KHUSHFAHMEE !!
बरसों से तुमने हमें
समझा था जैसा
क्या तुम हमें अब भी समझते हो
वैसे का वैसा
काठ का उल्लू
मिटटी का माधो
जिसे पहले की ही तरह दे सकते हो
तुम झांसे पे झांसा
करते रहे भ्रष्टाचार पे भ्रष्टाचार
बचा ही नहीं जनता के लिए ,विकास के लिए
इत्ता सा ,ज़रा सा,
लेकिन हमें तो लगता रहा हमारा वज़ूद
जैसे का तैसा
महंगाई जैसी थी
तनिक भी न हुई कम तुम्हारे राज में 67 बरस
अपराधियों के बुलंद हौंसलों का स्तर
दिखता रहा कितना बढ़ा चढ़ा सा
और भी जाने क्या क्या
और जाने कैसा कैसा
इतने जलाये रखे
उम्मीदों के दिए हमने तुमने
हर दिया एक एक कर बुझा दिया
हर दिल भी था बुझा बुझा सा
लेकिन ये हम हिन्दुस्तानियों की फितरत है
जब बुझने लगती है उम्मीद
बुझती है आशा
तब भड़कती है राख से चिंगारी
जो जला कर फिर से राख ही कर देती है
बड़ी से बड़ी कुर्सी को भी
दुनिया को दिखाती है तमाशा
अगर समझ सको तो समझ लो अब भी
ख़याल हमारे ,और हमारी बेबाक भाषा !
समझा था जैसा
क्या तुम हमें अब भी समझते हो
वैसे का वैसा
काठ का उल्लू
मिटटी का माधो
जिसे पहले की ही तरह दे सकते हो
तुम झांसे पे झांसा
करते रहे भ्रष्टाचार पे भ्रष्टाचार
बचा ही नहीं जनता के लिए ,विकास के लिए
इत्ता सा ,ज़रा सा,
लेकिन हमें तो लगता रहा हमारा वज़ूद
जैसे का तैसा
महंगाई जैसी थी
तनिक भी न हुई कम तुम्हारे राज में 67 बरस
अपराधियों के बुलंद हौंसलों का स्तर
दिखता रहा कितना बढ़ा चढ़ा सा
और भी जाने क्या क्या
और जाने कैसा कैसा
इतने जलाये रखे
उम्मीदों के दिए हमने तुमने
हर दिया एक एक कर बुझा दिया
हर दिल भी था बुझा बुझा सा
लेकिन ये हम हिन्दुस्तानियों की फितरत है
जब बुझने लगती है उम्मीद
बुझती है आशा
तब भड़कती है राख से चिंगारी
जो जला कर फिर से राख ही कर देती है
बड़ी से बड़ी कुर्सी को भी
दुनिया को दिखाती है तमाशा
अगर समझ सको तो समझ लो अब भी
ख़याल हमारे ,और हमारी बेबाक भाषा !
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