कमलेश्वर जितना ही गंभीर छात्र था अंजुरी उतनी ही मुखर थी। क्लास में कमलेश्वर के दोस्त अवश्य थे किन्तु दोस्तों के साथ मिलकर लड़कियों के बारे में बातें करना ,किसी तरह का छिछोरापन उसमे नहीं था ,ये सभी उसकी माँ के दिए हुए संस्कार थे। दोस्तों के साथ भी गंभीर ही रहता था। दरअसल कस्बे के वातावरण में इन बातों की गुंजाईश भी नहीं थी।
दूसरे दिन क्लास में वह गंभीर बना रहा ,उसने दिन भर में अंजुरी को नज़र भर कर देखा भी नहीं। अंजुरी ने अभी तक उसके नोट्स भी वापस नहीं किये थे। क्लास में मात्र पांच लडकियां थीं ,वे दूसरी ओर बैठा करतीं थीं। कमलेश्वर ने सोचा घर लौटते समय ज़रूर पूछ लेगा।
उसी समय चपरासी एक सर्क्यूलर लेकर आया। प्रोफेसर श्री महेश जोशी ने उसे पढ़ कर सुनाया। प्रतिवर्ष की तरह महाविद्यालय का वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होने वाला था 26 जनवरी को और जो भी छात्र छात्राएं भाग लेना चाहें वे प्रोफेसर सिंधु वर्गीस से मिलकर कल अपना नाम लिखवा दें। वैसे तो वे हिंदी की प्रोफेसर थीं किन्तु कला व सांस्कृतिक सम्बन्धी सभी कार्यों का संपादन उनके द्वारा ही किया जाता था। सुनकर अंजुरी का मन हर्षित हो उठा ,उसके लिए यह प्रिय विषय था उसने कनखियों से कमलेश्वर की ओर देखा किन्तु उसे गंभीर अपने आप में मग्न पाया।
कमलेश्वर आज तक कभी स्टेज पर नहीं गया था ,हाँ वह दर्शकों की अग्रिम पंक्ति में प्रशंसात्मक दृष्टि से सभी कार्यक्रम देखता था। यह अंतिम पीरियड था। जैसे ही घंटी बजी सभी छात्र छात्राये घर जाने की जल्दी में थे अपने अपने फ़ोल्डर्स समेटने लगे ,पहले छात्राएं बाहर निकली प्रतिदिन की तरह ,फिर छात्र भी बाहर निकलने लगे। अंजुरी दरवाज़े पर ही साइड में खड़ी थी ,उसने "आपके नोट्स" बोलते हुए कमलेश्वर की फाइल लौटा दी। और वह सीधे महाविद्यालय के गेट से बाहर निकल कर घर की ओर चल दी। कमलेश्वर कुछ पल सोचता रहा ,क्या वह नाराज़ थी ?
दूसरे दिन क्लास में वह गंभीर बना रहा ,उसने दिन भर में अंजुरी को नज़र भर कर देखा भी नहीं। अंजुरी ने अभी तक उसके नोट्स भी वापस नहीं किये थे। क्लास में मात्र पांच लडकियां थीं ,वे दूसरी ओर बैठा करतीं थीं। कमलेश्वर ने सोचा घर लौटते समय ज़रूर पूछ लेगा।
उसी समय चपरासी एक सर्क्यूलर लेकर आया। प्रोफेसर श्री महेश जोशी ने उसे पढ़ कर सुनाया। प्रतिवर्ष की तरह महाविद्यालय का वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होने वाला था 26 जनवरी को और जो भी छात्र छात्राएं भाग लेना चाहें वे प्रोफेसर सिंधु वर्गीस से मिलकर कल अपना नाम लिखवा दें। वैसे तो वे हिंदी की प्रोफेसर थीं किन्तु कला व सांस्कृतिक सम्बन्धी सभी कार्यों का संपादन उनके द्वारा ही किया जाता था। सुनकर अंजुरी का मन हर्षित हो उठा ,उसके लिए यह प्रिय विषय था उसने कनखियों से कमलेश्वर की ओर देखा किन्तु उसे गंभीर अपने आप में मग्न पाया।
कमलेश्वर आज तक कभी स्टेज पर नहीं गया था ,हाँ वह दर्शकों की अग्रिम पंक्ति में प्रशंसात्मक दृष्टि से सभी कार्यक्रम देखता था। यह अंतिम पीरियड था। जैसे ही घंटी बजी सभी छात्र छात्राये घर जाने की जल्दी में थे अपने अपने फ़ोल्डर्स समेटने लगे ,पहले छात्राएं बाहर निकली प्रतिदिन की तरह ,फिर छात्र भी बाहर निकलने लगे। अंजुरी दरवाज़े पर ही साइड में खड़ी थी ,उसने "आपके नोट्स" बोलते हुए कमलेश्वर की फाइल लौटा दी। और वह सीधे महाविद्यालय के गेट से बाहर निकल कर घर की ओर चल दी। कमलेश्वर कुछ पल सोचता रहा ,क्या वह नाराज़ थी ?
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