सत्य
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कितने
बड़े "मैं"की छत्रछाया में
,
जीता
है "मैं"
मौत
आते ही ,
खो
जाता है "मैं"
"मैं"
का नाम "मैं" का ओहदा,
"मैं"के रिश्ते ,"मैं"
की शोहरत
"मैं"
का सम्मान ,
रह
जाती है "बॉडी"
गर
अस्पताल में मरता है,
तो
डॉक्टर कहता है ,
"बिल"जमा करा दें ,फिर ले जाएँ "बॉडी"
हादसे
या क़त्ल की शक्ल में
,
"पोस्टमार्टम"के बाद ले
जाएँ "बॉडी"
सबसे
अज़ीज़ सब से करीब
,
जल्दी
मचाते हैं ,
बिस्तर
से जल्दी उतारो "बॉडी"
धरती
पर रख दो "बॉडी"
जल्दी
से सामान लाओ,
"अर्थी"
सजाओ ,रिश्तेदारों को फोन लगाओ
,
आनन
फानन जमा हो जाती है
मित्रों
रिश्तेदारों की भीड़
और
फिर श्मशान चाहे जितनी भी दूर हो
चल
पड़ती है "अर्थी"
मित्रों
! रूकती नहीं है "अर्थी"
कंधे
भले ही बदलते रहते
हैं
रोकी
नहीं जाती है "अर्थी"
श्मशान
में, राख के ढेर में
तब्दील हो जाता है
चाहे
जितना भी बड़ा हो
"मैं" !!
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