सर बरहना नेस्तम् ,,दारम कुलाहे चार तर्क
तर्क दुनिया ,तर्क उबका ,तर्क मौला,तर्क तर्क !
अर्थात ---मैं नंगे सर नहीं हूँ,मेरे सर पर चारों प्रकार के त्याग की टोपी है ,प्रथम मैंने इहलोक की वासनाओं का त्याग किया ,फिर परलोक की इच्छाओं को त्यागा ,आगे दर्शनों की लालसा मेरे दिल में रही उसे भी छोड़ा ,इसके पश्चात एक ख्याल मेरे दिल में बाकि रहा कि मैं साड़ी वासनाओं को त्याग कर निर्वासित हो गया हूँ "अब वह भी दूर हो गया है और मैं बिलकुल त्याग के मैदान मोक्ष धाम में विचर रहा हूँ ,साड़ी चिंताओं से मुक्त हो गया हूँ
वह सिज़दा क्या ? रहे एहसास जिसमे सर उठाने का
इबादत और बकैदे होश
तौहीने इबादत है
बेखुदी छा जाए ऐसी
दिल से मिट जाए खुदी
उनसे मिलने का तरीका
अपने खो जाने में है
झलक होश की है अभी बेखुदी में
बड़ी खामियां हैं मेरी बंदगी में
कैसे कहूँ कि ख़त्म हुई मंज़िले फ़ना
इतनी तो खबर है ,कि ,मुझे कुछ खबर नहीं
चुन चुन के काट देते हैं ,गुलशन में बागबां
जो शाख ढूंढता हूँ नशेमन के वास्ते !--जिसका अपना कोई सहारा होता है ,भगवान उसको सहारा नहीं देता नहीं देता।
दर हक़ीक़त कर रही है काम साकी की नज़र
मयकदे में गर्दिशे सागर बराए नाम है
ख़ानए दिल में छुपा था ,मुझे मालूम ना था
पर्दा गफलत का पड़ा था ,मुझे मालूम न था,
मिस्ले आहू { हिरन } सरे गर्दा में घिरा सयरा{जंगल }में
नाभ में नाफा छुपा था मुझे मालूम न था ---स्वामी रामतीर्थ
मेरे साहब ज़माना नाजुक है
दोनों हाथों से थामिये दस्तार {पगड़ी}
मर्ग एक मांदगी का वक्फा है
यानि आगे चलेंगे दम लेकर !
हर ज़माना रूप जाना रा दीगरस्त
हर हिजाबे राकि तै करदी हिजाबे दीगरस्त !---यार ने अपने मुखड़े पर न जाने कितने घूँघट डाल रखे हैं
एक को हटाता हूँ तो दूसरा सम्मुख आ जाता है
काश इतना तो रसा अपना मुकद्दर होता
नक़्शे पाए शहे दी होता मेरा सर होता !
इश्क अव्वल दर्दीले माशूक पैदा मी शवद "
चूं गरज आमद हुनर पोशीदा शुद ---गरज या कामना के आते ही असली ज्ञान छुप जाता है
जिन्हे है इश्क वो जां तक निसार करते हैं
हवस जहाँ की मिटा कर वह प्यार करते हैं
जिन्हे न दीन से ,दुनिया से कुछ रहा मतलब
उन्ही को इश्क का उम्मीदवार कहते हैं
करारों राहतों आराम की लगावट से
गुरेज इश्क के परहेजगार करते हैं
फ़िदा है मुल्कों ज़रो माल कदमो पर
निसार जान भी खिदमतगुजार करते हैं
किस तरह इसको निकालें रूह से
अक्ल का काँटा बहुत बारीक है !
दिल से तेरी ही गुफ्तगू काफी है
तुझसे तेरी ही आरजू काफी है
नाम और शक्ल के पर्दों में निहा रहता है ,
काम कर जाता है बेनामो निशां रहता है
जिनके आँखें नहीं उनके लिए राज खफी
आँख वालों के लिए सब में अयां रहता है !
साक़िया इतना रहे होशियार मस्ताना तेरा
दिल में तेरी याद हो ,और लब पे अफ़साना तेरा
वाह क्या फ़ज़लो करम है पीर मयखाना तेरा
झूमता फिरता है खुद ,,मस्ती में पैमाना तेरा !
