असलियत——————
दो हिस्सों में बंटी हुई है,ये सारी की सारी दुनिया,
एक ऐश मौज है करता,दूजा है बड़ा गुजरा गया,
दौलत और ताकत की बदौलत,एक की मुट्ठी में दुनिया,
दूजा मेहनत करे मशक्कत,ईमानदारी ने जीने न दिया,
यह दूजा हिस्सा सदियों से,रौंदा और कुचल दिया ,
इसको खिदमतगार बनाया,जी भर कर इस्तेमाल किया,
कौड़ियों में खरीदा पहले ने,कौड़ियों में दूजा बिक गया,
ईमान नमक हलाली को,बेवकूफी का नाम दिया,
दूध मलाई खुरचन तक भी पहला हिस्सा हड़प गया,
सूखे होठों पर जीभ फेरता,देखता ही दूजा रह गया,
दौलत को दौलत ने खींचा,ताकत शोहरत भी पा गया,
दूजा बेनामी की जिंदगी जिया,बेनाम ही मर गया,
सात पुश्तों के जीने का पहले ने बंदोबस्त किया,
एक से तीस,तारीख खींचते,दूजा मर मर के जिया,
सदियों का इतिहास यही,सदियों से चलता आया,
सब उसकी संतान हैं,लेकिन इक हाकिम इक है रिआया!
हैरान———————-
सोच सोच कर हैरान हूँ,
कहाँ कहाँ से गुजर गई,
कितने लोग और किस तरह के लोग,
जिंदगी में हुए दाखिल और बिछुड़ गए,
कुछ दो कदम साथ चले,
कुछ इस उस मोड़ पर हुए अलविदा,
कई होंगे जिन्हें शायद भूल गई हूँ मैं,
कईयों ने मुझे भुला दिया होगा,
लेकिन कुछ चेहरे गहरे रंग से
छाए हुए हैं जहन पर!
शब्द-अर्थ–जहन –मन
आह———–
दिल की कसक जो आह नहीं बन पाती,
गम की आग जो जलाती नहीं,
सुलगाती है शाम ओ सहर,
दिल जो खाक होता नहीं जल कर,
बस उठाता हैं धुँआ,
हसरतें,आरजुएं जो पूरी नहीं होतीं
बस सालती रहतीं हैं,
दुनिया के दिये ज़ख्म जो कभी नहीं भरते,
उठाते हैं टीस
आंसू,जो आँखों से नहीं झरते,
वे स्याही बनकर,
बिखर जाते हैं कागज पर!
दो हिस्सों में बंटी हुई है,ये सारी की सारी दुनिया,
एक ऐश मौज है करता,दूजा है बड़ा गुजरा गया,
दौलत और ताकत की बदौलत,एक की मुट्ठी में दुनिया,
दूजा मेहनत करे मशक्कत,ईमानदारी ने जीने न दिया,
यह दूजा हिस्सा सदियों से,रौंदा और कुचल दिया ,
इसको खिदमतगार बनाया,जी भर कर इस्तेमाल किया,
कौड़ियों में खरीदा पहले ने,कौड़ियों में दूजा बिक गया,
ईमान नमक हलाली को,बेवकूफी का नाम दिया,
दूध मलाई खुरचन तक भी पहला हिस्सा हड़प गया,
सूखे होठों पर जीभ फेरता,देखता ही दूजा रह गया,
दौलत को दौलत ने खींचा,ताकत शोहरत भी पा गया,
दूजा बेनामी की जिंदगी जिया,बेनाम ही मर गया,
सात पुश्तों के जीने का पहले ने बंदोबस्त किया,
एक से तीस,तारीख खींचते,दूजा मर मर के जिया,
सदियों का इतिहास यही,सदियों से चलता आया,
सब उसकी संतान हैं,लेकिन इक हाकिम इक है रिआया!
हैरान———————-
सोच सोच कर हैरान हूँ,
कहाँ कहाँ से गुजर गई,
कितने लोग और किस तरह के लोग,
जिंदगी में हुए दाखिल और बिछुड़ गए,
कुछ दो कदम साथ चले,
कुछ इस उस मोड़ पर हुए अलविदा,
कई होंगे जिन्हें शायद भूल गई हूँ मैं,
कईयों ने मुझे भुला दिया होगा,
लेकिन कुछ चेहरे गहरे रंग से
छाए हुए हैं जहन पर!
शब्द-अर्थ–जहन –मन
आह———–
दिल की कसक जो आह नहीं बन पाती,
गम की आग जो जलाती नहीं,
सुलगाती है शाम ओ सहर,
दिल जो खाक होता नहीं जल कर,
बस उठाता हैं धुँआ,
हसरतें,आरजुएं जो पूरी नहीं होतीं
बस सालती रहतीं हैं,
दुनिया के दिये ज़ख्म जो कभी नहीं भरते,
उठाते हैं टीस
आंसू,जो आँखों से नहीं झरते,
वे स्याही बनकर,
बिखर जाते हैं कागज पर!
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