तभी प्रोफेसर दिनेश प्रधान की आवाज़ गूँजी ,तहसीलदार साहब ,हमारे मुख्य अतिथि पधार चुके हैं। प्राचार्य महोदय अन्य प्राध्यापकों के साथ गेट पर फूलों का हार पहना कर स्वागत कर रहे हैं। ग्रीनरूम में अंजुरी विशेष रूप से हर्षित हुई और तत्काल विश्वनाथ सिंह के प्रवेश तथा स्वागत की भी सूचना उद्घोषित की गई। इस बार कमलेश्वर के चौंकने की बारी थी।जो की औपचारिक रूप से एक दूसरे का परिचय करवाकर उन विशिष्ठ सीटों पर बिठाये गए थे। बाहर से शोरगुल सुनायी दे रहा था। सभी जनता जनार्दन भी जाजम पर बैठ कर बातचीत करते बंद परदे की ओर देख रहे थे। तब तक सात बज गए और घंटी बज गई। शोर थम गया और पर्दा उठ गया।
सामने सरस्वती वंदना का दृश्य था। चार लड़कियां हाथों से पुष्पवर्षा करती सरस्वती की मूर्ति के सामने थीं। सिंधु मैडम पार्श्व माइक से मधुर स्वर में सरस्वती वंदना गए रहीं थीं।
सरस्वती वंदना समाप्त हुई और तालियों की गड़गड़ाहट के बाद पर्दा गिर गया और अगले कार्यक्रम में सम्राट अशोक का पहला भाग उद्घोषणा हुई और मंच पर सम्राट अशोक और तिष्यरक्षिता को दिखाया गया। तिष्यरक्षिता आईने के सामने श्रृंगार कर रही थी कुछ गुनगुना रही थी। बूढ़े सम्राट अशोक को काउच पर बैठे उंघते ,खांसते दिखाया गया। सम्राट अशोक बने कमलेश्वर की दृष्टि जैसे ही विशिष्ठ दर्शकों की पंक्ति की ओर उठी उसने तहसीलदार साहब के साथ अपने पिता को बैठा पाया और सच में खांसी आ गई और दृश्य बड़ा स्वाभाविक बन गया। तिष्यरक्षिता सम्राट अशोक से दरबार सम्बन्धी किसी मामले में अधिकार पूर्ण स्वर में विचार विमर्श कर रही थी।
दृश्य तालियों की गड़गड़ाहट के साथ समाप्त हुआ। तहसीलदार साहब प्रसन्न थे अपनी बेटी के आत्मविश्वास भरे अभिनय से अभिभूत होकर विश्वनाथसिंह से उसके परिचय के साथ प्रशंसा करने लगे तो विश्वनाथ सिंह भी अपने इकलौते पुत्र को पहली बार स्टेज पर देख कर गर्व अनुभव कर रहे थे ,उन्होंने भी तहसीलदार साहब को अपने पुत्र का परिचय खुश होकर दिया। ----क्रमशः -----
सामने सरस्वती वंदना का दृश्य था। चार लड़कियां हाथों से पुष्पवर्षा करती सरस्वती की मूर्ति के सामने थीं। सिंधु मैडम पार्श्व माइक से मधुर स्वर में सरस्वती वंदना गए रहीं थीं।
सरस्वती वंदना समाप्त हुई और तालियों की गड़गड़ाहट के बाद पर्दा गिर गया और अगले कार्यक्रम में सम्राट अशोक का पहला भाग उद्घोषणा हुई और मंच पर सम्राट अशोक और तिष्यरक्षिता को दिखाया गया। तिष्यरक्षिता आईने के सामने श्रृंगार कर रही थी कुछ गुनगुना रही थी। बूढ़े सम्राट अशोक को काउच पर बैठे उंघते ,खांसते दिखाया गया। सम्राट अशोक बने कमलेश्वर की दृष्टि जैसे ही विशिष्ठ दर्शकों की पंक्ति की ओर उठी उसने तहसीलदार साहब के साथ अपने पिता को बैठा पाया और सच में खांसी आ गई और दृश्य बड़ा स्वाभाविक बन गया। तिष्यरक्षिता सम्राट अशोक से दरबार सम्बन्धी किसी मामले में अधिकार पूर्ण स्वर में विचार विमर्श कर रही थी।
दृश्य तालियों की गड़गड़ाहट के साथ समाप्त हुआ। तहसीलदार साहब प्रसन्न थे अपनी बेटी के आत्मविश्वास भरे अभिनय से अभिभूत होकर विश्वनाथसिंह से उसके परिचय के साथ प्रशंसा करने लगे तो विश्वनाथ सिंह भी अपने इकलौते पुत्र को पहली बार स्टेज पर देख कर गर्व अनुभव कर रहे थे ,उन्होंने भी तहसीलदार साहब को अपने पुत्र का परिचय खुश होकर दिया। ----क्रमशः -----
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