एक दूजे को देते सम्मान
अब सुनाई दे रहे है –दो शब्द
“असहनशीलता””असहिष्णुता”
और दिखाई भी दे रहा है इसका प्रभाव
पहले साहित्यकारों के पुरस्कार
और अब सैनिक लौटा रहे
मेडल,पदक व् सब सम्मान
इससे पहले की असहनशीलता
अराजकता बन जाए
अच्छा हो कि जाग जाए सरकार
बंद करे नाटक नौटंकी
मनाना ये दौड़ और वो “सप्ताह ”
काम करे बस काम के अलावा कुछ ना करे
यदि बचानी है बची खुची साख
केजरीवाल के शिष्य बने सब
सीखे ,कैसे किया जाता है
तय बजट से भी काम लागत में
ईमानदारी से होते काम
रोक लगाएं भ्रष्टाचार पर
विदेश यात्रा को ” नमस्कार ”
याद रखे की राजा नहीं है
सदा का नहीं है “राजपाट”
वही चुना जायेगा आगे
जो नीयत रखता होगा साफ़
काम करेगा जनकल्याण का
जैसे अपनी पार्टी “आप”