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मंगलवार, 27 जून 2017

Mera Naam Joker : Ek Vishleshann !!

आज उम्र के इस तीसरे पड़ाव के आरम्भ होने के बाद मुझे सहसा ही "मेरा नाम जोकर " फिल्म गंभीरता से सोचने को बाध्य कर रही है। मुझे लग रहा है कि कितने जीवन दर्शन से भरपूर थी यह फिल्म। बल्कि यूँ कहें कि इसका हर आयाम हर गीत जीवन दर्शन से भरपूर था। ऋषि कपूर का बचपन और युवावस्था के संधि स्थल का वय जिसे हम सब "टीन  एज " कह कर पुकारते हैं और अच्छी तरह जानते हैं की वयः संधि का यह काल बच्चों के शारीरिक व मानसिक परिवर्तन का काल होता है और उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से सम्हाला जाना माता पिता की प्रथम जिम्मेदारी होती है --ऋषि कपूर का अपनी टीचर की ओर आकर्षित होना और मनोज कुमार का सिमी गरेवाल से यह कहना " वयः संधि के इस काल में जो सहारा मिलता है बेल उसी से लिपट जाती है "वास्तविक जीवन की कठोरता जिसमे ऋषि कपूर से राजकपूर बनने तक मंजन बेचने से सर्कस के जोकर बनने तक का संघर्ष।पद्मिनी का चरित्र चित्रण जिसमे आरम्भ में समाज की बुरी नज़रों से बचने के लिए लडके का रूप धारण करना ,और बाद में हर बेहतर चीज मिलने पर पहले वाली के लिए ये कहना "अब हमें उसकी क्या ज़रुरत है ?"अंततः संघर्ष के कठोर समय के साथी राजकपूर को भी बेहतर राजेंद्र कुमार और सिनेमा की चमक दमक के लिए छोड़ देना। रशिया की मारिया से प्रेम भी यही ज़ाहिर करता है कि  प्रेम  देश काल जाति किसी भी बंधन से परे है जिसे समाज की मान्यताएं बाँध देती हैं। 
अब गीतों की बात करें --कहता है जोकर सारा ज़माना आधी हक़ीक़त आधा फ़साना 
चश्मा उतारो फिर देखो यारों दुनिया नै है चेहरा पुराना -----------
ऐ भाई ज़रा देख के चलो ,आगे ही नहीं पीछे भी,दाएं ही नहीं बाएं भी ,ऊपर ही नहीं नीचे भी ------
जीना यहाँ ,मरना यहाँ ,इसके सिवा जाना कहाँ ,जी चाहे जब हमको आवाज़ दो हम हैं वही हम थे जहाँ 
अपने यहीं दोनों जहाँ इसके सिवा जाना कहाँ ---
उपरोक्त दो गीत दुनिया के असली रूप और और जीने की सीख देती है 
और तीसरा जीवन मृत्यु चक्र को दर्शाता है 
सबसे अच्छी बात ये थी कि चार घंटे की फिल्म में दो इंटरवल थे 
दी एन्ड ----नहीं था -----जीवन चक्र का भी नहीं होता 

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