एक ही सागर में कुछ ऐसा पिला दे साकिया
बेखबर दुनिया व दीं से तेरा मतवाला तो हो
जो पाया नहीं था तेरी दोस्ती से
वही मिल गया है तेरी दुश्मनी से
मेरी लाश पर दिल को थामे खड़े हैं
जो नालां थे अब तक मेरी जिंदगी से
लूटा दूँ मेरी जिंदगानी भी लेकिन
मुझे क्या मिलेगा तेरी बंदगी से
बने बिजलियाँ और चमन फूँक डाले
अँधेरा ही बेहतर है इस रोशनी से
मुझे याद माज़ी ने आ कर घेरा
गुजर हो गया जब भी तेरी गली से
भला मैं तुम्हे कैसे अपना समझ लूँ
मुझे देखते हो अगर बेरूखी से
तुम्हे क्या बताऊँ ज़फर आजकल तो
मुझे उम्स होने लगा सादगी से !---ज़फर अहमद
पराई आग में पड़कर कभी दिल को जलाया है
किसी बेक़स की खातिर जान पर सदमा उठाया है
कभी आंसू बहाये हैं ,किसी की बदनसीबी पर
कभी दिल तेरा भर आया है मुफ़लिस की गरीबी पर
शरीके दर्द दिल होकर किसी का दुःख बटाया है
मुसीबत में किसी आफतज़दा के काम आया है !
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान अक्ल
लेकिन कभी कभी इसे तनहा भी छोड़ दें !
दानिस्ता है तग़ाफ़ुल गम कहना उससे हांसिल
तुम दर्दे दिल कहोगे वह सर झुका लेगा !---मीर
मरना भला है उसका जो अपने लिए जिए
जीता है वह जो मर रहा इंसान के लिए !
हर सुबह उठकर तुझसे मांगूंगा मैं तुझी को
तेरे सिवाय मेरा कुछ मुद्दआ नहीं है !
जिसकी चमक ज़र्रा में में नहीं
वो मेहरे आलम ताब नहीं
जो न समय कतरे में
वो दरिया दरिया हो न सका
माँगा करेंगे अब से दुआ हम भी हिज़्र की ,
आखिर को दुश्मनी है असर को दुआ के साथ ! ----मोमिन
ये ठान ली है के जब तक वो कोसने देंगे
उठे रहेंगे मेरे हाथ भी दुआ के लिए !---दाग
यही दिन हैं दुआ ले किसी के कल्बे मुज़तर से
जवानी आ नहीं सकती मेरे जां फिर नए सर से !----अमीर मीनाई
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है !------ग़ालिब
सब कुछ खुद से मांग लिया तुझको मांग कर
अब क्या उठेंगे हाथ मेरे इस दुआ के बाद !-----अनजान
गिला लिखूं मैं और तेरी बेवफाई का
लहू में गर्क सफीना हो आशनाई का !----सौदा
नाले ने तेरे बुलबुल नाम चश्म न की गुल की
फ़रियाद मेरी सुनकर सैयाद बहुत रोया !---सौदा
शाम से कुछ बुझा सा रहता है
दिल हुआ है चराग मुफ़लिस का ----सौदा
सख्त काफ़िर था जिनने पहले मीनू
मज़हबी इश्क इख्तियार किया ----मीर----
नज़्म ------
बाँध कर सेहरा तेरे घर वो बशर आ जाएगा
हम रहेंगे देखते और वह तुझे ले जाएगा
तेरी सखियाँ तुझसे जब पूछेगी सारा माज़रा
क्या तेरा दिल खुद तुझे भी मुतमईन कर पाएगा
साड़ी बातें मुनहसिर हैं बस तेरे इकरार पर
क्या समाजी दायरों से तू उभर कर आएगा
मैंने जो खाके बुने हैं ज़िंदगानी के लिए
की कभी तू इनमे आकर रंग भी भर पाएगा
तेरे जाने से उठेगा शोरे मातम इक जगह
और इक कैदी कफ़स की कैद से छूट जाएगा !
ग़ज़ल -----
कली कली की चमन में हवा उड़ाने को
बहार बन के वो आये हैं गुल खिलने को
जहाँ रकीबों के हलके हो दिल जलने को
लगा दे आग कोई ऐसे आस्ताने को
हज़ारों नाम हसीनो के आये हैं लेकिन
तुम्हारे नाम ने चौंका दिया ज़माने को
तमाम उम्र मोहब्बत की राह को परखा
मिला हमें न कोई दिल से दिल लगाने को
तुम्हारे हुस्न की लाया हूँ एक नयी तस्वीर
जरा सुनो सही तुम मेरे फ़साने को
गमे हयात की जंजीर में हुयी झंकार
खयाल यार मुझे आ गया मानाने को
भुला सकोगे भला किस तरह से ए वासिक
तुम उनके साथ गुजरे हुए ज़माने को !
