एक मछलीमार काँटा डालकर
तालाब के किनारे बैठा था !
काफी समय बाद भी कोई मछली काँटे में
नहीं फँसी, ना ही कोई हलचल हुई , तो
वह सोचने लगा... कहीं ऐसा तो नहीं कि
मैंने काँटा गलत जगह डाला है,
यहाँ कोई मछली ही न हो !
उसने तालाब में झाँका तो देखा कि
उसके काँटे के आसपास तो बहुत-सी
मछलियाँ थीं ! उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि
इतनी मछलियाँ होने के बाद भी
कोई मछली फँसी क्यों नहीं !
एक राहगीर ने जब यह नजारा देखा , तो
उससे कहा ~ लगता है भैया ! यहाँ पर
मछली मारने बहुत दिनों बाद आए हो !
अब इस तालाब की मछलियाँ
काँटे में नहीं फँसतीं !
मछलीमार ने हैरत से पूछा ~
क्यों ... ऐसा क्या है यहाँ ?
राहगीर बोला ~ पिछले दिनों तालाब के
किनारे एक बहुत बड़े संत ठहरे थे !
उन्होने यहाँ मौन की महत्ता पर
प्रवचन दिया था !
उनकी वाणी में इतना तेज था कि
जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ भी
बड़े ध्यान से सुनतीं !
यह उनके प्रवचनों का ही असर है , कि
... उसके बाद ...
जब भी कोई इन्हें फँसाने के लिए
काँटा डालकर बैठता है , तो
ये मौन धारण कर लेती हैं !
जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं , तो
काँटे में फँसेगी कैसे ?
इसलिए ... बेहतर यहीं होगा कि
आप कहीं और जाकर काँटा डालो !
परमात्मा ने हर इंसान को ...
दो आँख, दो कान, दो नासिका,
हर इन्द्रिय दो-दो ही प्रदान करी हैं ,
... लेकिन ...
जिह्वा एक ही दी है !
क्या कारण रहा होगा ?
क्योंकि ... यह एक ही अनेकों भयंकर
परिस्थितियाँ पैदा करने के लिये पर्याप्त है !
संत ने कितनी सही बात कही है , कि
जब मुँह खोलोगे ही नहीं , तो ...
फँसोगे कैसे ?
अगर इन्द्रिय पर संयम करना चाहते हैं , तो
इस जिह्वा पर नियंत्रण कर लो ...
बाकी सब इन्द्रियाँ स्वयं नियंत्रित रहेंगी !
यह बात हमें भी
अपने जीवन में उतार लेनी चाहिए !
~ एक चुप ~ सौ सुख ~
तालाब के किनारे बैठा था !
काफी समय बाद भी कोई मछली काँटे में
नहीं फँसी, ना ही कोई हलचल हुई , तो
वह सोचने लगा... कहीं ऐसा तो नहीं कि
मैंने काँटा गलत जगह डाला है,
यहाँ कोई मछली ही न हो !
उसने तालाब में झाँका तो देखा कि
उसके काँटे के आसपास तो बहुत-सी
मछलियाँ थीं ! उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि
इतनी मछलियाँ होने के बाद भी
कोई मछली फँसी क्यों नहीं !
एक राहगीर ने जब यह नजारा देखा , तो
उससे कहा ~ लगता है भैया ! यहाँ पर
मछली मारने बहुत दिनों बाद आए हो !
अब इस तालाब की मछलियाँ
काँटे में नहीं फँसतीं !
मछलीमार ने हैरत से पूछा ~
क्यों ... ऐसा क्या है यहाँ ?
राहगीर बोला ~ पिछले दिनों तालाब के
किनारे एक बहुत बड़े संत ठहरे थे !
उन्होने यहाँ मौन की महत्ता पर
प्रवचन दिया था !
उनकी वाणी में इतना तेज था कि
जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ भी
बड़े ध्यान से सुनतीं !
यह उनके प्रवचनों का ही असर है , कि
... उसके बाद ...
जब भी कोई इन्हें फँसाने के लिए
काँटा डालकर बैठता है , तो
ये मौन धारण कर लेती हैं !
जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं , तो
काँटे में फँसेगी कैसे ?
इसलिए ... बेहतर यहीं होगा कि
आप कहीं और जाकर काँटा डालो !
परमात्मा ने हर इंसान को ...
दो आँख, दो कान, दो नासिका,
हर इन्द्रिय दो-दो ही प्रदान करी हैं ,
... लेकिन ...
जिह्वा एक ही दी है !
क्या कारण रहा होगा ?
क्योंकि ... यह एक ही अनेकों भयंकर
परिस्थितियाँ पैदा करने के लिये पर्याप्त है !
संत ने कितनी सही बात कही है , कि
जब मुँह खोलोगे ही नहीं , तो ...
फँसोगे कैसे ?
अगर इन्द्रिय पर संयम करना चाहते हैं , तो
इस जिह्वा पर नियंत्रण कर लो ...
बाकी सब इन्द्रियाँ स्वयं नियंत्रित रहेंगी !
यह बात हमें भी
अपने जीवन में उतार लेनी चाहिए !
~ एक चुप ~ सौ सुख ~
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