Kshamadayeeni !!
क्षमा दायिनी ——–
जाने किस जहान में ,पहुँच गयी हो तुम
क्यों हमसे नज़र बचा के ,यूँ खो गई हो तुम
अभी तो तुम यहीं थी ,अभी “नहीं रही “तुम
क्या मुझसे खफा हुई हो ,नाराज़ हो गई हो
तुम्हे ढूंढती हैं नज़रे ,ढूंढती है “रूह” मेरी
कहीं नज़र नहीं क्यूँ आती,कहाँ तुम छुप गई हो
है कौन सी वो दुनिया,”कायदा”वहां ये कैसा
जहाँ जाके “जज़्ब” होता,”बा-वज़ूद”अभी था ,वो “बे-वज़ूद “होता
शिकायत मुझे है उससे ,जिसने तुम्हे चुराया
“दौलत”थी तुम हमारी ,जो अब लुट चुकी है
“फ़र्ज़”पूरे कर सके ना,”क़र्ज़”इतने छोड़ गई हो
मुझको “मुआफ “कर दो,गर भूल कुछ हुई हो
जान कर के “नादां “,तुम तो “”क्षमामयी” हो
आखिर तुम्हारी हूँ “बेटी”तुमसे जुदा नहीं हूँ ,
हमेशा रहोगी दिल में,बन कर के “ज़िन्दगी”तुम
“लिखती”रहूंगी तुमको ,अपनी कलम से हरदम
“श्रद्धा “तुम्ही हो मेरी,”श्रद्धांजली “है तुमको
“महसूस “होगी हरदम,जहाँ तुम “बसी”हुई थी
“निर्जीव”सी वस्तुओं में,जिनको “छुआ “था तुमने,
उन “वस्तुओं”को छूकर,”विव्हल”हो रही हूँ,
अनुभूति तुम्हारे “स्पर्ष “की ,”आशीष”बन रही है,
“विश्वास “भी है मुझको,और “प्रार्थना”प्रभु से ,
तुमको मिले वो “श्रेष्ठतम “जो है उसकी “तिजोरी”में
तृण सा भी कोई “कष्ट”कभी दिखाई भी दे ना तुमको
आनंद ही आनंद का वरदान मिले तुमको
“प्रभु की छत्रछाया”सदा,तुम पर बनी हुई हो !!