कमलेश्वर झपटता हुआ बाहर की ओर निकला किन्तु अंजुरी तो यह जा वह जा, वहां से तेजी से जाती हुई दिखाई दी। वह भी उदास सा साइकिल उठा कर घर की ओर चल पड़ा। जैसे ही घर के आँगन में साइकिल स्टैंड पर लगा कर सीढ़ियों की ओर बढ़ा पिता विश्वनाथ सिंह की आवाज से रूक गया। पिता पूछ रहे थे,' आ गए हो ? "जी पापा " पढाई ठीक चल रही है न ? "जी पापा " हूँ "कह कर गंभीरता से पापा पलट कर फिर दीवानखाने की ओर चले गए. कमलेश्वर तेजी से सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर अपने कमरे में चला गया ,उसने अपने हाथ से नोट्स की फाइल टेबल पर पटकी ,लेकिन ये क्या ? फाइल से निकल कर एक कागज़ ज़मीन पर गिर पड़ा.उसने उसे झुक कर उठाया और वहीँ कुर्सी पर बैठ कर उसे खोला। वह अंजुरी का पत्र था,इस बार पहले से कुछ बड़ा था.
"प्रिय,
कल मैं सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अपना नाम लिखवाने जा रही हूँ। मैं जानती हूँ तुम्हे इसमें कोई रूचि नहीं है, किन्तु अगर मुझे रिहर्सल के लिए देर तक रुकना हुआ तो क्या तुम मेरे लिए रुकोगे ? तुम लाइब्रेरी में पढ़ सकते हो या घर जाकर दोबारा आ सकते हो। मुझे अच्छा लगेगा।
अंजुरी
कमलेश्वर के चेहरे पर मधुर सी मुस्कान फ़ैल गई। उसका दिल उत्साहित सा हो गया. उसे ज़ोरों की भूख लग आयी। वह रसोई की ओर चल पड़ा। रामू काका रसोई की बगल में अपने छोटे से कमरे से निकल आये। वे इस घर में पिछले पच्चीस सालों से खाना पकाने का काम करते थे। ऊपरी काम करने के लिए मिश्री बाई और उसकी विधवा बेटी इमरती भी आया करती थी। जो अभी अभी घर लौट चुकी थी।
बैठो बाबू ! मैं खाना लगाता हूँ। वॉश बेसिन में हाथ धो कर वह डाइनिंग टेबल पर आ गया।
एक पीढ़ी पहले के विश्वनाथ सिंह और कमलेश्वर के नाना के पूर्वज अंग्रेज़ों का ज़माना देख चुके थे और उनकी कई अच्छाइयों को अपना भी चुके थे,और वही सब उनके घर में झलकता था।
"प्रिय,
कल मैं सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अपना नाम लिखवाने जा रही हूँ। मैं जानती हूँ तुम्हे इसमें कोई रूचि नहीं है, किन्तु अगर मुझे रिहर्सल के लिए देर तक रुकना हुआ तो क्या तुम मेरे लिए रुकोगे ? तुम लाइब्रेरी में पढ़ सकते हो या घर जाकर दोबारा आ सकते हो। मुझे अच्छा लगेगा।
अंजुरी
कमलेश्वर के चेहरे पर मधुर सी मुस्कान फ़ैल गई। उसका दिल उत्साहित सा हो गया. उसे ज़ोरों की भूख लग आयी। वह रसोई की ओर चल पड़ा। रामू काका रसोई की बगल में अपने छोटे से कमरे से निकल आये। वे इस घर में पिछले पच्चीस सालों से खाना पकाने का काम करते थे। ऊपरी काम करने के लिए मिश्री बाई और उसकी विधवा बेटी इमरती भी आया करती थी। जो अभी अभी घर लौट चुकी थी।
बैठो बाबू ! मैं खाना लगाता हूँ। वॉश बेसिन में हाथ धो कर वह डाइनिंग टेबल पर आ गया।
एक पीढ़ी पहले के विश्वनाथ सिंह और कमलेश्वर के नाना के पूर्वज अंग्रेज़ों का ज़माना देख चुके थे और उनकी कई अच्छाइयों को अपना भी चुके थे,और वही सब उनके घर में झलकता था।
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