भगत जी,आज घर मे खाने को कुछ नही है,आटा, नमक,दाल, चावल,गुड़ शक्कर सब खत्म हो गया है,
शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान लेते आईयेगा,,
कन्धे पर कपड़े का थान लादे,हाट बाजार जाने की तैयारी करते हुए,भगत कबीर जी को माता लोई जी ने सम्बोधन करते हुए कहा देखता हूँ,लोई जी,अगर कोई अच्छा मूल्य मिला,तो निश्चय ही घर मे आज धन धान्य आ जायेगा कबीर जी ने उत्तर दिया सांई जी,अगर अच्छी कीमत ना भी मिले तब भी इस बुने थान को बेच कर कुछ राशन तो ले आना,घर के बड़े
बूढ़े तो भूख बर्दाश्त कर लेंगे पर कमाल ओर कमाली अभी छोटे हैं, उनके लिए तो कुछ ले ही आना
जैसी मेरे राम की इच्छा, ऐसा कह के कबीर हाट बाजार को चले गए बाजार में उन्हें किसी ने पुकारा वाह सांई,कपड़ा तो बड़ा अच्छा बुना है,ठोक भी अच्छी लगाई है,तेरा परिवार बसता रहे,ये फकीर ठंड में
कांप कांप कर मर जाएगा,दया के घर मे आ,ओर रब के नाम पर 2 चादरे का कपड़ा इस फकीर की झोली में डाल दे
2 चादरे में कितना कपड़ा लगेगा फकीर जी? फकीर ने जितना कपड़ा मांगा, इतेफाक से कबीर जी के थान में कुल कपड़ा उतना ही था कबीर जी ने थान फकीर को दान कर दिया दान करने के बाद,जब घर लौटने लगे तो उनके सामने अपनी माँ नीमा, वृद्ध पिता नीरू,छोटे
बच्चे कमाल,ओर कमाली के भूखे चेहरे नजर आने लगे
फिर लोई जी की कही बात घर मे खाने की सब सामग्री खत्म है,दाम कम भी मिले तो भी कमाल ओर कमाली के लिए कुछ ले आना अब दाम तो क्या?थान भी दान जा चुका था कबीर गंगा तट पर आ गए जैसी मेरे राम की इच्छा,जब सारी सृष्टि की सार खुद करता है,अब मेरे परिवार की सार भी वो ही करेगा कबीर अपने राम की बन्दगी में खो गए अब भगवान कहां रुकने वाले थे,कबीर ने सारे परिवार की जिम्मेवारी अब उनके सुपुर्द कर दी थी अब भगवान जी ने कबीर जी की झोपड़ी का दरवाजा खटखटाया कौन है माता लोई जी ने पूछाकबीर का घर यहीं है ना? भगवान जी ने पूछहांजी,लेकिन आप कौन? सेवक की क्या पहचान होती है भगतानी? जैसे कबीर राम का सेवक,वैसे मैं कबीर का सेवक ये राशन का सामान रखवा लो माता लोई जी ने दरवाजा पूरा खोल दिया फिर इतना राशन घर मे उतरना शुरू हुआ कि घर के जीवों की घर में रहने की जगह कम पड़ गई इतना सामान, कबीर जी ने भेजा? मुझे नही लगता हाँ भगतानी,आज कबीर का थान सच्ची सरकार ने खरीदा है जो कबीर का सामर्थ्य था उसने भुगता दिया जो मेरी सरकार का सामर्थ्य है वो चुकता कर रही है जगह और बना,सब कुछ आने वाला है भगत जी के घर में शाम ढलने लगी थी,रात का अंधेरा अपने पांव पसारने लगा था समान रखवाते रखवाते लोई जी थक चुकी थी,नीरू ओर नीमा घर मे अमीरी आते देख खुश थे
,कमाल ओर कमाली कभी बोरे से शक्कर निकाल कर खाते, कभी गुड़,कभी मेवे देख कर मन ललचाते
, झोली भर भर कर मेवे ले कर बैठे उनके बालमन,अभी तक तृप्त नही हुए थे
कबीर अभी तक घर नही आये थे,सामान आना लगातार जारी था आखिर लोई जी ने हाथ जोड़ कर कहा सेवक जी,अब बाकी का सामान कबीर जी के आने के बाद ही आप ले आना
,हमे उन्हें ढूंढने जाना है,वो अभी तक घर नही आए
वो तो गंगा किनारे सिमरन कर रहे हैं भगवन बोले नीरू,नीमा,लोई जी,कमाल ओर कमाली को ले गंगा किनारे आ गए कबीर जी को समाधि से उठाया सब परिवार को सामने देख,कबीर जी सोचने लगे जरूर ये भूख से बेहाल हो मुझे ढूंढ रहे हैं इससे पहले कबीर जी कुछ बोलतेउनकी माँ नीमा जी बोल पड़ी कुछ पैसे बचा लेने थे,अगर थान अच्छे भाव बिक गया था,सारा सामान तूने आज ही खरीद कर घर भेजना था क्या? कबीर जी कुछ पल के लिए विस्मित हुए फिर लोई जी,माता पिता और बच्चों के खिलते चेहरे देख कर उन्हें एहसास हो गया जरूर मेरे राम ने कोई खेल कर दी है अच्छी सरकार को आपने थान बेचा, वो तो समान घर मे फैंकने से रुकता ही नही था,पता नही कितने वर्षों तक का
राशन दे गया,उससे मिन्नत कर के रुकवाया,बस कर,बाकी कबीर जी के आने के बाद उनसे पूछ कर
कहीं रख्वाएँगे लोई जी ने शिकायत की कबीर हँसने लगे और बोले
लोई जी,वो सरकार है ही ऐसी,जब देंना शुरू करती है तो सब लेने वाले थक जाते है,
उसकी बख्शीश कभी भी खत्म नही होती,उस सच्ची सरकार की तरह सदा कायम रहती है
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मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts
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बुधवार, 26 जुलाई 2017
Dharm & Darshan !! Bhakt Kabeer !!
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