दुनिया का एकमात्र मंदिर जहां पानी में समाएं हैं शिव, आप भी करें इनके दर्शन
इंदौर। देवास के चापड़ा में एक ऐसा अनूठा मंदिर है, जिसमें भगवान शिव 12 महीने जलमग्न रहते हैं। भोले के भक्त पानी के भीतर से ही उनकी आराधना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि च्यवनप्राश बनाने वाले च्यवन ऋषि ने चंद्रकेश्वर मंदिर की स्थापना की थी। उनके लिए स्वयं माता नर्मदा यहां प्रकट हुई थीं। कहा जाता है कि दुनिया में ऐसे तीन ही मंदिर थे, जिनमें से अब एक ही जीवंत स्थिति में है।
चंद्रकेश्वर मंदिर इंदौर से 65 किमी दूर इंदौर-बैतूल राष्ट्रीय राजमार्ग से लगा हुआ है। मंदिर के चारों तरफ सतपुड़ा की पहाड़ियां और घना जंगल है। प्राकृतिक वातावरण में बने इस मंदिर में हमेशा भक्तों की भीड़ रहती है।बताते है कि मंदिर में स्थापिंत शिवलिंग 2-3 हजार साल पुराना है। मंदिर के पुजारी के अनुसार इस मंदिर का इतिहास च्यवन ऋषि से जुड़ा है। कहते हैं कि उन्होंने यहां तपस्या की थी। उन्होंने ही इस मंदिर की स्थापना की थी। वे रोज स्नान के लिए 60 किमी दूर नर्मदा तट पर जाते थे। ऐसी मान्यता है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं मां नर्मदा ने उन्हें दर्शन दिए थे और कहा था कि मैं स्वयं आपके मंदिर में प्रकट हो रही हूं। इस पर ऋषि ने कहा कि मैं ये कैसे समझ पाऊंगा की आप स्वयं मेरे मंदिर में प्रकट हुई हैं। इसके बाद उन्होंने अपना गमछा नर्मदा तट पर छोड़ दिया। कथा के अनुसार अगले दिन मंदिर में जलधारा फूट पड़ी और उनका गमछा भगवान शिव पर लिपटा हुआ मिला। च्यवन ऋषि के बाद सप्त ऋषियों ने भी यहां तप किया था। यहां उनके नाम का एक कुंड भी बना हुआ है। कहते हैं इस कुंड में स्नान से पापों से मुक्ति मिल जाती है। यहां सावन मास में रुद्राभिषेक किया जाता है। वैसे तो यहां लोगों का दर्शनार्थ आना-जाना रहता है, लेकिन श्रावण में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है। सावन सोमवार पर दूर-दूर से लोग यहां आकर नर्मदा कुंड में स्नान कर जल मग्न शिवलिंग के दर्शन करते हैं।
इंदौर। देवास के चापड़ा में एक ऐसा अनूठा मंदिर है, जिसमें भगवान शिव 12 महीने जलमग्न रहते हैं। भोले के भक्त पानी के भीतर से ही उनकी आराधना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि च्यवनप्राश बनाने वाले च्यवन ऋषि ने चंद्रकेश्वर मंदिर की स्थापना की थी। उनके लिए स्वयं माता नर्मदा यहां प्रकट हुई थीं। कहा जाता है कि दुनिया में ऐसे तीन ही मंदिर थे, जिनमें से अब एक ही जीवंत स्थिति में है।
चंद्रकेश्वर मंदिर इंदौर से 65 किमी दूर इंदौर-बैतूल राष्ट्रीय राजमार्ग से लगा हुआ है। मंदिर के चारों तरफ सतपुड़ा की पहाड़ियां और घना जंगल है। प्राकृतिक वातावरण में बने इस मंदिर में हमेशा भक्तों की भीड़ रहती है।बताते है कि मंदिर में स्थापिंत शिवलिंग 2-3 हजार साल पुराना है। मंदिर के पुजारी के अनुसार इस मंदिर का इतिहास च्यवन ऋषि से जुड़ा है। कहते हैं कि उन्होंने यहां तपस्या की थी। उन्होंने ही इस मंदिर की स्थापना की थी। वे रोज स्नान के लिए 60 किमी दूर नर्मदा तट पर जाते थे। ऐसी मान्यता है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं मां नर्मदा ने उन्हें दर्शन दिए थे और कहा था कि मैं स्वयं आपके मंदिर में प्रकट हो रही हूं। इस पर ऋषि ने कहा कि मैं ये कैसे समझ पाऊंगा की आप स्वयं मेरे मंदिर में प्रकट हुई हैं। इसके बाद उन्होंने अपना गमछा नर्मदा तट पर छोड़ दिया। कथा के अनुसार अगले दिन मंदिर में जलधारा फूट पड़ी और उनका गमछा भगवान शिव पर लिपटा हुआ मिला। च्यवन ऋषि के बाद सप्त ऋषियों ने भी यहां तप किया था। यहां उनके नाम का एक कुंड भी बना हुआ है। कहते हैं इस कुंड में स्नान से पापों से मुक्ति मिल जाती है। यहां सावन मास में रुद्राभिषेक किया जाता है। वैसे तो यहां लोगों का दर्शनार्थ आना-जाना रहता है, लेकिन श्रावण में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है। सावन सोमवार पर दूर-दूर से लोग यहां आकर नर्मदा कुंड में स्नान कर जल मग्न शिवलिंग के दर्शन करते हैं।
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