जो सुमिरत सिद्धी होय गणनायक करिबर बदन
करहु अनुग्रह सोई बुद्धि राशि सुबह गुण सदन
मूक होइ वाचाल पंगु चढ़इ गिरिवर गहन
जासु कृपा सो दयाल द्रवहु सकल कलिमल दहन
नील सरो रूह श्याम तरुण अरुण वारिज नयन
करहु सो मम उर धान सदाक्षीर सागर सयन
कुंद इंदु सम देह उमा रमण करुणा अयन
जाहि दीं पर नेह करहु कृपा मर्दन मयन
बंदहु गुरु पद कंज कृपा सिंधु नर रूप हरि
महा मोह ताम पुञ्ज जासु वचन रविकर निकर
बंदौ गुरुपद पदम् पराया सुरुचि सुवास सरस अनुरागा
अमीय मूरिमय चूर्ण चारु समन सकल भवरुज परिवारु
सुकृति संभु तन विमल विभूति मंजुल मंगल मोड़ प्रसूति
जन मन मंजु मुकुर मॉल हरनी किये तिलक गुण गण बस करनी
श्री गुरुपद नख मणि गण ज्योति ,सुमिरन दिव्य दृष्टि हिय होत
दलन मोहतम सो स प्रकासु ,बड़े भाग उर आवहि जासु
उघरहि विमल विलोचन हिय के,मिटहि दोष दुःख भव रजनी के
सूझहिं राम चरित मणि माणिक ,गुप्त प्रकट जह जो जेहि खानिक
जथा सुअंजन अंजिद्रंग साधक सिद्ध सुजान
कौतुक देखत सैलबन भूतल भूरि निधान
मंगलम भगवन विष्णु मंगलम गरुडध्वजम
मंगलम पूंडरी कांक्षे मंगलाय तनौ हरि
मंगल भुवन अमंगल हारी उमा स हित जेहि जपत पुरारि
राजीव नयन धरै धनु सायक भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक
जनक सुता जग जननि जानकी अतिसय प्रिय करुणा निधान की
ताके जुगपद कमल मनावहुं जासु कृपा निर्मल मति पावहु
सियाराम मय सब जग जानी करहु प्रणाम जोरि जग पानी
बंदौ कौसल्या डीसी प्राची कीरति जासु सकल दिसि माची
बंदउ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पर
बिछुरत दीं दयाल प्रिय तनु तृण इव परिहरेउ
प्रनवउ परिजन सहित विदेहु जाहि राम पद गूढ़ सनेहु
प्रनवउ प्रथम भरत के चरणां जासु नेम वत जाहि न वरणा
बंदौ लक्ष्मण पद जल जाता सीतल सुभग भगत सुखदाता
रिपुसूदन पद कमल नमामि सूर सुशील भरत अनुगामी
महावीर विनवौं हनुमाना राम जासु जस आप बखाना
भरत सरिस को राम सनेही जग जाप राम ,राम जप जेहि
जेहि विधि प्रभु प्रसन्न मन होई करुणा सागर कीजिये सोई
रामकथा ससि किरण समना संत चकोर करहि जेहि पाना
रामसिंधु गहन सज्जन धीरा चन्दन तरु हर संत समीरा
मोरे मन प्रभु अस बिस्वासा राम ते अधिक रामकर दासा
कबहुँक करि करुणा नर देही डेट ईस बिनु हेतु सनेही
नर तनु भव बारिध कह बेरो सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो
करनधार सद्गुरु दृढ नावा दुर्लभ साज सुलभ करि पावा
जो न तरै भवसागर नर समाज अस पाई
सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाई
गिरा अरध जल बीच सम कहियत भिन्न न भिन्न
बंदउँ सीता राम पद जिनहि परम प्रिय खिन्न
श्रवण सुयश सुनि आयहू प्रभु भजन भव भीर
त्राहि त्राहि आरति हरण शरण सुखद रघुवीर
अस विचारि रघु वंश मणि हरहु विषम भवभीर
कामीहि नारि पियारी जिमि लोभिहिं प्रिय जिमि दाम
