो उनमे से एक युवक उस पर बन्दूक की गोली का निशाना लगाता। सभी युवकों ने बारी बारी से प्रयत्न किया परन्तु सफलता नहीं मिली,स्वामी जी जो वहीँ खड़े थे ,देख रहे थे थोड़ा सा मुस्कुराये ,परन्तु उनकी मुस्कुराहट से युवकों के चेहरों पर उनके एक भारतीय साधु होने से कुछ चिड़चिड़ाहट सी नज़र आने लगी ,उन्होंने स्वामी जी से कहा यह कोई साधारण काम नहीं है
स्वामी जी शांत रहे परन्तु उन्होंने उस युवक के हाथ से बन्दूक लेकर दूसरे को गेंद उछालने को कहा ,व महान आश्चर्य की उन्होंने एक के बाद एक ऐसे सात बार गेंद पर सही निशाना लगाया ,युवकों को कुछ झेंप सी महसूस हुई परन्तु फिर भी उत्सुकतावश उन्होंने स्वामी जी से इसका रहस्य पूछा ,स्वामी जी ने बताया "मैंने अपने जीवन में प्रथम बार ही बन्दूक का निशाना लगाया परन्तु निशाना लगते समय मैंने अपने मन को एकाग्र कर लिया व इसी कारण मुझे सफलता मिली अगर तुम भी ऐसा कर सको तो दुनिया में कोई ऐसा काम नहीं है जिसमे तुम्हे सफलता न मिले।
भगवत्संगी सङ्गस्य मर्त्यानां किमुताशिषः
अर्थात भगवत्प्रेमी पुरुष के क्षण मात्र के भी संग के साथ ,हम स्वर्ग की तो क्या मोक्ष की भी तुलना नहीं कर सकते हैं,फिर संसार के तुच्छ भोगों की तो बात ही क्या है
Swami Ranteerth as a poor brahmin boy faltered not under any circumstances and who was never daunted by any difficulty
व्यक्ति के लिए व्यक्तित्व का उतना ही महत्व है जितना की पुष्प के लिए गंध का ---चार्ल्स सेट्वेन
चरित्र की सरलता गंभीर चिंतन का ही प्रकृतिक परिणाम होती है ----हेज़लिट
मैंने अपनी इच्छाओं का दमन काके सुख प्राप्त करना सीखा है ---जॉन स्टुअर्ट मिल
सौंदर्य तो दर्शक के नेत्रों में होता है ---रोमा रोलां
एक ही अंडे से आमलेट और चिकन दोनों प्राप्त नहीं किया जा सकते ---एक कहावत
तीर आर कुल्हाड़ी का घाव तो भर सकता है ,पर बोली का नहीं ---महात्मा विदुर
छोटी सी प्रार्थना -----
फ़्रांस के समुद्र तट पर प्रत्येक मछुआरा एक बहुत प्राचीन प्रार्थना किया करता है ----"हे ईश्वर तुम्हारा समुद्र इतना विशाल है और मेरी किश्ती इतनी छोटी सी है "बस इतनी ही प्रार्थना ,शायद कुछ लोग इसे प्रार्थना नहीं माने ,लेकिन इसमें समस्त प्रार्थनाओं का सार पाया jata है,मनुष्य का सचेत होकर ईश्वर के सम्मुख खड़े होना ---विलियम ऑर्थर
नमस्ते सते ते जगत्कारणाय,
नमस्ते चीते सर्व लोकाश्रयाय
नमो अद्वैत तत्वाय मुक्ति प्रदाय
नमो ब्रम्हने व्यापिनी शाश्वताय
त्वमेकम शरण्यं त्वमेकम वरेण्यम
त्वमेकम जगदपालकम स्वप्रकाशम
त्वमेक जगत कर्त पातृ प्रहर्तृ
त्वमेकम परम निश्छलम निर्विकल्पं
भयाना भयं,भीषणं भीषणानां
गतिः प्राणिनां पावनं पावनानाम
महोच्चेः पदानाम नियंतृ त्वमेकम
परेषां परम रक्षणं रक्षणानां
वयम त्वाम स्मरामो क्याम त्वाम भजामो
वयम त्वाम जगद्साक्षिरूपम् नमामः
सडकम निधानं निरलम्बमीशम्
भवाम्भोधिपोतम शरण्य व्रजामः !
