आराधना————————-
मेरा छोटा सा संसार,
सुख शांति का हो आगार,
बंधे हुए इसमें संस्कार,
सत्य है इसका आधार।
बुरी नज़र से इसे बचाना,
अपने संरक्षण में रखना,
अपनी ओट,अपनी सुरक्षा,
इस घर से तुम नहीं हटाना।
सद्बुद्धि सदैव ही देना,
सुख शांति संतोष का दान,
मैं जानू इसको ही धन,
बने रहें इससे धनवान।
कुबुद्धि,असंतोष अशांति,
वर्जित हो इसका आना,
सुसंस्कारी,शांत,संतोषी,
बने रहें,तेरी संतान।
मेरा कुछ भी ना है मेरा,
जो कुछ है प्रभु सबकुछ तेरा,
तेरा यह घर,तू ही संवार ,
मैं तुच्छ करूँ तेरा परिचार!
अभिषेक——————————-
प्रतिदिन प्रतिपल माँगा हे प्रभु!
तुझसे कुछ ना कुछ,
अपने लिये शायद ही कुछ,
अपनों के लिए सबकुछ।
तू ही तो है,जो देता ही ,
रहता है,कुछ ना कुछ,
तेरे सिवा है ही कौन,
देता रहता ,रह कर मौन।
तू परमपिता, मैं तेरा ही सृजन,
तूने जो कुछ भी दिया,
प्रसाद समझ कर किया गृहण ,
तेरा अस्तित्व रहे,समीपतम।
तू सखा है,तू निर्देशक,
तू पिता तू ही है ईश्वर,
मैं अज्ञानी तेरी संतान,
तुझ पर निर्भर,तू कर कल्याण।
उंगली थाम चालाता आया,
ठोकर गड्ढों से बचत आया,
छोड़ न देना प्रभु मेरा हाथ,
तू प्रभु है,तू जगन्नाथ।
तू कैसे होता है प्रसन्न,
नहीं जानती हूँ आसन्न,
शेह भक्ति तो है आकंठ,
हे राम,श्याम,हे नीलकंठ।
तू कहलाता औघड़ दानी,
हे ईश्वर हे दयानिधान,
भरता रहता तू मेरी झोली,
मैं मूर्ख चढ़ाती अश्रु अंजलि।
यही श्रद्धा यही भक्ति है,
यही है मेरी आराधना,
यही पूजा,यही मेरी अर्चना,
यही आरती यही साधना।
सारे संसार में मानू स्वयं को,
सबसे अधिक मूढ़ मैं एक,
हे प्रभु मुझको भूल न जाना,
श्रद्धा युक्त है यह अभिषेक।
नैना——————–
गौरी तेरे ये दो नैन,
अंजन जैसे खंजन नैन,
पलक उठे तो हुआ सवेरा,
पलक झपकते छाए रैन।
जैसे दो प्रज्वल दीप सहन में,
राहगीर को देते चैन,
शब्द नहीं आवाज़ नहीं,
फिर भी बोलेँ सारे बैन।
प्रश्न कई उत्तर कई,
प्रभु की यह अनमोल देन,
इनमे जीवन इनमे हर्ष,
इनमे जग का सब सुख चैन।
मेरा छोटा सा संसार,
सुख शांति का हो आगार,
बंधे हुए इसमें संस्कार,
सत्य है इसका आधार।
बुरी नज़र से इसे बचाना,
अपने संरक्षण में रखना,
अपनी ओट,अपनी सुरक्षा,
इस घर से तुम नहीं हटाना।
सद्बुद्धि सदैव ही देना,
सुख शांति संतोष का दान,
मैं जानू इसको ही धन,
बने रहें इससे धनवान।
कुबुद्धि,असंतोष अशांति,
वर्जित हो इसका आना,
सुसंस्कारी,शांत,संतोषी,
बने रहें,तेरी संतान।
मेरा कुछ भी ना है मेरा,
जो कुछ है प्रभु सबकुछ तेरा,
तेरा यह घर,तू ही संवार ,
मैं तुच्छ करूँ तेरा परिचार!
अभिषेक——————————-
प्रतिदिन प्रतिपल माँगा हे प्रभु!
तुझसे कुछ ना कुछ,
अपने लिये शायद ही कुछ,
अपनों के लिए सबकुछ।
तू ही तो है,जो देता ही ,
रहता है,कुछ ना कुछ,
तेरे सिवा है ही कौन,
देता रहता ,रह कर मौन।
तू परमपिता, मैं तेरा ही सृजन,
तूने जो कुछ भी दिया,
प्रसाद समझ कर किया गृहण ,
तेरा अस्तित्व रहे,समीपतम।
तू सखा है,तू निर्देशक,
तू पिता तू ही है ईश्वर,
मैं अज्ञानी तेरी संतान,
तुझ पर निर्भर,तू कर कल्याण।
उंगली थाम चालाता आया,
ठोकर गड्ढों से बचत आया,
छोड़ न देना प्रभु मेरा हाथ,
तू प्रभु है,तू जगन्नाथ।
तू कैसे होता है प्रसन्न,
नहीं जानती हूँ आसन्न,
शेह भक्ति तो है आकंठ,
हे राम,श्याम,हे नीलकंठ।
तू कहलाता औघड़ दानी,
हे ईश्वर हे दयानिधान,
भरता रहता तू मेरी झोली,
मैं मूर्ख चढ़ाती अश्रु अंजलि।
यही श्रद्धा यही भक्ति है,
यही है मेरी आराधना,
यही पूजा,यही मेरी अर्चना,
यही आरती यही साधना।
सारे संसार में मानू स्वयं को,
सबसे अधिक मूढ़ मैं एक,
हे प्रभु मुझको भूल न जाना,
श्रद्धा युक्त है यह अभिषेक।
नैना——————–
गौरी तेरे ये दो नैन,
अंजन जैसे खंजन नैन,
पलक उठे तो हुआ सवेरा,
पलक झपकते छाए रैन।
जैसे दो प्रज्वल दीप सहन में,
राहगीर को देते चैन,
शब्द नहीं आवाज़ नहीं,
फिर भी बोलेँ सारे बैन।
प्रश्न कई उत्तर कई,
प्रभु की यह अनमोल देन,
इनमे जीवन इनमे हर्ष,
इनमे जग का सब सुख चैन।
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