मेरा हिस्सा ?
जब से होश सम्हाला तब से देख रहे तमाशा ,
आरोपों प्रत्यारोपों के नाटकों का जलसा
कुर्सी के लिए सारी कवायद,सत्ता की लोलुप आशा
दो बिल्लियों के जज बन्दर से
खाते सब कभी तेरा कभी मेरा हिस्सा
दिखाते तराजू ,न्याय के प्रतीक से
जताते हैं सभी, कोई शुभचिंतक नहीं हम सा,
वोटर का क्या ,देखा है कोई इसके जैसा ?
उसके सामने सपनो का संसार चित्रण किया जाता है ऐसा,
आसान है ये तो फंसा ही फंसा
चाहे कुर्सी पर बैठा पक्ष हो या दूसरी ओर बैठा विपक्ष
पांचो उंगलियां घी में सर कड़ाही में
चंद महीनो में बढ़ जाती है तनख्वाह इनकी
100 % तक ये भत्ता ,वो भत्ता,
सभी को हमने ही तो है चुना,
हफ्तों तक संसद चलने नहीं देते,बर्बाद होता पैसा
करोड़ों का खर्च ? ये भी मेरा हिस्सा तेरा हिस्सा !
पांच साल तक दबाये रखती है जनता अपना गुस्सा
और फिर देती अच्छे से घूंसा,
लेकिन फिर हाथ आती है घोर निराशा
नहीं है कोई अब जो हो एक सा ,कर्मणा ,वाचा ,मनसा !!
जब से होश सम्हाला तब से देख रहे तमाशा ,
आरोपों प्रत्यारोपों के नाटकों का जलसा
कुर्सी के लिए सारी कवायद,सत्ता की लोलुप आशा
दो बिल्लियों के जज बन्दर से
खाते सब कभी तेरा कभी मेरा हिस्सा
दिखाते तराजू ,न्याय के प्रतीक से
जताते हैं सभी, कोई शुभचिंतक नहीं हम सा,
वोटर का क्या ,देखा है कोई इसके जैसा ?
उसके सामने सपनो का संसार चित्रण किया जाता है ऐसा,
आसान है ये तो फंसा ही फंसा
चाहे कुर्सी पर बैठा पक्ष हो या दूसरी ओर बैठा विपक्ष
पांचो उंगलियां घी में सर कड़ाही में
चंद महीनो में बढ़ जाती है तनख्वाह इनकी
100 % तक ये भत्ता ,वो भत्ता,
सभी को हमने ही तो है चुना,
हफ्तों तक संसद चलने नहीं देते,बर्बाद होता पैसा
करोड़ों का खर्च ? ये भी मेरा हिस्सा तेरा हिस्सा !
पांच साल तक दबाये रखती है जनता अपना गुस्सा
और फिर देती अच्छे से घूंसा,
लेकिन फिर हाथ आती है घोर निराशा
नहीं है कोई अब जो हो एक सा ,कर्मणा ,वाचा ,मनसा !!
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