दीवानी सी —
याद करती हूँ जब बचपन ,तो आती है हंसी
कैसा था मेरा बचपन ,और मैं भी थी कैसी
पेन बेचने वाला आने वाला था आज स्कूल में
मेरी जेब में भी था एक रुपैय्या
पेन की खरीदी जो थी करनी
रंग बिरंगे पेन थे उसके पास
लाल नीला पीला हरा बैंगनी
सभी थे आकर्षक ,और हर रंग की थी अपनी कहानी
इधर हाथ बढाती तो बुलाता उधर से
उधर बढाती तो इधर से आवाज़ आती
लेकिन लेना तो एक ही था,सो ,लाल ही ,उठा ली
सबने लिए पसंद के रंग, अपनी अपनी
अब दूसरे दिन की सुनो कहानी
पेड़ के नीचे गोलाकार में कक्षा थी लगी
एक लड़का ,जिसका नाम था सत्यनारायण
बैठा था मेरे ठीक सामने ,जिसका पेन था नीला
अब नीला रंग ललचा रहा था मुझे
मैंने इशारे से उससे उसके पेन की मांग की
दोनों हाथों में दोनों पेन लेकर तुलना की
ना छूट रहा था लाल ,ना नीला ही
मैंने फटाफट अपने लाल पेन पर
उसके नीले पेन की कैप लगा ली
और उसे नीले पर लाल लगा कर लौटा दी
वह दोनों हाथों के इशारे से पूछता ही रहा
क्या क्यों किसलिए ,लेकिन मैंने नज़रें घुमा लीं
मैंने एक रुपैये के पेन में दो रंगों की पायी थी जो ख़ुशी !
बस मैं थी ऐसी ही, दीवानी सी !