दो शहंशाहों की दास्तान —–
आपने सुने होंगे ये दो लफ्ज़
“तुगलकी फरमान”
एक थे मोहम्मद तुगलक
जिन्होंने इजाद किये थे चमड़े के सिक्के
लोगों ने घर घर में खोल लीं टकसालें,
और ढलने लगे चमड़े के सिक्के
बदल कर बनाई थी राजधानी
दिल्ली से दौलताबाद ,
और सारी जनता को हुक्म दिया पहुंचे दौलताबाद,
गर्मी भूख और प्यास से ,
पैदल चलते लोगों में ,आधे हो गए अल्लाह को प्यारे
और कुछ ही वक़्त में वापस दौलताबाद से दिल्ली का
फिर सुनाया फरमान
बचे हुओं में बहुत से वापसी में हो गए फनाह
या अल्लाह ! या अल्लाह !
अब सुनो दूसरे की दास्तान
हुआ करता था एक और शहंशाह
नाम था औरंगजेब
सब कुछ था उसके पास
नाम ,शोहरत और शान
लेकिन शक्की था ,झक्की था
कभी ना होता था मुतमईन
कभी करता था ना किसी पे यकीन
शहंशाह होते हुए भी सिलता था टोपियां
उन्हें बेच कर मिले पैसों से ,
बनाया करता था खुद के लिए अंगीठी पर खिचड़ी,
के दूसरा कोई ज़हर ना मिला दे खाने में ,
क्या बात है ,वल्लाह ! सुबहान अल्लाह !
“तुगलकी फरमान”
एक थे मोहम्मद तुगलक
जिन्होंने इजाद किये थे चमड़े के सिक्के
लोगों ने घर घर में खोल लीं टकसालें,
और ढलने लगे चमड़े के सिक्के
बदल कर बनाई थी राजधानी
दिल्ली से दौलताबाद ,
और सारी जनता को हुक्म दिया पहुंचे दौलताबाद,
गर्मी भूख और प्यास से ,
पैदल चलते लोगों में ,आधे हो गए अल्लाह को प्यारे
और कुछ ही वक़्त में वापस दौलताबाद से दिल्ली का
फिर सुनाया फरमान
बचे हुओं में बहुत से वापसी में हो गए फनाह
या अल्लाह ! या अल्लाह !
अब सुनो दूसरे की दास्तान
हुआ करता था एक और शहंशाह
नाम था औरंगजेब
सब कुछ था उसके पास
नाम ,शोहरत और शान
लेकिन शक्की था ,झक्की था
कभी ना होता था मुतमईन
कभी करता था ना किसी पे यकीन
शहंशाह होते हुए भी सिलता था टोपियां
उन्हें बेच कर मिले पैसों से ,
बनाया करता था खुद के लिए अंगीठी पर खिचड़ी,
के दूसरा कोई ज़हर ना मिला दे खाने में ,
क्या बात है ,वल्लाह ! सुबहान अल्लाह !
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