मेरे बारे में---Nirupama Sinha { M,A.{Psychology}B.Ed.,Very fond of writing and sharing my thoughts

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रविवार, 1 दिसंबर 2019

Sher Behatreen !!

आँखों में आँखे डाल कर जो देखा आपने,
बेखुदी में मैं आपको खुद कह गया।

ये सोचते ही रहे और बहार ख़त्म हुई
कहाँ चमन में नशेमन बने कहाँ न बने।

तन्हाई की खलिश है यूँ दरमियान में
हर शख्स जैसे कैद हो अंधे मकान में।

न आया हमें इश्क करना न आया
मरे उम्र भर और मारना न आया

हम ही थे जो निभा गए जिन्दा दिली के साथ
वर्ना गुजर कठिन थी बहुत जिंदगी के साथ।

कितनी जादूगर है जवानी ,मिटटी पर सोने का पानी।
क्या कैसे किस तरह यह जवानी गुजर गई
बदनाम करने आई थी बदनाम कर गई।

मुंह फेर के यूँ गई जवानी
याद आ गया रूठना किसी का।

वह लड़कपन के दिन थे,यह जवानी की बहार
पहले भी रुख पर तेरे तिल था मगर कातिल न था।

इधर आँख लगी उधर ढल गई
जवानी भी थी एक दोपहर धूप की

उम्मीद क्या fir आए गुजारी हुई जवानी
वापस न तीर आया छूट कर कभी कमां से

मन कि जमीं को गुलज़ार न कर सके
कुछ खार काम कर गए गुजरे जिधर से हम।

कर रहा था गेम जहां का हिसाब
आज तुम बेहिसाब याद आए।

न गरज किसी से न वास्ता,मुझे काम अपने ही काम से
तेरे ज़िक्र से ,तेरी फ़िक्र से ,तेरी याद से ,तेरे नाम से।

सिर्फ एक कदम गलत उठा था रहे शौक में
मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूंढती रही।

सुनते है इश्क नाम के गुजरे हैं इक बुजुर्ग
हम लोग भी फ़क़ीर उसी सिलसिले के हैं।

नसीम तेरे शबिस्तां से हो के आयी है ,
मेरी सहर में है महक तेरे बदन की सी।

मुझसे इरशाद ये होता है कि तड़पा न करो
कुछ तुम्हे अपनी अदाओं पे नज़र है कि नहीं।

घर से हर वक़्त निकल आते हो खोले हुए बाल
न शाम देखो न मेरी जान सवेरा देखो।

तमाशा इसको समझे खेल समझे जिंदगी समझे
बस उसकी जिंदगी है मौत को जो जिंदगी समझे।

मिल के बिछड़ने का एहसास उसने दूना कर दिया
कुछ इस तरह किया आबाद के सूना कर दिया।

रोज खा लेते हैं हसंते हुए चेहरों से फरेब
क्या करें अपनी निगाहों में मुरव्वत है बहुत।

वो कांटें बो रहे हैं हर कदम
और मैं हंस हंस के गुजरता जा रहा हूँ।

जब भी तकमील मोहब्बत का ख़याल आता है
मुझको अपने ही ख्यालों पे हँसीं आती है।

काम से काम मैं गेम दुनिया को भुला सकता था
पर तेरी याद ने ये काम भी मुझे न करने दिया

एक ही डोरे में बंधी उनकी नज़ाकत
जब हिलती है गर्दन तो लचकती है कमर भी।

हवा के साथ साथ सौ सौ खा गए बल
नज़ाकत देखिये उनकी कमर की।

उठा कर फूल की पत्ती ,नज़ाकत से मसल डाली
इशारे से कहा हम दिल का ऐसा हाल करते हैं।

चांदी का बदन सोने की नज़र , इसपे ये नज़ाकत क्या कहना
किस किस पे तुम्हारे जलवों ने तोड़ी है क़यामत क्या कहना

क्यों वो सज़दा करे,क्यों वो इबादत करे
खुशनसीब है वो शख्स जिसकी तू चाहत करे

ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का
बात पहुंची तेरी जवानी तक।

आइना देखते हैं ,वो छुप छुप कर
बार बार जुल्फें बिगाड़ कर कभी जुल्फें संवार कर।

जिंदगी से जो भी मिले सीने से लगा लो
गम को सिक्के की तरह उछाला नहीं करते।

अदा आयी ,ज़फ़ा आयी ,गुरुर आया ,हज़ब आया
हज़ारों आफतें लेकर हसीनो पे शबाब आया।

अपनी निगाहें शौक से छुपिये तो जानिये
महफ़िल में आपने पर्दा किया तो क्या .

वाबस्ता मेरी याद से ,कुछ तल्खियाँ भी थीं
अच्छा किया जो मुझको फरामोश कर दिया।

तुमने किया न याद कभी भूल कर हमें
हमने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया।

हाय से सर झुका लेना ,अदा से मुस्कुरा देना
हसीनो को भी कितना आसान है ,बिजली गिरा देना।

एक बार जो मुस्कुरा के देखा था आपने
नाज़ुक जिगर में दर्द सा उठता मिला मुझे।

उफ़ ! वह देखना नीची नज़र से
सितम मुस्कुराना मुंह फ़िर कर।

यह नाज़े हुस्न तो देखो ,दिल तड़पाकर
नज़र मिलते नहीं ,मुस्कुराये जाते हैं।

जवाब सोच के वह दिल में मुस्कुराते हैं
अभी जुबान पर मेरे सवाल भी न था।

वस्ल की शब मुस्कुराकर नाज़ से कहने लगे
पाँव फैलाना जनाबे शेख चादर देख कर।

मैं चाहे सच भी बोलूं हर तरह से अपने बारे में
मगर तुम मुस्कुराती हो तो झूठा सा पद जाता हूँ

