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बुधवार, 7 सितंबर 2016

Maa !!

माँ—–
धीरे से पुकारो ,ज़ोर से पुकारो
ज़िद से पुकारो,रूठ के पुकारो,
मनाने के लहज़े में पुकारो,
एक बार “माँ”पुकारो
लगेगा इस लफ्ज़ में समाई हो,
सारी खुदाई
सारी कायनात मुब्तला हो
इस जैसा मुक़द्दस लफ्ज़
और पाकीज़ा वजूद
कोई दूसरा नहीं खुदा के बाद,
हर शख्स ने चाहा था,
खुदा उसके पास रहे,उसके साथ रहे
लेकिन ये कैसे मुमकिन होता ,
खुदा ने तब अपने बन्दों के लिए
एक राह सूझी
उसने “माँ”को अपनी “नुमाइंदगी दी ”
जिसके कदमो में थी जन्नत,
उसने घर घर भेज दी माँ,
जिसकी छाँह में पुरसुकून ज़िंदगी मिली,
हर खानदान को,
जिसने अपने बच्चों को दिया,अमन-ओ-अखलाक़ का सबक
वो फल्सफा जिसने दुनिया में
खुदा की मौजूदगी दर्ज़ कराई
अब हर शख्स के पास अपना अपना खुदा होता है,
मैंने अपना खो दिया है,
आँखों में मेरे सैलाब है ,
और हाथ उट्ठे हैं दुआ के लिए ,
“उसे ज़न्नत नशीन करना ”
“या मेरे मौला !तेरी रहमत की तलबगार हूँ
उसे बहिश्त अता करना !!!

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