बचपन में खेला करती थी
तरह तरह के खेल
घर – घर,और उसमे बनाई,
दाल – चावल ,और मिठाई ,
गुड्डे गुड़िया की शादी
और फिर गुड़िया की बिदाई
जब खेल ख़त्म होता,
मैं कहती ,”ए ! मेरी गुड़िया वापस कर दे ”
वो कहती “लेकिन उसकी तो हो गई बिदाई”
“वो सब मुझे पता नहीं,मेरी गुड़िया वापस दे दे
मै पैर पटकती, ज़ोर ज़ोर से चिल्लाई
वो जल्दी से गुड़िया लौटा देती
आज दिल कहता है, काश ! भगवान के साथ भी
खेल ही खेल रही होती
और कहती उससे ,”नहीं भई ! ये भी भला कोई बात हुई ?
तुमने क्यों मेरी मम्मी की कर दी बिदाई ?
मेरी मम्मी वापस कर दो मुझे ,और उसे वापस करनी पड़ती मजबूरन
मेरी माँ ! मेरी मम्मी !,मेरी माई !मेरी”आई”!
तरह तरह के खेल
घर – घर,और उसमे बनाई,
दाल – चावल ,और मिठाई ,
गुड्डे गुड़िया की शादी
और फिर गुड़िया की बिदाई
जब खेल ख़त्म होता,
मैं कहती ,”ए ! मेरी गुड़िया वापस कर दे ”
वो कहती “लेकिन उसकी तो हो गई बिदाई”
“वो सब मुझे पता नहीं,मेरी गुड़िया वापस दे दे
मै पैर पटकती, ज़ोर ज़ोर से चिल्लाई
वो जल्दी से गुड़िया लौटा देती
आज दिल कहता है, काश ! भगवान के साथ भी
खेल ही खेल रही होती
और कहती उससे ,”नहीं भई ! ये भी भला कोई बात हुई ?
तुमने क्यों मेरी मम्मी की कर दी बिदाई ?
मेरी मम्मी वापस कर दो मुझे ,और उसे वापस करनी पड़ती मजबूरन
मेरी माँ ! मेरी मम्मी !,मेरी माई !मेरी”आई”!
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