मैंने कभी नहीं देखा तुम्हे ,
अपने लिए जीते हुए ,
अपनी छोटी बड़ी कोई भी,
अपने लिए जीते हुए ,
अपनी छोटी बड़ी कोई भी,
इच्छा पूरी करते हुए,
हम पर लुटाया तुमने सदैव ,
अपना सर्वस्व,ममत्व और वात्सल्य,
एक लम्बी अनथक सी यात्रा में ,
कभी अभिव्यक्त नहीं की तुमने ,
अपनी कोई मनोकामना,
कर्मठ रहा तुम्हारा जीवन ,आजीवन,
समाज को तुमने दिया ,
अपना समय ,शिक्षण और अनुशासन,
किसी से कुछ नहीं लिया ,एक नन्हा सा तृण भी,
बस दिया ही दिया है,
कभी उऋण ना हो सकेंगे ,
आजीवन रहेगा तुम्हारा ऋण ,
मुझे गर्व है ऐ माँ ,
तुम मेरी माँ हो ,
तुम्हे शत शत नमन,
तुम्हारे चरणों का वन्दन.
------------------------श्रीमती लीला पेरलेकर को ---श्रद्धा व सम्मान के साथ -----निरुपमा की ओर से
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