तुम भी न आओ याद तो कहानी ख़त्म हो
खुद को अफसाना के भुला चुके थे हम !
परखना मत ,परखने से कोई अपना नहीं रहता
आईने में हमेशा कोई चेहरा नहीं रहता !----राहत इन्दौरी
बड़ों से जब मिलो तो एक फासला रखो
समंदर में जब मिलता है दरिया ,तो दरिया नहीं रहता ! राहत इंदौरी
रह रह कर चुभता है ,एक अनसुलझा सा सवाल
करती हूँ सुलझाने की कोशिश ,ढूंढती रहती हूँ जवाब,
क्या बेवफा थी मैं ,या वफादार न रह पाया था तू
खतावार थी मैं या ,या ज़िम्मेदार सरासर था तू
जिस मोड़ से राहें हुईं थीं जुदा उस मोड़ तक
मैं तुझे लाई या लाया था तू
ख़ुदा की मर्ज़ी थी वो या इसका गुनाहगार था तू ,
जो सितम तूने मुझेपर ढाया ,
क्या उससे बच पाया है तू ,
तूने दागदार किया मेरा दामन
क्या दामन को अपने बेदाग़ रख पाया है तू
पलट पलट कर मैं देखती रही तुझे
क्या मेरी यादों की जानिब ,
कभी थोड़ा सा भी मुड़ पाया है तू
नसीब तेरा तेरे साथ रहा ,मेरा मेरे साथ,
मुझे नवाज़ा खुदा ने खुशियों से बेपनाह
तुझ जैसे सौदाई को क्या फायदा हुआ,
या जबरजस्त जिंदगी से घाटा खा गया है तू
रह रह कर दिल में उठता है दर्द ,कलेजे में कसक,
अपना सबकुछ तुझे समझी थी मैं
थोड़ा सा भी मेरा क्यों न बन पाया था तू,
फिर भी तुझे देती हूँ दुआ ,तू खुश रहे ,आबाद रहे ,
क्या मेरे लिए कभी ख़ुदा से दुआ मांगता है तू ?
तकदीर ------
बना लो दर्द को दौलत
नाकामयाबी को सीढ़ी कामयाबी की
ढूँढ लो रोशनदान अँधेरे में
इसीसे गुजरकर मंज़िल मिल जाएगी
उदासी में ही मिलपायेगी हंसी
आहों से ग़ज़ल बन जाएगी ,
आसुओं के समंदर में मिलेंगे मोती
चाँद लकीरों से कोई तस्वीर बन जाएगी
तदबीर करते रहो हर वक़्त
किसी दिन तुम्हारी भी
तकदीर खुल जाएगी !
खुद को अफसाना के भुला चुके थे हम !
परखना मत ,परखने से कोई अपना नहीं रहता
आईने में हमेशा कोई चेहरा नहीं रहता !----राहत इन्दौरी
बड़ों से जब मिलो तो एक फासला रखो
समंदर में जब मिलता है दरिया ,तो दरिया नहीं रहता ! राहत इंदौरी
रह रह कर चुभता है ,एक अनसुलझा सा सवाल
करती हूँ सुलझाने की कोशिश ,ढूंढती रहती हूँ जवाब,
क्या बेवफा थी मैं ,या वफादार न रह पाया था तू
खतावार थी मैं या ,या ज़िम्मेदार सरासर था तू
जिस मोड़ से राहें हुईं थीं जुदा उस मोड़ तक
मैं तुझे लाई या लाया था तू
ख़ुदा की मर्ज़ी थी वो या इसका गुनाहगार था तू ,
जो सितम तूने मुझेपर ढाया ,
क्या उससे बच पाया है तू ,
तूने दागदार किया मेरा दामन
क्या दामन को अपने बेदाग़ रख पाया है तू
पलट पलट कर मैं देखती रही तुझे
क्या मेरी यादों की जानिब ,
कभी थोड़ा सा भी मुड़ पाया है तू
नसीब तेरा तेरे साथ रहा ,मेरा मेरे साथ,
मुझे नवाज़ा खुदा ने खुशियों से बेपनाह
तुझ जैसे सौदाई को क्या फायदा हुआ,
या जबरजस्त जिंदगी से घाटा खा गया है तू
रह रह कर दिल में उठता है दर्द ,कलेजे में कसक,
अपना सबकुछ तुझे समझी थी मैं
थोड़ा सा भी मेरा क्यों न बन पाया था तू,
फिर भी तुझे देती हूँ दुआ ,तू खुश रहे ,आबाद रहे ,
क्या मेरे लिए कभी ख़ुदा से दुआ मांगता है तू ?
तकदीर ------
बना लो दर्द को दौलत
नाकामयाबी को सीढ़ी कामयाबी की
ढूँढ लो रोशनदान अँधेरे में
इसीसे गुजरकर मंज़िल मिल जाएगी
उदासी में ही मिलपायेगी हंसी
आहों से ग़ज़ल बन जाएगी ,
आसुओं के समंदर में मिलेंगे मोती
चाँद लकीरों से कोई तस्वीर बन जाएगी
तदबीर करते रहो हर वक़्त
किसी दिन तुम्हारी भी
तकदीर खुल जाएगी !
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