बिजोन बाशिनी —
शायद ही कह पाऊँ कहानी
उसकी जो है मेरी जननी
वो जो कभी बालिका सी जनमी
युवावस्था में कल -कल “तरणी”
उसकी जो है मेरी जननी
वो जो कभी बालिका सी जनमी
युवावस्था में कल -कल “तरणी”
जब देखा बिटिया को अपनी
गुरु गंभीर सुगढ़ सयानी
नाम दिया तब उसे पिता ने
वन में रहती “बिजोन बाशिनी ”
गुरु गंभीर सुगढ़ सयानी
नाम दिया तब उसे पिता ने
वन में रहती “बिजोन बाशिनी ”
शिक्षा पाना ध्येय बनाया
कठोर मार्ग से भी ना डिगी
उच्च शिक्षा से महिमा मंडित हो
ईमानदार “प्राचार्या”बनी
कठोर मार्ग से भी ना डिगी
उच्च शिक्षा से महिमा मंडित हो
ईमानदार “प्राचार्या”बनी
स्नेहल कर्मठ जीवन जीकर
बनी “आधारशिला” वो घर की
स्वयं सिद्धा सी आदर्श बनी
घर की पूर्ण “कार्यकारिणी”
बनी “आधारशिला” वो घर की
स्वयं सिद्धा सी आदर्श बनी
घर की पूर्ण “कार्यकारिणी”
जैसे है अपनी “अवनी”
कष्ट सह कर भी देती ही रहती
तन क्षरण होने तक ,”आयुष भर”
धन धान्य , धन्य धरणी !!
कष्ट सह कर भी देती ही रहती
तन क्षरण होने तक ,”आयुष भर”
धन धान्य , धन्य धरणी !!
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