अजीब बात है लोग दीर्घ जीवी होना चाहते हैं मगर बूढ़े नहीं ---डॉ देवकीनन्दन
वृत्रासुर की प्रार्थना ----
अहम हरे तव पादैकमूलः ,दासा नु दासो भवतास्मि भूयः
मनः स्मरेता सुपातेर्गुणंस्ते,गृहिणवाक कर्म करोतु कायः
न नाक पृष्ठम् न च पारमेष्ठ्यम् ,न सार्वभौम न रसाधिपत्यम्
न योग सिद्धिरपुनर्भवम् व सामंजस्य त्वा विरहाययकाम
अजातपक्षiv मातरम खगाः स्तन्यं यथा वतस्तरः क्षुधार्ताः
प्यीय प्रियेव व्युषितम् विषण्णा मनोअरविंदाक्ष दीक्षते त्वम्
मामोत्तम श्लोक जनेषु संख्यं,संसार चक्रे भ्रमतः स्वकर्मभिः
त्वन्मायया आत्मज्दार गेहे ,श्वासाचितस्य न नाथ भूयात !
विपत्ति में भी जिस हृदय में सद्ज्ञान उत्पन्न ना हो ,वह एक ऐसा सुख वृक्ष है जो पानी पाकर पनपता नहीं बल्कि सड़ जाता है ---प्रेमचंद
मनुष्य जब तक जीवन के एक क्षेत्र में गलत काम करने में व्यस्त रहता है तब तक वह दूसरे क्षेत्र में सही काम नहीं कर सकता ---बापू
स्वामी विवेकानंद की निशाने बाजी ------{मन की एकाग्रता की शक्ति }
बात उन दिनों की है जब स्वामीजी अमेरिका गए हुए थे ,एक शाम वे समुद्र के किनारे घूम रहे थे तब उन्होंने देखा कुछ अमेरिकी युवक निशानेबाजी कर रहे थे ,युवक रबर की गेंद पानी की सतह पर उछालते,जब गेंद सतह पर तैरने लगती तो उनमे से एक युवक उस पर बन्दूक की गोली का निशाना लगाता। सभी युवकों ने बारी बारी से प्रयत्न किया परन्तु सफलता नहीं मिली,स्वामी जी जो वहीँ खड़े थे ,देख रहे थे थोड़ा सा मुस्कुराये ,परन्तु उनकी मुस्कुराहट से युवकों के चेहरों पर उनके एक भारतीय साधु होने से कुछ चिड़चिड़ाहट सी नज़र आने लगी ,उन्होंने स्वामी जी से कहा यह कोई साधारण काम नहीं है
स्वामी जी शांत रहे परन्तु उन्होंने उस युवक के हाथ से बन्दूक लेकर दूसरे को गेंद उछालने को कहा ,व महान आश्चर्य की उन्होंने एक के बाद एक ऐसे सात बार गेंद पर सही निशाना लगाया ,युवकों को कुछ झेंप सी महसूस हुई परन्तु फिर भी उत्सुकतावश उन्होंने स्वामी जी से इसका रहस्य पूछा ,स्वामी जी ने बताया "मैंने अपने जीवन में प्रथम बार ही बन्दूक का निशाना लगाया परन्तु निशाना लगते समय मैंने अपने मन को एकाग्र कर लिया व इसी कारण मुझे सफलता मिली अगर तुम भी ऐसा कर सको तो दुनिया में कोई ऐसा काम नहीं है जिसमे तुम्हे सफलता न मिले।
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