कह उठे चुप क्यों हो विसाल के बाद
खुद ही शर्माए ,इस सवाल के बाद।

नाम मेरा सुनते ही शर्मा गए
तुमने खुद आप को रुस्वा किया।

यह शोखी है नै,यह शर्म दुनिया से निराली है
मिला कर आँख कहते हैं इधर देखे तो अंधा हो।

मुद्दतें हो गयीं खता करते करते
शर्म आती है अब दुआ करते।

शायद उन्हें याद आ गयी ,मेरी निगाहे शौक
आइने से वह मुंह फेर कर शर्माए हुए हैं।

हमसे कर लेते गिला, क्यों गैर से शिकवा किया,
बात कुछ भी न थी जिसका फ़साना कर दिया।

कहीं जवाब है इस हद्द की बदगुमानी का ,
कि शुक्र भी करूँ आप इसे गिला कहिये .

उनके ख्याल उनकी तमन्ना में मस्त हूँ
मेरे लिए शकील ,इबादत है जिंदगी।

नेरंगियों से यार की हैरान हो जियो
हर रंग में उसीको नमूदार देखना।

कोई जां {जगह} हो हराम हो या सनमख़ाना {मंदिर } हो
हमको नक्शेकदम यार पे सज़दा करना है।

कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है
मिलते रहते हैं मगर बात नहीं होती है।

तेरा ही नाम  लेकर खिलते हैं गुल चमन में
तारों में चाँद बन कर तू मुस्कुरा रहा है।
तोबा से कोई कह दे आये न मयकदे में
जादू भरी नज़र से साकी पिला रहा है

जिसने भी रंज दिए उसको दुआ दी मैंने
दुश्मन औ दोस्त की तफ़रीक़ मिटा दी मैंने
फूल तो फूल है कांटो को भी अपना समझा
आप तो आप हैं गैरों को दुआ दी मैंने
दिल की महफ़िल में अँधेरा कभी होने न दिया
जब कोई शम्मा बुझी और जल दी मैंने
जाने किस बात पे अहबाब खफा है मुझ पे
जाने क्या बात ज़माने को बता दी मैंने।

एक टहनी एक दिन पतवार बनती है
एक चिंगारी दहक कर अंगार बनती है
जो सदा रौंदी गयी बेबस समझ कर
एक दिन मिटटी वही मीनार बनती है

एक मैं हूँ मुझे भूल याद आती है
एक वो हैं जिन्हे याद भूल जाती है
याद और भूल में फर्क बस इतना है
एक रोती है एक मुस्कुराती है

साथ दुःख में निभाए वही मीत है
स्वार्थ जिसमे न आये वही जीत है
जीत वो जीत ले जो सबका दिल है
हर अधर जिसको गाये वही गीत है

दुनिया प्यासे को तपन देती है
खिलते फूलों को दफ़न देती है
जीते जी तन को कपड़ा नहीं देती
मरने के बाद उसे कफ़न देती है

जौक की शायरी ----
सात दरिया के फ़राहम किये होंगे मोती
तब बना होगा इस अंदाज़ का गज भर सेहरा।

पिला मय आशकारा हमको ,किसकी साकिया चोरी
खुद की जब नहीं चोरी तो फिर बन्दे की क्या चोरी।

वाह साक़िया क्या हो दोहे दारु ए फरहत फ़ज़ा
जिसके एक कतरे से जिस्म में लोहू बढे।

मस्त इतने भी न हो इश्कबूतां में ए जौक
चाहिए बन्दे को हर वक़्त खुदा याद रहे।

लेगा दिल इस इश्क से क्या तू जिसने कोहो सहारा में
मज़नू का वह हाल किया ,फरहाद का वह हाल किया।

दम आ चूका है लबों पे आँखों में इंतज़ार
बेदर्द जल्द आ कि वक़्त नहीं देर का।

जख्मे दिल पर मेरे क्यों मरहम का इस्तेमाल है
मुश्क गर महंगा है तो क्या खून का भी काल है
जितना है नमक सब मेरे ज़ख्मों में खपा दो
पलकों से उठाओ न आँखों से गिराओ।

रात आती है तेरी याद में काट जाती है
आँख रह रह कर सितारे सी डबडबाती है
इतना बदनाम हो गया हूँ कि मेरे घर में
अब नींद भी आने से शर्माती है

चुरा के दिल मुट्ठी में छुपाये बैठे हैं
बहाना यह कि मेहंदी रचाये बैठे हैं

ग़ालिब ----
मेहरबां हो के बुला लो मुझे चाहे जिस वक़्त
मैं गया हुआ वक़्त नही हूँ कि फिर आ भी न सकूँ

एतबारे इश्क की खाना खराबी देखिये
गैर ने की आह ,वो खफा मुझसे हो गए

कली के हुस्न ,गुल के बांकपन की आज़माइश है
खिज़ा आने से पहले ही चमन की आज़माइश है
यह दुनिया है यां हर अहले हुनर की आज़माइश है
ताज्जुब क्या जो यां मेरे सुखन की आज़माइश है

मंज़िलें मिलें ,मिलें न मिलें इसका गम नहीं
मंज़िल की जुस्तजू में मेरा कारवाँ तो है !

ज़ख्मे तनहाई में खुशबू ए हिना किसकी है
साया तो मेरा था पर सदा किसकी है !

तलाशोतलब में वो लज़्ज़त मिली है
दुआ कर रहा हूँ कि मंज़िल न आए !

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