---डॉ वासिक नर्गिस
तर्क दुनिया ,तर्क उबका ,तर्क मौला,तर्क तर्क !
अर्थात ---मैं नंगे सर नहीं हूँ,मेरे सर पर चारों प्रकार के त्याग की टोपी है ,प्रथम मैंने इहलोक की वासनाओं का त्याग किया ,फिर परलोक की इच्छाओं को त्यागा ,आगे दर्शनों की लालसा मेरे दिल में रही उसे भी छोड़ा ,इसके पश्चात एक ख्याल मेरे दिल में बाकि रहा कि मैं साड़ी वासनाओं को त्याग कर निर्वासित हो गया हूँ "अब वह भी दूर हो गया है और मैं बिलकुल त्याग के मैदान मोक्ष धाम में विचर रहा हूँ ,साड़ी चिंताओं से मुक्त हो गया हूँ
वह सिज़दा क्या ? रहे एहसास जिसमे सर उठाने का
इबादत और बकैदे होश
तौहीने इबादत है
बेखुदी छा जाए ऐसी
दिल से मिट जाए खुदी
उनसे मिलने का तरीका
अपने खो जाने में है
झलक होश की है अभी बेखुदी में
बड़ी खामियां हैं मेरी बंदगी में
कैसे कहूँ कि ख़त्म हुई मंज़िले फ़ना
इतनी तो खबर है ,कि ,मुझे कुछ खबर नहीं
चुन चुन के काट देते हैं ,गुलशन में बागबां
जो शाख ढूंढता हूँ नशेमन के वास्ते !--जिसका अपना कोई सहारा होता है ,भगवान उसको सहारा नहीं देता नहीं देता।
दर हक़ीक़त कर रही है काम साकी की नज़र
मयकदे में गर्दिशे सागर बराए नाम है
ख़ानए दिल में छुपा था ,मुझे मालूम ना था
पर्दा गफलत का पड़ा था ,मुझे मालूम न था,
मिस्ले आहू { हिरन } सरे गर्दा में घिरा सयरा{जंगल }में
नाभ में नाफा छुपा था मुझे मालूम न था ---स्वामी रामतीर्थ
मेरे साहब ज़माना नाजुक है
दोनों हाथों से थामिये दस्तार {पगड़ी}
मर्ग एक मांदगी का वक्फा है
यानि आगे चलेंगे दम लेकर !
हर ज़माना रूप जाना रा दीगरस्त
हर हिजाबे राकि तै करदी हिजाबे दीगरस्त !---यार ने अपने मुखड़े पर न जाने कितने घूँघट डाल रखे हैं
एक को हटाता हूँ तो दूसरा सम्मुख आ जाता है
काश इतना तो रसा अपना मुकद्दर होता
नक़्शे पाए शहे दी होता मेरा सर होता !
इश्क अव्वल दर्दीले माशूक पैदा मी शवद "
चूं गरज आमद हुनर पोशीदा शुद ---गरज या कामना के आते ही असली ज्ञान छुप जाता है
जिन्हे है इश्क वो जां तक निसार करते हैं
हवस जहाँ की मिटा कर वह प्यार करते हैं
जिन्हे न दीन से ,दुनिया से कुछ रहा मतलब
उन्ही को इश्क का उम्मीदवार कहते हैं
करारों राहतों आराम की लगावट से
गुरेज इश्क के परहेजगार करते हैं
फ़िदा है मुल्कों ज़रो माल कदमो पर
निसार जान भी खिदमतगुजार करते हैं
किस तरह इसको निकालें रूह से
अक्ल का काँटा बहुत बारीक है !
दिल से तेरी ही गुफ्तगू काफी है
तुझसे तेरी ही आरजू काफी है
नाम और शक्ल के पर्दों में निहा रहता है ,
काम कर जाता है बेनामो निशां रहता है
जिनके आँखें नहीं उनके लिए राज खफी
आँख वालों के लिए सब में अयां रहता है !
साक़िया इतना रहे होशियार मस्ताना तेरा
दिल में तेरी याद हो ,और लब पे अफ़साना तेरा
वाह क्या फ़ज़लो करम है पीर मयखाना तेरा
झूमता फिरता है खुद ,,मस्ती में पैमाना तेरा !
