बुटु बचपन में मर्फी बॉय की तरह अपनी उंगली {अनामिका} का थोडा सा हिस्सा मुंह में डाले रहता था,कुछ लोगों ने मामा से पूछा भी था कि क्या उसने मर्फी कि मॉडलिंग की है,वह पांच वर्ष तक सिर्फ दूध ही पीना पसंद करता था.नानी उसे गोद में उठाती हाथ में छोटी सी प्लेट में भात भाजा {आलू,गोभी,बेगन आदि तले हुए}मिला कर छोटे छोटे गोले बनाती,घर के सामने वाले हिस्से के बगीचे में घूम घूम कर चिड़िया ,कौआ दिखाते कहानी सुनाते हुए उसे खिलाती जाती.बुटु नानी को "ठाम्मा"कहता जो "ठाकुर माँ" का तोतला रूप था,जब मैंने भी वह संबोधन देना चाहा,तो नानी ने कहा की मैं उन्हें "दीदीमा" कहूँ.इतनी बातें करने की कभी जरूरत ही नहीं पड़ी की संबोधन दे कर बात करूँ.
मामी ने मुझे हमेशा आकर्षित किया,गोरी,सुन्दर,नाटी,और एडियों तक पहुंचते लम्बे बाल,बड़ा सा जूडा बना कर उनमे चाँदी के पिन्स सजा कर,लाल बिंदी और लाल सिन्दूर में उनकी गुलाबी त्वचा खिली सी रहती थी,तब से लेकर आज तक मामी का सम्बन्ध हम तीनो भाई बहनों से वैसा ही बना हुआ है.एक बार बबली भी मेरे साथ मामा के घर रह गयी,वहां जब उसने मछली खाई और अन्दर से बड़ा सा कांटा निकला ,तो उसने कहा "कंघी"निकली है उसे काफी दिनों तक मामा के तीनो बच्चे चिढाते रहे"कंघी वाली सब्जी खाएगी?"
बंगाली होते हुए भी,मम्मी को मांसाहार से विशेष प्रेम नहीं था,वह शुरू से ही सात्विक प्रवृत्ति की रही,अन्ना को अपने मित्रों के साथ आदत लगी ,किन्तु जब उन्होंने जब रामाश्रम सत्संग से सम्बन्ध जोड़ा पूरी तरह से शाकाहार अपना लिया.बचपन में जब मम्मी अंडा बनाती मुझे बहुत अच्छा लगता,मैंने कभी मम्मी को अंडा फोड़ते या फेंटते नहीं देखा,मै
जब पूछती तो मम्मी कहती"बेसन का चिल्ला है"जब एक बार मेरी सहेली ने सचमुच का चिल्ला खिलाया तो मैंने कहा"तेरा तो अच्छा नहीं है मेरी मम्मी बहुत अच्छा बनाती है,
एक बार मम्मी के स्कूल के एक टीचर लगभग छः इंच की पूरी पूरी तली हुयी मछलियाँ ले आये तो हम न खा सके और हमने स्ट्रीट डॉग्स को उछाल उछाल कर खिला दी.
अपने शाकाहारी दस वर्षों में मैंने अंडे भी छोड़ दिए थे.
मनु के जन्म तक हम दोनों बहनों को भाई की कमी खलती थी,पर अन्ना के सबसे बड़े भाई,श्री दत्तात्रेय के जेष्ठ पुत्र,अशोक हमारे यहाँ बचपन से आते रहे और आज भी हमारी राखी पर उनका हक पहला होता है.---क्रमशः----
मामी ने मुझे हमेशा आकर्षित किया,गोरी,सुन्दर,नाटी,और एडियों तक पहुंचते लम्बे बाल,बड़ा सा जूडा बना कर उनमे चाँदी के पिन्स सजा कर,लाल बिंदी और लाल सिन्दूर में उनकी गुलाबी त्वचा खिली सी रहती थी,तब से लेकर आज तक मामी का सम्बन्ध हम तीनो भाई बहनों से वैसा ही बना हुआ है.एक बार बबली भी मेरे साथ मामा के घर रह गयी,वहां जब उसने मछली खाई और अन्दर से बड़ा सा कांटा निकला ,तो उसने कहा "कंघी"निकली है उसे काफी दिनों तक मामा के तीनो बच्चे चिढाते रहे"कंघी वाली सब्जी खाएगी?"
बंगाली होते हुए भी,मम्मी को मांसाहार से विशेष प्रेम नहीं था,वह शुरू से ही सात्विक प्रवृत्ति की रही,अन्ना को अपने मित्रों के साथ आदत लगी ,किन्तु जब उन्होंने जब रामाश्रम सत्संग से सम्बन्ध जोड़ा पूरी तरह से शाकाहार अपना लिया.बचपन में जब मम्मी अंडा बनाती मुझे बहुत अच्छा लगता,मैंने कभी मम्मी को अंडा फोड़ते या फेंटते नहीं देखा,मै
जब पूछती तो मम्मी कहती"बेसन का चिल्ला है"जब एक बार मेरी सहेली ने सचमुच का चिल्ला खिलाया तो मैंने कहा"तेरा तो अच्छा नहीं है मेरी मम्मी बहुत अच्छा बनाती है,
एक बार मम्मी के स्कूल के एक टीचर लगभग छः इंच की पूरी पूरी तली हुयी मछलियाँ ले आये तो हम न खा सके और हमने स्ट्रीट डॉग्स को उछाल उछाल कर खिला दी.
अपने शाकाहारी दस वर्षों में मैंने अंडे भी छोड़ दिए थे.
मनु के जन्म तक हम दोनों बहनों को भाई की कमी खलती थी,पर अन्ना के सबसे बड़े भाई,श्री दत्तात्रेय के जेष्ठ पुत्र,अशोक हमारे यहाँ बचपन से आते रहे और आज भी हमारी राखी पर उनका हक पहला होता है.---क्रमशः----
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