मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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बुधवार, 14 मार्च 2018

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'मुझको "मैं " रहने दो'

जैसी हूँ मैं ,
मुझे वैसा रहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।

हाँ मेरी आदतें हैं ,
कुछ बिखरी सी,
 कुछ उलझी सी।
थोड़ी लापरवाह हूँ , तो कभी कुछ
 सुलझी सी।
कभी आँसुओं में ,
तो कभी हँसी के झोंखों में बहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।

नहीं सलीका मुझे ,
बहुत सा सजने
 और सँवरने का।
न काजल ,
न बिंदी ,
ना ही मांग भरने का।
क्या सच में
सुहागन हो तुम?
जो कहता है
कहने दो।

मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।

थोड़ी अल्हड़ता
 है मुझमें,
तो कभी
समझदारी है।
कभी बचपना ,
तो कभी गंभीरता भारी है।
तुम्हारी इन
 खोखली बंदिशों के मकान
तो ढहने दो।

मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।

मैं खुद को
 बदलकर
 जो "तुम" हुई,
मेरा "मैं" तो
 "तुम " हो जाएगा।
तुम जो मुझमें
 "तुम" को तलाशोगे,
"मैं" का अस्तित्व
 खो जाएगा।
"तुम" अलग हो ,
"मैं " अलग हूँ ,
अलग अलग ही
रहने दो।

मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।

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