'मुझको "मैं " रहने दो'
जैसी हूँ मैं ,
मुझे वैसा रहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।
हाँ मेरी आदतें हैं ,
कुछ बिखरी सी,
कुछ उलझी सी।
थोड़ी लापरवाह हूँ , तो कभी कुछ
सुलझी सी।
कभी आँसुओं में ,
तो कभी हँसी के झोंखों में बहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।
नहीं सलीका मुझे ,
बहुत सा सजने
और सँवरने का।
न काजल ,
न बिंदी ,
ना ही मांग भरने का।
क्या सच में
सुहागन हो तुम?
जो कहता है
कहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।
थोड़ी अल्हड़ता
है मुझमें,
तो कभी
समझदारी है।
कभी बचपना ,
तो कभी गंभीरता भारी है।
तुम्हारी इन
खोखली बंदिशों के मकान
तो ढहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।
मैं खुद को
बदलकर
जो "तुम" हुई,
मेरा "मैं" तो
"तुम " हो जाएगा।
तुम जो मुझमें
"तुम" को तलाशोगे,
"मैं" का अस्तित्व
खो जाएगा।
"तुम" अलग हो ,
"मैं " अलग हूँ ,
अलग अलग ही
रहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।
जैसी हूँ मैं ,
मुझे वैसा रहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।
हाँ मेरी आदतें हैं ,
कुछ बिखरी सी,
कुछ उलझी सी।
थोड़ी लापरवाह हूँ , तो कभी कुछ
सुलझी सी।
कभी आँसुओं में ,
तो कभी हँसी के झोंखों में बहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।
नहीं सलीका मुझे ,
बहुत सा सजने
और सँवरने का।
न काजल ,
न बिंदी ,
ना ही मांग भरने का।
क्या सच में
सुहागन हो तुम?
जो कहता है
कहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।
थोड़ी अल्हड़ता
है मुझमें,
तो कभी
समझदारी है।
कभी बचपना ,
तो कभी गंभीरता भारी है।
तुम्हारी इन
खोखली बंदिशों के मकान
तो ढहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।
मैं खुद को
बदलकर
जो "तुम" हुई,
मेरा "मैं" तो
"तुम " हो जाएगा।
तुम जो मुझमें
"तुम" को तलाशोगे,
"मैं" का अस्तित्व
खो जाएगा।
"तुम" अलग हो ,
"मैं " अलग हूँ ,
अलग अलग ही
रहने दो।
मुझे मत बदलो,
मुझको "मैं " रहने दो।
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