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शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

Koshishen !!

कभी इस सिरे को पकड़ा तो
छूटता रहा दूसरा हाथ से
कोशिश करते रहे सबकुछ समेटने की पूरी ज़िन्दगी ,
नाराज़ होते रहे हमसे लोग
और हम कोशिशें करते रहे कभी इसे कभी उसे मनाने की
ढूंढते रहे अपनी खामियों को
झांकते रहे अपने गरेबान को बार बार
लानत मलामत करते रहे खुद की
खामोश रहे ,जुबां को सिले हुए कभी
कभी फट पड़े किसी दबे गुबार से
इन कोशिशो में तमाम,
हरदम खुद ही बिखरते रहे पुर्ज़ा पुर्ज़ा
समेटने की कोशिश जारी है
आगे ऊपरवाले की मर्ज़ी है !

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