गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागूं पाय
बलिहारी गुरु आपकी जिन गोविन्द दियो बताय !
तुम गुरु दीनदयाल हो दाता अपरम्पार
मैं बुडू मझधार में पकड़ लगाओ पार !
भक्ति दान मोहे दीजिये गुरु देवन के देव
और नहि कछु चाहिए निस दिन तेरी सेव !
क्या मुख ले विनती करूँ लाज आवत है मोहि
तुम देखत अवगुण करूँ कैसे भाऊ तोहि !
अपराधी मैं जन्म का नख शिख भरा विकार
तुम दाता दुःख भंजना मेरी करो सम्हार !
भवसागर अति कठिन है गहन अगम अथाह
तुम दयाल दाया करौ तब पाऊं कछु थाह !
सुरति करो मेरे सांईया मैं हूँ भवजल माँहि
आप ही बाह जाऊँगा जो नहि पकड़ो बांह
अन्तर्यामी एक तुम सब जग के आधार
जो तुम छोडो हाथ से कौन उतारे पार !
गुरु समर्थ सिर पर खड़े कहा कमी तोहि दास
ऋद्धि सिद्धि सेवा करे मुक्ति न छाँड़े पास !
वो दिन कैसा होयगा जब गुरु गहेंगे बांह
अपना करि बैठाएंगे चरण कमल की छाँह !
जैसी प्रीती कुटुंब से तैसी गुरु से होय
चले जाओ वैकुण्ठ को बांह न पकड़े कोय !
गुरु दर्शन कर सहजिया गुरु का कीजै ध्यान
गुरु की सेवा कीजिये तजिये कुल अभिमान !
सिख के मानी सद्गुरु यदि झिड़के लखवार
सहजौ द्वार न छाँड़िये यही धारणा धार !
सद्गुरु दाता सर्व के तू कृपण कंगाल
गुरु महिमा जाने नहीं फस्यो मोह के जाल !
गुरु से कछु न दुराईये गुरु से झूठ न बोल
भली बुरी खोटी खरी गुरु आगे सब खोल !
सहजौ गुरु रक्षा करै मेरे सब संदेह
मन की जाने सद्गुरु कहाँ छिपावै अंध !
गुरु को कीजै दंडवत कोटि कोटि प्रणाम
कीट न जाने भृंग को गुरु करि ले आप समान !
सब तीर्थ गुरु के चरण ,नित ही परवी होय
जो चरनोडल लीजिये पाप रहित नहीं कोय !
सब पर्वत स्याही करूँ घोर समुद्र मझाय
धरती का कागज़ करूँ गुरुस्तुती न समाय !
बलिहारी गुरु आपकी जिन गोविन्द दियो बताय !
तुम गुरु दीनदयाल हो दाता अपरम्पार
मैं बुडू मझधार में पकड़ लगाओ पार !
भक्ति दान मोहे दीजिये गुरु देवन के देव
और नहि कछु चाहिए निस दिन तेरी सेव !
क्या मुख ले विनती करूँ लाज आवत है मोहि
तुम देखत अवगुण करूँ कैसे भाऊ तोहि !
अपराधी मैं जन्म का नख शिख भरा विकार
तुम दाता दुःख भंजना मेरी करो सम्हार !
भवसागर अति कठिन है गहन अगम अथाह
तुम दयाल दाया करौ तब पाऊं कछु थाह !
सुरति करो मेरे सांईया मैं हूँ भवजल माँहि
आप ही बाह जाऊँगा जो नहि पकड़ो बांह
अन्तर्यामी एक तुम सब जग के आधार
जो तुम छोडो हाथ से कौन उतारे पार !
गुरु समर्थ सिर पर खड़े कहा कमी तोहि दास
ऋद्धि सिद्धि सेवा करे मुक्ति न छाँड़े पास !
वो दिन कैसा होयगा जब गुरु गहेंगे बांह
अपना करि बैठाएंगे चरण कमल की छाँह !
जैसी प्रीती कुटुंब से तैसी गुरु से होय
चले जाओ वैकुण्ठ को बांह न पकड़े कोय !
गुरु दर्शन कर सहजिया गुरु का कीजै ध्यान
गुरु की सेवा कीजिये तजिये कुल अभिमान !
सिख के मानी सद्गुरु यदि झिड़के लखवार
सहजौ द्वार न छाँड़िये यही धारणा धार !
सद्गुरु दाता सर्व के तू कृपण कंगाल
गुरु महिमा जाने नहीं फस्यो मोह के जाल !
गुरु से कछु न दुराईये गुरु से झूठ न बोल
भली बुरी खोटी खरी गुरु आगे सब खोल !
सहजौ गुरु रक्षा करै मेरे सब संदेह
मन की जाने सद्गुरु कहाँ छिपावै अंध !
गुरु को कीजै दंडवत कोटि कोटि प्रणाम
कीट न जाने भृंग को गुरु करि ले आप समान !
सब तीर्थ गुरु के चरण ,नित ही परवी होय
जो चरनोडल लीजिये पाप रहित नहीं कोय !
सब पर्वत स्याही करूँ घोर समुद्र मझाय
धरती का कागज़ करूँ गुरुस्तुती न समाय !
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