राजमल गोरा नाटा बड़ी बड़ी आँखों और पतली मूछों वाला युवक था।.वह रोज सुबह अपने पिता के साथ अपनी जेवरातों की दूकान पर चला जाता था ,ॐ माँ की तरह लम्बे चहरे वाला दुलार से थोडा बिगड़ा छोटा बेटा था।.जीजी सा उसे दिन भर डांटती रहती थी,,मंजू सांवली कुबडा कर चलने वाली दुलारी बेटी थी राजमल की पत्नी सुभद्रा सुन्दर सी ,नाज़ुक सी ,कोमल सी लड़की थी,,जिजिसा उसे दिन भर सौंदरा सौंदरा कह कर पुकारती रहती थी।.मैंने मंजू को कभी काम करते नहीं देखा।.सुभद्रा को हम सभी बच्चे भाभी कह कर पुकारते थे।.वह चश्मा लगाती थी।.जिजिसा दिन भर रसोई में ताला लगाये रखती और चाभियों का गुच्छा अपनी कमर में टाँगे रखती थी।.शाम का खाना भी सूर्यास्त से समाप्त हो जाता था।.बाद में जिजिसा एक बड़े से पीतल के ग्लास में पानी लेकर दरवाजे पर बैठ जाती,,उनके हाथ में एक कागज की पुडिया हुआ करती थी,,जब वह पुडिया खोलती तो मैं रोज पूछती इसे ग्लास में डालोगे ? वह कहती नहीं इसे पेट में डालूंगी और वह चूरन फांक कर पानी पी लेती थी,,आज मैं सोचती हूँ की मैं बार बार यह सवाल क्यों करती थी।.---क्रमशः ---
मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts
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