विश्वास नहीं हो पाता मुझको ,
जाने तुम कहाँ गई हो,
आँखों में छोड़ झड़ी आंसू की
कहाँ तुम खो गई हो ,
गूंजती कानों में वो आवाज
मधुर घंटियों की सी
कई बार तुम बनी प्रेरणा
प्रेरक बनी रही हो ,
नहीं रहे हम साथ साथ
करते रहे प्रायःहम बात
पाया समीप तुमको अति मन के,
गुरु जैसी सखी रही हो
यह खालीपन ,यह अनुपस्थिति ,
कितनी दुखदायक है
तुम सुमन की सौरभ सुनीता सी
मन में महक रही हो,
स्वीकार करो मेरी श्रद्धा को
तुम चाहे कहीं छुपी हो !!!
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