रात कमलेश्वर को देर तक नींद नहीं आयी। वह इसी उहापोह में रहा कि अपना टाइम मैनेजमेंट किस तरह करे कि पढाई पर भी पूरा ध्यान दे सके और अंजुरी भी नाराज़ न हो। उसे लगा कि लाइब्रेरी में बैठ कर पढ़ना ज्यादा अच्छा होगा। वह आश्वस्त हो उठा। सुबह पापा के साथ नाश्ते की टेबल पर कहते हुए उसने हिम्मत कर के पापा से कह ही दिया कि "पापा , कल से मैं लाइब्रेरी में बैठ कर नोट्स तैयार करना चाहता हूँ तो लेट ही आ पाऊँगा। "पापा ने इस बात को सामान्य रूप से लिया ,और सर हिला दिया। उसने राहत की सांस ली और "रामू काका से कहा ," मुझे लंच बॉक्स दे देना मैं देर से आ पाऊँगा "
"जी कमल बाबू कह कर रामू काका किचन में लौट गए और लंच बॉक्स तैयार करने लगे "
कमलेश्वर तैयार होकर अपना फोल्डर लेकर निकला तो रामू काका ने उसे लंच बॉक्स थमा दिया।
वह साइकिल उठा कर चल पड़ा।
अंजुरी उस दिन उत्साहित सी घर पहुंची ,उसने देखा माँ पापा दोनों बैठक खाने में बैठे थे। उसने ख़ुशी ख़ुशी बताया की उसके महा विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम है ,कल मैं भी नाम लिखवाने जा रही हूँ। दोनों खुश हो गए। दोनों ने ही अंजुरी की हर ख़्वाहिश बचपन से पूरी की थी और उसके सर्वतोमुखी विकास के लिए उसे प्रेरित भी किया था।
"माँ ! कल से मैं लेट आउंगी ,शायद रिहर्सल भी चालू हो जाये ,मेरे लिए लंच बॉक्स तैयार करवा देना। "
"ठीक है बेटा ! माँ ने कहा।
रात तीनो डाइनिंग टेबल पर हँसी मजाक करते खाना खाकर अपने अपने बैडरूम में चले गए थे। यह एक सरकारी क्वार्टर था जो काफी बड़ा और कम्प्लीटली फर्निश्ड मिला था तहसीलदार साहब को। उनके पास जीप के साथ ड्राइवर रघुनाथ ,गार्डनर बाबूलाल ,तथा एक रसोइया बिंदादीन भी मिला था इसके अलावा घर की साफ़ सफाई इत्यादि के लिए भी एक व्यक्ति छोटूलाल था।
रात थोड़ी सी पढाई कर के अंजुरी सो गई थी। सुबह जल्दी उठ कर तैयार हुई ,इनदिनों वह अपने आप को आईने में कुछ ज्यादा ही निहारा करती और उसका अपने आप को संवारने में लगने वाला समय भी बढ़ गया था। माँ ने उसे लंच बॉक्स थमा दिया ,माँ भी उसे गौर से देखने लगी,वह माँ थी और माँ अपनी बेटी के अंदर आये परिवर्तन को जल्दी ही भांप जाती है।
"जी कमल बाबू कह कर रामू काका किचन में लौट गए और लंच बॉक्स तैयार करने लगे "
कमलेश्वर तैयार होकर अपना फोल्डर लेकर निकला तो रामू काका ने उसे लंच बॉक्स थमा दिया।
वह साइकिल उठा कर चल पड़ा।
अंजुरी उस दिन उत्साहित सी घर पहुंची ,उसने देखा माँ पापा दोनों बैठक खाने में बैठे थे। उसने ख़ुशी ख़ुशी बताया की उसके महा विद्यालय में सांस्कृतिक कार्यक्रम है ,कल मैं भी नाम लिखवाने जा रही हूँ। दोनों खुश हो गए। दोनों ने ही अंजुरी की हर ख़्वाहिश बचपन से पूरी की थी और उसके सर्वतोमुखी विकास के लिए उसे प्रेरित भी किया था।
"माँ ! कल से मैं लेट आउंगी ,शायद रिहर्सल भी चालू हो जाये ,मेरे लिए लंच बॉक्स तैयार करवा देना। "
"ठीक है बेटा ! माँ ने कहा।
रात तीनो डाइनिंग टेबल पर हँसी मजाक करते खाना खाकर अपने अपने बैडरूम में चले गए थे। यह एक सरकारी क्वार्टर था जो काफी बड़ा और कम्प्लीटली फर्निश्ड मिला था तहसीलदार साहब को। उनके पास जीप के साथ ड्राइवर रघुनाथ ,गार्डनर बाबूलाल ,तथा एक रसोइया बिंदादीन भी मिला था इसके अलावा घर की साफ़ सफाई इत्यादि के लिए भी एक व्यक्ति छोटूलाल था।
रात थोड़ी सी पढाई कर के अंजुरी सो गई थी। सुबह जल्दी उठ कर तैयार हुई ,इनदिनों वह अपने आप को आईने में कुछ ज्यादा ही निहारा करती और उसका अपने आप को संवारने में लगने वाला समय भी बढ़ गया था। माँ ने उसे लंच बॉक्स थमा दिया ,माँ भी उसे गौर से देखने लगी,वह माँ थी और माँ अपनी बेटी के अंदर आये परिवर्तन को जल्दी ही भांप जाती है।
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