कमला गौरी की कलम से जो अल्पायु में गंभीर बीमारी के कारण स्वर्गवासी हो गयीं ----
यह जिंदगी
हाथ से फिसल गयी बालू रेत सी जिंदगी
हम इसे सम्हालते सहेजते ही रह गए
जीवन के प्रश्नो का सन्दर्भ अर्थ हम खोजते रहे कि
हमारे हाथों से उत्तर पुस्तिका छीन गयी
कहते हैं डूबते को होता है तिनके का सहारा
हम तिनके को थामे रहे और जिंदगी डूब गयी
साहिल की तमन्ना हम करते रहे दिल में
माझी का हाथ थामे हम मझधार में डूब गए
किसी ने कहा सच है तो बस यही जीवन
किसी ने बताया झूठा झमेला
इसी उधेड़बुन में हम फंदे पलटते रहे कि
जिंदगी की सलाईयां हाथों से फिसल पड़ीं
बालू रेट सी जिंदगी फिसल गयी
प्यासा सावन
यह आँख मिचौली बादल की अब नहीं सही जाती
पवन संग तुम्हारी ये ठिठोली अब नहीं भाटी
प्यासी धरती,प्यासा मान,प्यासा सावन
पपीहा की पिऊ पिऊ ,कोयल की कूक
मोर की पायल है थिरकने को आतुर
ओ घनघोर बादल तरस काट अब तो बरस जाओ
सूखती सरिताएँ रिसते सर सावन बिन
चटक बन तरसता ये मन
पशु पक्षी की व्याकुल चितवन
किसानो के प्रतीक्षारत नैन कहते दिन रैन
यूँ तुम्हारा घिर घिर कर बिन बरसे ही लौट जाना
हैं बहुत तरसाता
प्यासा सावन गुजरा,आस बंधी भादों पर।,
जाने किस गम को पाले हैं ये भादों के बादल
उमड़ उमड़ रह जाते क्यों हो ,बरस बरस जी हल्का कर लो
धरती के प्यासे अधरों पर रस बन बरसो
यक्ष प्रिया के मेघदूत अब तो बरस जाओ।
स्त्री
सौम्या तुम देवी सी
शौर्या तुम दुर्गा सी
अहिल्या सी कर्तव्य परायणा
वीरांगना तुम दुर्गा ,झांसी सी
शालीन तुम सीता सी
बुद्धिमती सरस्वती सी
सहनशील तुम वसुंधरा सी
विशाल तुम विस्तृत आकाश सी
तुलसीदास की रत्नावली तुम
प्रसाद की हो तुम कामायनी
भूल सभी इन रूपों को
मत बनना तुम विष की गाँठ
नारी बन मत बनना तुम नारी की ही शत्रु
मत रौंदना अपने अस्तित्व को , तुम जग में आने से पहले
कभी न करना भस्म तुम दुल्हन के अरमानो को
अपने ही अस्तित्व अस्मिता की तुमको लाज बचाना है
अपने ही आदर्श रूप को तुमको आज सँवारना है
मौन साधक
था वह दो अक्टूबर का दिन
जब कर्म चंद ने पुण्य कर्मो का फल पाया
पुतलीबाई ने सपूत मोहन सा पाया
जो बना लाडला भारत का जग का जिसने मन मोहा
श्रवण पितृ भक्ति ,हरिश्चंद्र की गाथा ने
जिसने प्रेरणा मय बनाया था
सत्य अहिंसा ,शांति सद्भाव ने जिसे संवरा था
पर पीड़ा ,पर ज़ख्मों ने जिसके दिल को दहलाया था
देख भारत की पराधीनता जिसका हृदय भर आया था
आजाद हिंदुस्तान का सपना जिसकी आँखों में समाया था
साबरमती के संत की तपस्या ने रंग दिखाया था
खडग तलवार के बिना जिसने दुश्मन को ललकारा था
फिर हमने लाल किले पर तिरंगा फहराया था
चैन उसे तब ही मिला जब आजादी का जश्न मनाया
सदा जीवन उच्च विचार ने जिसके व्यक्तित्व को निखारा था
पद लोलुपता के लालच ने उन्हें नहीं भटकाया था
निष्काम कर्म की भवन ने उसे कर्मयोगी बनाया था
देश हित समर्पित हो गया वह मौन साधक
उस तपस्वी ,उस संत को आओ करें नमन !
