स बिंदु सिंधु सुस्खल तरंग भंग रंजितं
द्विषासु पाप जात जात कारि वारि संयुतं
कृतांत दूत काल भूत भीति हारि वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
त्वदंबु लीं दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकं
कलौ मलौघ भर हारि सर्व तीर्थ नायकं
समुत्स्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे
माह गभीर नीर पूर पाप धूत भूतलं
ध्वनत समस्त पाप कारि दारिता पदाचलम
जगल्लये महा भये मृकंड सुनु हर्मदे
त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे
गतं तदैव में भयं तदम्बुवीक्षितं यदा
मृकंड सुनु शौनका सुरारि सेवी सर्वदा
पुनर्भबाब्धि जन्मजं भावादि दुःख वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे
अलक्ष लक्ष किन्नरा नरा सुरादि पूजितं
सुलक्ष नीर तीर धरि पक्षि लक्ष कूजितं
वशिष्ट शिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
सनत्कुमार नाचिकेतकश्यपात्रि ष ट पदे
धृत स्वकीय मानसेषु नारदादि ष ट पदे
रविंदु रंतिदेव देवराज कर्म शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे
अलक्ष लक्ष पाप लक्ष सार सायुधं
ततस्तु जीव जंतु तंतु भुक्ति मुक्ति दायकं
विरंचि विष्णु शंकर स्वकीय धाम वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे
इदंतु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये सदा
पठन्ति ते निरंतरं न यान्ति दुर्गति कदा
सुलभ्य देह दुर्लभं महेश धाम गौरवं
पुनर्भवा नरा न वै विलोकयंति रौरवं
ॐ जयतु नर्मदे जयतु नर्मदे तीर्थ जननि हे आंबे माँ
ॐ जयतु नर्मदे जयतु शर्मदे सुखदायिनी शिवगंगे माँ
ॐ जयतु नर्मदे जयतु हंपदे हर हर विपत हमारी माँ
तेरे पद पंकज में रेवे सदा वंदना मेरी माँ !
द्विषासु पाप जात जात कारि वारि संयुतं
कृतांत दूत काल भूत भीति हारि वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
त्वदंबु लीं दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकं
कलौ मलौघ भर हारि सर्व तीर्थ नायकं
समुत्स्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे
माह गभीर नीर पूर पाप धूत भूतलं
ध्वनत समस्त पाप कारि दारिता पदाचलम
जगल्लये महा भये मृकंड सुनु हर्मदे
त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे
गतं तदैव में भयं तदम्बुवीक्षितं यदा
मृकंड सुनु शौनका सुरारि सेवी सर्वदा
पुनर्भबाब्धि जन्मजं भावादि दुःख वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे
अलक्ष लक्ष किन्नरा नरा सुरादि पूजितं
सुलक्ष नीर तीर धरि पक्षि लक्ष कूजितं
वशिष्ट शिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
सनत्कुमार नाचिकेतकश्यपात्रि ष ट पदे
धृत स्वकीय मानसेषु नारदादि ष ट पदे
रविंदु रंतिदेव देवराज कर्म शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे
अलक्ष लक्ष पाप लक्ष सार सायुधं
ततस्तु जीव जंतु तंतु भुक्ति मुक्ति दायकं
विरंचि विष्णु शंकर स्वकीय धाम वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजं नमामि देवी नर्मदे
इदंतु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये सदा
पठन्ति ते निरंतरं न यान्ति दुर्गति कदा
सुलभ्य देह दुर्लभं महेश धाम गौरवं
पुनर्भवा नरा न वै विलोकयंति रौरवं
ॐ जयतु नर्मदे जयतु नर्मदे तीर्थ जननि हे आंबे माँ
ॐ जयतु नर्मदे जयतु शर्मदे सुखदायिनी शिवगंगे माँ
ॐ जयतु नर्मदे जयतु हंपदे हर हर विपत हमारी माँ
तेरे पद पंकज में रेवे सदा वंदना मेरी माँ !
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