शान्ताकारम भुजगशयनं पद्मनाभम सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृश्यम मेघवर्णम शुभांगम
लक्ष्मीकांतं कमलनयंम योग विरध्यान गम्यम
वनडे विष्णु भव भय हरम सर्व लौकेक नाथम!
समुद्रवसने देवी पर्वतस्तन मंडले
विशनी पत्नि नमस्तुभ्यम पादस्पर्श क्षमस्व में !!
शांतं शाश्वतं प्रमेय मनधम निर्वाण शांति प्रदे
ब्रम्हा शम्भू फणीन्द्र सेव्य मानिषम वेदांत वेद्यम विभुम
रामाख्यम जगदीश्वरं सुरगुरुम माया मनुष्यम हरी
वंदेहं करुणाकरं रघुवरम भूपाल चूड़ामणि !!
नान्या स्पृहा रघुपते ह्रदये अस्मदीये
सत्यम वदामि च भवना खिलान्त रात्मा
भक्ति प्रयच्छ रघु पुंगव निर्भरां में
कामादि दोष रहितं कुरु मानसं च
ध्यानम श्रुणु महादेवी सर्वानंद प्रदायक
सर्व सौख्य कर्म नित्यं भुक्ति मुक्ति विधायकम
श्रीमद परब्रम्हगुरुम स्मरामि
श्रीमद परब्रम्ह गुरुम यजामी
श्रीमद परब्रम्ह गुरुम नमामि
श्रीमद परब्रम्ह गुरुम भजामि
ब्रम्हानंदं परम सुखदम केवलं ज्ञानमूर्ति
द्वंद्वातीतं गगन सदृश्यम तत्वमस्यादिलक्षयम
एक नित्यं विमल मचलं सावधि साक्षीभूतं
भावातीत त्रिगुण रहितं सद्गुरु तम नमामि
नित्यं शुद्धम निराभासम निराकारं निरंजनम
नित्य बोध चिदानंदम सद्गुरु तं नामाम्यहम
ह्रदभुजे कार्णिक मध्य संस्थे
सिंहासने संस्थित दिव्य मूर्तिम
ध्यायेत गुरु चंद्रकला प्रकाशम
चित पुस्तका भिष्ट वरम दधानम
श्वेताम्बरम श्वेत विलेप पुष्पम
मुक्ताम विभूषम मुदितं द्विनेत्रम
वामार्कपीठ स्थित दिव्य शक्ति
मन्दस्मितम सान्द्र कृपा निधानम
विश्वाधारं गगनसदृश्यम मेघवर्णम शुभांगम
लक्ष्मीकांतं कमलनयंम योग विरध्यान गम्यम
वनडे विष्णु भव भय हरम सर्व लौकेक नाथम!
समुद्रवसने देवी पर्वतस्तन मंडले
विशनी पत्नि नमस्तुभ्यम पादस्पर्श क्षमस्व में !!
शांतं शाश्वतं प्रमेय मनधम निर्वाण शांति प्रदे
ब्रम्हा शम्भू फणीन्द्र सेव्य मानिषम वेदांत वेद्यम विभुम
रामाख्यम जगदीश्वरं सुरगुरुम माया मनुष्यम हरी
वंदेहं करुणाकरं रघुवरम भूपाल चूड़ामणि !!
नान्या स्पृहा रघुपते ह्रदये अस्मदीये
सत्यम वदामि च भवना खिलान्त रात्मा
भक्ति प्रयच्छ रघु पुंगव निर्भरां में
कामादि दोष रहितं कुरु मानसं च
ध्यानम श्रुणु महादेवी सर्वानंद प्रदायक
सर्व सौख्य कर्म नित्यं भुक्ति मुक्ति विधायकम
श्रीमद परब्रम्हगुरुम स्मरामि
श्रीमद परब्रम्ह गुरुम यजामी
श्रीमद परब्रम्ह गुरुम नमामि
श्रीमद परब्रम्ह गुरुम भजामि
ब्रम्हानंदं परम सुखदम केवलं ज्ञानमूर्ति
द्वंद्वातीतं गगन सदृश्यम तत्वमस्यादिलक्षयम
एक नित्यं विमल मचलं सावधि साक्षीभूतं
भावातीत त्रिगुण रहितं सद्गुरु तम नमामि
नित्यं शुद्धम निराभासम निराकारं निरंजनम
नित्य बोध चिदानंदम सद्गुरु तं नामाम्यहम
ह्रदभुजे कार्णिक मध्य संस्थे
सिंहासने संस्थित दिव्य मूर्तिम
ध्यायेत गुरु चंद्रकला प्रकाशम
चित पुस्तका भिष्ट वरम दधानम
श्वेताम्बरम श्वेत विलेप पुष्पम
मुक्ताम विभूषम मुदितं द्विनेत्रम
वामार्कपीठ स्थित दिव्य शक्ति
मन्दस्मितम सान्द्र कृपा निधानम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें