अंततः मन ही मनुष्य का निर्माता है और सृजन कि दुनिया में मन के विकास का प्रतीक ही मानव है ,मन सृजन की पराकाष्ठा है।
जो दैवी है वह स्थाई यथार्थ है और आधुनिक मानव के मन की पीड़ाओं का ,उसकी दुखी आत्मा का उपचार ,केवल सही पुनर्जीवन में है जिससे विज्ञानं मधुर बनता है वासनाओं का शमन होता है।
जो काम हाथ में आए उसे ही पूरी लगन ,योग्यता ,एवं शक्ति से करो तभी सफलता मिलेगी ,स्मरण रहे मनपसंद काम का मिलना भाग्य या परिस्थिति के हाथ में है परन्तु हर काम को मनपसंद बना लेना अपने हाथ में है। —-विधान चन्द्र राय
प्रगति का रथ धीरे बढता है जिसने अपना हाथ हल की मूठ पर रख दिया है वह पीछे मुड़ कर नही देख सकता। —-सुरेन्द्र नाथ बेनर्जी
जिंदगी वह जो काँटों पर खिले ,पाषाणों पर पले। यों कष्ट कहाँ नहीं हैं,कहाँ नहीं हैं दुसह यातनाएं किन्तु धन्य हैं वे जो विपत्तियों को वरदान जानकार हंसते हंसते जी लेते हैं विश्वास की डोर तो नहीं टूटती है। हर लहर का एक किनारा हर रात की एक सुबह अवश्य होती है और तब रजत प्रभात विहँसता हुआ स्वर्णिम स्वप्नो के द्वारा खटखटाता है सोए हुए सारे सपने तब साकार होकर जी उठाते हैं दूसरों को भी जीने की प्रेरणा देते हैं।
शोर करने से कुछ नहीं होता सिर्फ एक अंडा देते समय मुर्गी ऐसे कुड़कुड़ाती है मनो आसमान सर पर उठा लेगी।
बीस की उम्र होते ही आदमी सोचता हैं कि संसार को विनाश के कगार से वही बचा सकता है पर तीसवां लगते ही उसे यह चिंता सताने लगाती है कि किस तरह तनख्वाह का कुछ हिस्सा बचा लूँ
प्रेम मदिरापान के सामान है विवाह अगले सवेरे का सिरदर्द और तलाक एस्प्रिन की गोली।
विवाह के पहले पुरुष स्त्री की कामना करता है और उसके बाद सिर्फ एक काम करता है ,स्त्री के लिए कमाना।
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