तिमी रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम
बिनु पद चलहिं सुनई बिनु काना कर बिनु कर्म करहि विधि नाना
आनन् रहित सकल रसभोगी बिनु वाणी बक्ता बाद जोगी
मन बिनु परस नयन बिनु देखा ग्रहइ घ्राण वासऊ शेषा
असि सब भांति अलौकिक करणी महिमा जासु जाई नहि बरनी
मंगल भुवन अमंगल हारी,द्रवहु सो दशरथ अजिर बिहारी
बार बार वर माँगहु हरषि देहु श्रीरंग
पद सरोज अनपायनी भक्ति सदा सत्संग
अर्थ न धर्म न काम रूचि गति न चाहो निर्वाण
जन्म जन्म रति राम पद यह वरदान न आन
स्वामी मोहि न बिसारियो लाख लोग मिली जाहि
हमसे तुमको बहुत हैं तुमसे हमको नाहि
नहीं विचार नहि बाहुबल नहि खरचं को दाम
मोसे पतित अपंग की तुम पति राखउ राम
अज्ञान द्वा प्रमादा द्वा वैकल्यात साधनस्यच
यत्नन मति रिक्तम वा तत्सर्वमक्षन्तुर महसि
द्रव्य हनि क्रिया हनि मन्त्र हनि मयान्यथा
कृतं यत यत क्षमस्वे श कृपया त्वम दयानिधे
यन्मया क्रियते कर्म जागृत स्वप्न सुषिपतिशु
तत्सर्व ताव्कि पूजा भूयात भूत्येच में प्रभो
भूम्ते स्खलित पादाना भूमि रेवावलंबन
त्वरया जाता पराधा नम त्वमेव शरणं प्रभो
अन्यथा शरण नास्ति त्वमेव शरणं मम
तस्मात् कारुण्य भावेन रक्ष रक्ष परमेश्वरम
अपराध सहस्त्राणि क्रियते हनिश मया
दासोहं मिति मा मत्वा क्षमस्व जगता पंप में
आवाहनम न जानामि न जानामि विसर्जनम
पूजानचैव न जानामि त्वम गति परमेश्वर
गतं पापं गतं दुखः गतं दारिद्र मेव च
आगतः सुख संपत्ति पुण्याहं तव दर्शनार्थ
न धर्म निष्ठो न चात्मवेदी न भक्ति मात्सव चरणारविन्दे
अकिंचनों नन्य गति शरण्यम त्वद पाद मूले शरणम प्रपद्दे
सर्व साधन हनिसय पराधिस्य सर्वदा
पाप पनिस्य दीनस्य गुरुएव गति मम
स्वामिन नमस्ते नत लोक बन्धौ
कारुण्य सिन्धौ पतित भवा बधो
मामुद्धरात्मीय कटाक्ष दृष्टया
ऋज्या तु कारुण्य सुधामि वृष्ट्या
सकृ देव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते
अभयं सर्व भूतेभभ्यो ददान म्येत द वृतः ममः
अनन्याश्चिद यंतोमाम ये जना पर्यु पासते
तेषाम नित्यं भी युक्तानां योग क्षेम वहाम्यहम
यथा दीपो निवातस्थो नेङ्ग ते सोपमा स्मृता
योगिनो यत चित्तस्य युञ्ज तो योगमात्मन
मनमनाभव मृदतो मद्याजी माँ नमस्कुरु
मामे वैष्यसि सत्यं ते प्रति जाने प्रियोसि में
अहम वैश्वानरौ भूत्वा प्राणीनाम देहमाश्रितः
प्राणापान समायुक्तः पंचम्यंनम चतुर्विधं
यत्र योगेश्वरो कृष्ण यात्र पार्थो धनुर्धर
तत्र श्री वितस्ते मूर्ति ध्रुव नितिरमितिममा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्च्नतु मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्
सर्वे स्तरतु दुर्गाणि सर्वे भद्राणि पश्चंतु
सर्वे सद्बुद्धि माप्नोतु सर्वे सर्वत्र नन्दतु
न त्वहं कामये राज्यम न स्वर्ग न पुनः भवं
कामये तप्तम दुःखाना प्राणि मात्र र्ति नाशनं !!