एक ही सागर में कुछ ऐसा पिला दे साकिया
बेखबर दुनिया व दीं से तेरा मतवाला तो हो
जो पाया नहीं था तेरी दोस्ती से
वही मिल गया है तेरी दुश्मनी से
मेरी लाश पर दिल को थामे खड़े हैं
जो नालां थे अब तक मेरी जिंदगी से
लूटा दूँ मेरी जिंदगानी भी लेकिन
मुझे क्या मिलेगा तेरी बंदगी से
बने बिजलियाँ और चमन फूँक डाले
अँधेरा ही बेहतर है इस रोशनी से
मुझे याद माज़ी ने आ कर घेरा
गुजर हो गया जब भी तेरी गली से
भला मैं तुम्हे कैसे अपना समझ लूँ
मुझे देखते हो अगर बेरूखी से
तुम्हे क्या बताऊँ ज़फर आजकल तो
मुझे उम्स होने लगा सादगी से !---ज़फर अहमद
पराई आग में पड़कर कभी दिल को जलाया है
किसी बेक़स की खातिर जान पर सदमा उठाया है
कभी आंसू बहाये हैं ,किसी की बदनसीबी पर
कभी दिल तेरा भर आया है मुफ़लिस की गरीबी पर
शरीके दर्द दिल होकर किसी का दुःख बटाया है
मुसीबत में किसी आफतज़दा के काम आया है !
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान अक्ल
लेकिन कभी कभी इसे तनहा भी छोड़ दें !
दानिस्ता है तग़ाफ़ुल गम कहना उससे हांसिल
तुम दर्दे दिल कहोगे वह सर झुका लेगा !---मीर
मरना भला है उसका जो अपने लिए जिए
जीता है वह जो मर रहा इंसान के लिए !
हर सुबह उठकर तुझसे मांगूंगा मैं तुझी को
तेरे सिवाय मेरा कुछ मुद्दआ नहीं है !
जिसकी चमक ज़र्रा में में नहीं
वो मेहरे आलम ताब नहीं
जो न समय कतरे में
वो दरिया दरिया हो न सका
माँगा करेंगे अब से दुआ हम भी हिज़्र की ,
आखिर को दुश्मनी है असर को दुआ के साथ ! ----मोमिन
ये ठान ली है के जब तक वो कोसने देंगे
उठे रहेंगे मेरे हाथ भी दुआ के लिए !---दाग
यही दिन हैं दुआ ले किसी के कल्बे मुज़तर से
जवानी आ नहीं सकती मेरे जां फिर नए सर से !----अमीर मीनाई
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है !------ग़ालिब
सब कुछ खुद से मांग लिया तुझको मांग कर
अब क्या उठेंगे हाथ मेरे इस दुआ के बाद !-----अनजान
गिला लिखूं मैं और तेरी बेवफाई का
लहू में गर्क सफीना हो आशनाई का !----सौदा
नाले ने तेरे बुलबुल नाम चश्म न की गुल की
फ़रियाद मेरी सुनकर सैयाद बहुत रोया !---सौदा
शाम से कुछ बुझा सा रहता है
दिल हुआ है चराग मुफ़लिस का ----सौदा
सख्त काफ़िर था जिनने पहले मीनू
मज़हबी इश्क इख्तियार किया ----मीर----
नज़्म ------
बाँध कर सेहरा तेरे घर वो बशर आ जाएगा
हम रहेंगे देखते और वह तुझे ले जाएगा
तेरी सखियाँ तुझसे जब पूछेगी सारा माज़रा
क्या तेरा दिल खुद तुझे भी मुतमईन कर पाएगा
साड़ी बातें मुनहसिर हैं बस तेरे इकरार पर
क्या समाजी दायरों से तू उभर कर आएगा
मैंने जो खाके बुने हैं ज़िंदगानी के लिए
की कभी तू इनमे आकर रंग भी भर पाएगा
तेरे जाने से उठेगा शोरे मातम इक जगह
और इक कैदी कफ़स की कैद से छूट जाएगा !
ग़ज़ल -----
कली कली की चमन में हवा उड़ाने को
बहार बन के वो आये हैं गुल खिलने को
जहाँ रकीबों के हलके हो दिल जलने को
लगा दे आग कोई ऐसे आस्ताने को
हज़ारों नाम हसीनो के आये हैं लेकिन
तुम्हारे नाम ने चौंका दिया ज़माने को
तमाम उम्र मोहब्बत की राह को परखा
मिला हमें न कोई दिल से दिल लगाने को
तुम्हारे हुस्न की लाया हूँ एक नयी तस्वीर
जरा सुनो सही तुम मेरे फ़साने को
गमे हयात की जंजीर में हुयी झंकार
खयाल यार मुझे आ गया मानाने को
भुला सकोगे भला किस तरह से ए वासिक
तुम उनके साथ गुजरे हुए ज़माने को !
---डॉ वासिक नर्गिस
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