सुहबते ना जिंस से बदतर नहीं कोई अजाब
सुहबतें ना जिंस कहलाता है फैले का सवाब !
सूखते ही आंसुओं के नूर आँखों से गया
बुझ ही जाते हैं दिये जिस वक़्त सब रोगन जला!---मीर
सब गए होश ओ सब्र तब ओ तवां
लेकिन ए दाग ए दिल से तू न गया !
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
यह नगर सौ मरतबा लूटा गया !
कभी ए हकीकत ए मुन्तज़र नज़र आ लिबास मिज़ाज़ में
कि हज़ारों सिजदे तड़प रहे हैं मेरी जबीने नयाज़ में ----इक़बाल
जख्मों से कलेजे को भरदे
पामाल सुकूने दिल कर दे
ओ नाज़ भरी चितवन वाले
आ और मुझे बिस्मिल कर दे ---बेदम
अंदाज़ वो ही समझे
मेरे दिल की आह का
जख्मी जो हो चुका हो
किसी की निगाह का
लगी इश्क की चोट हो जिसके दिल पर
वही दर्दे दिल का मजा जानता है !
मोहब्बत की निगाहों के इशारे और होते हैं
वो नज़रें और होती हैं नज़ारे और होते हैं !
कोमल जो होता है ,उसे इंसान कहते हैं
कठोर जो होता है ,उसे पाषाण कहते हैं
इंसान और पाषाण में फर्क इतना ही है
इंसान पाषाण को भगवान कहते हैं
गुल जहाँ खिलते हैं ,उसे उद्यान कहते हैं
शव जहाँ जलते हैं उसे शमशान कहते हैं
फर्क इतना है कि उजड़े हुए उद्यान को शमशान कहते हैं
मुसाफिर अपनी मंज़िल पर पहुँच कर चैन पाते हैं
वो मौजें सर पटकतीं हैं ,जिन्हे साहिल नहीं मिलता
वादे पे अब किसी के भरोसा नहीं रहा
यूँ बदग़ुमा किया है तेरे इंतज़ार ने !
वो आये बज़्म में इतना तो मेरे ने देखा
फिर उसके बाद चरागों में रौशनी न रही !
सुहबतें ना जिंस कहलाता है फैले का सवाब !
सूखते ही आंसुओं के नूर आँखों से गया
बुझ ही जाते हैं दिये जिस वक़्त सब रोगन जला!---मीर
सब गए होश ओ सब्र तब ओ तवां
लेकिन ए दाग ए दिल से तू न गया !
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
यह नगर सौ मरतबा लूटा गया !
कभी ए हकीकत ए मुन्तज़र नज़र आ लिबास मिज़ाज़ में
कि हज़ारों सिजदे तड़प रहे हैं मेरी जबीने नयाज़ में ----इक़बाल
जख्मों से कलेजे को भरदे
पामाल सुकूने दिल कर दे
ओ नाज़ भरी चितवन वाले
आ और मुझे बिस्मिल कर दे ---बेदम
अंदाज़ वो ही समझे
मेरे दिल की आह का
जख्मी जो हो चुका हो
किसी की निगाह का
लगी इश्क की चोट हो जिसके दिल पर
वही दर्दे दिल का मजा जानता है !
मोहब्बत की निगाहों के इशारे और होते हैं
वो नज़रें और होती हैं नज़ारे और होते हैं !
कोमल जो होता है ,उसे इंसान कहते हैं
कठोर जो होता है ,उसे पाषाण कहते हैं
इंसान और पाषाण में फर्क इतना ही है
इंसान पाषाण को भगवान कहते हैं
गुल जहाँ खिलते हैं ,उसे उद्यान कहते हैं
शव जहाँ जलते हैं उसे शमशान कहते हैं
फर्क इतना है कि उजड़े हुए उद्यान को शमशान कहते हैं
मुसाफिर अपनी मंज़िल पर पहुँच कर चैन पाते हैं
वो मौजें सर पटकतीं हैं ,जिन्हे साहिल नहीं मिलता
वादे पे अब किसी के भरोसा नहीं रहा
यूँ बदग़ुमा किया है तेरे इंतज़ार ने !
वो आये बज़्म में इतना तो मेरे ने देखा
फिर उसके बाद चरागों में रौशनी न रही !
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