करहु अनुग्रह सोई बुद्धि राशि सुबह गुण सदन
मूक होइ वाचाल पंगु चढ़इ गिरिवर गहन
जासु कृपा सो दयाल द्रवहु सकल कलिमल दहन
नील सरो रूह श्याम तरुण अरुण वारिज नयन
करहु सो मम उर धान सदाक्षीर सागर सयन
कुंद इंदु सम देह उमा रमण करुणा अयन
जाहि दीं पर नेह करहु कृपा मर्दन मयन
बंदहु गुरु पद कंज कृपा सिंधु नर रूप हरि
महा मोह ताम पुञ्ज जासु वचन रविकर निकर
बंदौ गुरुपद पदम् पराया सुरुचि सुवास सरस अनुरागा
अमीय मूरिमय चूर्ण चारु समन सकल भवरुज परिवारु
सुकृति संभु तन विमल विभूति मंजुल मंगल मोड़ प्रसूति
जन मन मंजु मुकुर मॉल हरनी किये तिलक गुण गण बस करनी
श्री गुरुपद नख मणि गण ज्योति ,सुमिरन दिव्य दृष्टि हिय होत
दलन मोहतम सो स प्रकासु ,बड़े भाग उर आवहि जासु
उघरहि विमल विलोचन हिय के,मिटहि दोष दुःख भव रजनी के
सूझहिं राम चरित मणि माणिक ,गुप्त प्रकट जह जो जेहि खानिक
जथा सुअंजन अंजिद्रंग साधक सिद्ध सुजान
कौतुक देखत सैलबन भूतल भूरि निधान
मंगलम भगवन विष्णु मंगलम गरुडध्वजम
मंगलम पूंडरी कांक्षे मंगलाय तनौ हरि
मंगल भुवन अमंगल हारी उमा स हित जेहि जपत पुरारि
राजीव नयन धरै धनु सायक भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक
जनक सुता जग जननि जानकी अतिसय प्रिय करुणा निधान की
ताके जुगपद कमल मनावहुं जासु कृपा निर्मल मति पावहु
सियाराम मय सब जग जानी करहु प्रणाम जोरि जग पानी
बंदौ कौसल्या डीसी प्राची कीरति जासु सकल दिसि माची
बंदउ अवध भुआल सत्य प्रेम जेहि राम पर
बिछुरत दीं दयाल प्रिय तनु तृण इव परिहरेउ
प्रनवउ परिजन सहित विदेहु जाहि राम पद गूढ़ सनेहु
प्रनवउ प्रथम भरत के चरणां जासु नेम वत जाहि न वरणा
बंदौ लक्ष्मण पद जल जाता सीतल सुभग भगत सुखदाता
रिपुसूदन पद कमल नमामि सूर सुशील भरत अनुगामी
महावीर विनवौं हनुमाना राम जासु जस आप बखाना
भरत सरिस को राम सनेही जग जाप राम ,राम जप जेहि
जेहि विधि प्रभु प्रसन्न मन होई करुणा सागर कीजिये सोई
रामकथा ससि किरण समना संत चकोर करहि जेहि पाना
रामसिंधु गहन सज्जन धीरा चन्दन तरु हर संत समीरा
मोरे मन प्रभु अस बिस्वासा राम ते अधिक रामकर दासा
कबहुँक करि करुणा नर देही डेट ईस बिनु हेतु सनेही
नर तनु भव बारिध कह बेरो सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो
करनधार सद्गुरु दृढ नावा दुर्लभ साज सुलभ करि पावा
जो न तरै भवसागर नर समाज अस पाई
सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाई
गिरा अरध जल बीच सम कहियत भिन्न न भिन्न
बंदउँ सीता राम पद जिनहि परम प्रिय खिन्न
श्रवण सुयश सुनि आयहू प्रभु भजन भव भीर
त्राहि त्राहि आरति हरण शरण सुखद रघुवीर
अस विचारि रघु वंश मणि हरहु विषम भवभीर
कामीहि नारि पियारी जिमि लोभिहिं प्रिय जिमि दाम
तिमी रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम
बिनु पद चलहिं सुनई बिनु काना कर बिनु कर्म करहि विधि नाना
आनन् रहित सकल रसभोगी बिनु वाणी बक्ता बाद जोगी
मन बिनु परस नयन बिनु देखा ग्रहइ घ्राण वासऊ शेषा
असि सब भांति अलौकिक करणी महिमा जासु जाई नहि बरनी
मंगल भुवन अमंगल हारी,द्रवहु सो दशरथ अजिर बिहारी
बार बार वर माँगहु हरषि देहु श्रीरंग
पद सरोज अनपायनी भक्ति सदा सत्संग
अर्थ न धर्म न काम रूचि गति न चाहो निर्वाण
जन्म जन्म रति राम पद यह वरदान न आन
स्वामी मोहि न बिसारियो लाख लोग मिली जाहि
हमसे तुमको बहुत हैं तुमसे हमको नाहि
नहीं विचार नहि बाहुबल नहि खरचं को दाम
मोसे पतित अपंग की तुम पति राखउ राम
अज्ञान द्वा प्रमादा द्वा वैकल्यात साधनस्यच
यत्नन मति रिक्तम वा तत्सर्वमक्षन्तुर महसि
द्रव्य हनि क्रिया हनि मन्त्र हनि मयान्यथा
कृतं यत यत क्षमस्वे श कृपया त्वम दयानिधे
यन्मया क्रियते कर्म जागृत स्वप्न सुषिपतिशु
तत्सर्व ताव्कि पूजा भूयात भूत्येच में प्रभो
भूम्ते स्खलित पादाना भूमि रेवावलंबन
त्वरया जाता पराधा नम त्वमेव शरणं प्रभो
अन्यथा शरण नास्ति त्वमेव शरणं मम
तस्मात् कारुण्य भावेन रक्ष रक्ष परमेश्वरम
अपराध सहस्त्राणि क्रियते हनिश मया
दासोहं मिति मा मत्वा क्षमस्व जगता पंप में
आवाहनम न जानामि न जानामि विसर्जनम
पूजानचैव न जानामि त्वम गति परमेश्वर
गतं पापं गतं दुखः गतं दारिद्र मेव च
आगतः सुख संपत्ति पुण्याहं तव दर्शनार्थ
न धर्म निष्ठो न चात्मवेदी न भक्ति मात्सव चरणारविन्दे
अकिंचनों नन्य गति शरण्यम त्वद पाद मूले शरणम प्रपद्दे
सर्व साधन हनिसय पराधिस्य सर्वदा
पाप पनिस्य दीनस्य गुरुएव गति मम
स्वामिन नमस्ते नत लोक बन्धौ
कारुण्य सिन्धौ पतित भवा बधो
मामुद्धरात्मीय कटाक्ष दृष्टया
ऋज्या तु कारुण्य सुधामि वृष्ट्या
सकृ देव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते
अभयं सर्व भूतेभभ्यो ददान म्येत द वृतः ममः
अनन्याश्चिद यंतोमाम ये जना पर्यु पासते
तेषाम नित्यं भी युक्तानां योग क्षेम वहाम्यहम
यथा दीपो निवातस्थो नेङ्ग ते सोपमा स्मृता
योगिनो यत चित्तस्य युञ्ज तो योगमात्मन
मनमनाभव मृदतो मद्याजी माँ नमस्कुरु
मामे वैष्यसि सत्यं ते प्रति जाने प्रियोसि में
अहम वैश्वानरौ भूत्वा प्राणीनाम देहमाश्रितः
प्राणापान समायुक्तः पंचम्यंनम चतुर्विधं
यत्र योगेश्वरो कृष्ण यात्र पार्थो धनुर्धर
तत्र श्री वितस्ते मूर्ति ध्रुव नितिरमितिममा
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्च्नतु मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्
सर्वे स्तरतु दुर्गाणि सर्वे भद्राणि पश्चंतु
सर्वे सद्बुद्धि माप्नोतु सर्वे सर्वत्र नन्दतु
न त्वहं कामये राज्यम न स्वर्ग न पुनः भवं
कामये तप्तम दुःखाना प्राणि मात्र र्ति नाशनं !!
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