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रविवार, 11 सितंबर 2016

Zindagi Ka Sach !!

बचपन में चहचहाते गुज़रती है ज़िन्दगी ,
जवानी फुर्र सी उड़ा देती है ज़िन्दगी
विधवा तलाकशुदा हो जाए बेटी तो
कहते हैं कैसे कटेगी पहाड़ सी ज़िन्दगी
ख़ुदकुशी किसानो की,
देखो तो कैसे किनारा कर रही है ज़िन्दगी
एक ढर्रे पे चले तो रूखी सी लगती है ज़िन्दगी
मेहनत मशक्कत के बाद ,सिर्फ दो जून की रोटी
भी होती है ज़िन्दगी ,
बार में चीयर्स , नो इकोनॉमिक फीयर्स,
ऐसी होती है,अमीरों की ज़िन्दगी
पांच बरस तक शहंशाह बन कर,जीते नेता की ज़िन्दगी
कीड़े मकौड़ों सी दिखे जनता ,इनकी आसमानो में उड़ती ज़िन्दगी
कुदरत जब दिखाती है अपना वजूद ,ढाती है कहर
आते हैं तूफ़ान ,आते हैं जलजले ,तो महज दो मिनिट में,
नेस्तनाबूद हो ,दफ्न हो जाती है ज़मीन की गहराइयों में ज़िन्दगी
तादाद में हज़ारों होती है तब ज़िन्दगी
दोस्तों! छोटी सी है ज़िन्दगी ,
अभी शुरू,अभी ख़त्म हुई ज़िन्दगी
दुरुस्त कर लो ,संवार लो ,बिगड़ी बातों को बना लो
आज से ,अभी से,क्या जाने अगले पल रहे न रहे ज़िन्दगी
हसरतें कर लो पूरी
,क्या जाने रूपया रूपया करते गुज़ारी जो तुमने
ज़मींदोज़ हो जाए रुपये के साथ ,वो ही ज़िन्दगी !!!!!!!!

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