यह जिंदगी
हाथ से फिसल गयी बालू रेत सी जिंदगी
हम इसे सम्हालते सहेजते ही रह गए
जीवन के प्रश्नो का सन्दर्भ अर्थ हम खोजते रहे कि
हमारे हाथों से उत्तर पुस्तिका छीन गयी
कहते हैं डूबते को होता है तिनके का सहारा
हम तिनके को थामे रहे और जिंदगी डूब गयी
साहिल की तमन्ना हम करते रहे दिल में
माझी का हाथ थामे हम मझधार में डूब गए
किसी ने कहा सच है तो बस यही जीवन
किसी ने बताया झूठा झमेला
इसी उधेड़बुन में हम फंदे पलटते रहे कि
जिंदगी की सलाईयां हाथों से फिसल पड़ीं
बालू रेट सी जिंदगी फिसल गयी
प्यासा सावन
यह आँख मिचौली बादल की अब नहीं सही जाती
पवन संग तुम्हारी ये ठिठोली अब नहीं भाटी
प्यासी धरती,प्यासा मान,प्यासा सावन
पपीहा की पिऊ पिऊ ,कोयल की कूक
मोर की पायल है थिरकने को आतुर
ओ घनघोर बादल तरस काट अब तो बरस जाओ
सूखती सरिताएँ रिसते सर सावन बिन
चटक बन तरसता ये मन
पशु पक्षी की व्याकुल चितवन
किसानो के प्रतीक्षारत नैन कहते दिन रैन
यूँ तुम्हारा घिर घिर कर बिन बरसे ही लौट जाना
हैं बहुत तरसाता
प्यासा सावन गुजरा,आस बंधी भादों पर।,
जाने किस गम को पाले हैं ये भादों के बादल
उमड़ उमड़ रह जाते क्यों हो ,बरस बरस जी हल्का कर लो
धरती के प्यासे अधरों पर रस बन बरसो
यक्ष प्रिया के मेघदूत अब तो बरस जाओ।
स्त्री
सौम्या तुम देवी सी
शौर्या तुम दुर्गा सी
अहिल्या सी कर्तव्य परायणा
वीरांगना तुम दुर्गा ,झांसी सी
शालीन तुम सीता सी
बुद्धिमती सरस्वती सी
सहनशील तुम वसुंधरा सी
विशाल तुम विस्तृत आकाश सी
तुलसीदास की रत्नावली तुम
प्रसाद की हो तुम कामायनी
भूल सभी इन रूपों को
मत बनना तुम विष की गाँठ
नारी बन मत बनना तुम नारी की ही शत्रु
मत रौंदना अपने अस्तित्व को , तुम जग में आने से पहले
कभी न करना भस्म तुम दुल्हन के अरमानो को
अपने ही अस्तित्व अस्मिता की तुमको लाज बचाना है
अपने ही आदर्श रूप को तुमको आज सँवारना है
मौन साधक
था वह दो अक्टूबर का दिन
जब कर्म चंद ने पुण्य कर्मो का फल पाया
पुतलीबाई ने सपूत मोहन सा पाया
जो बना लाडला भारत का जग का जिसने मन मोहा
श्रवण पितृ भक्ति ,हरिश्चंद्र की गाथा ने
जिसने प्रेरणा मय बनाया था
सत्य अहिंसा ,शांति सद्भाव ने जिसे संवरा था
पर पीड़ा ,पर ज़ख्मों ने जिसके दिल को दहलाया था
देख भारत की पराधीनता जिसका हृदय भर आया था
आजाद हिंदुस्तान का सपना जिसकी आँखों में समाया था
साबरमती के संत की तपस्या ने रंग दिखाया था
खडग तलवार के बिना जिसने दुश्मन को ललकारा था
फिर हमने लाल किले पर तिरंगा फहराया था
चैन उसे तब ही मिला जब आजादी का जश्न मनाया
सदा जीवन उच्च विचार ने जिसके व्यक्तित्व को निखारा था
पद लोलुपता के लालच ने उन्हें नहीं भटकाया था
निष्काम कर्म की भवन ने उसे कर्मयोगी बनाया था
देश हित समर्पित हो गया वह मौन साधक
उस तपस्वी ,उस संत को आओ करें नमन !
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