मेरे हिस्से का...
वो जाना चाहता था
और मैने भी नही रोका
वो अपने हिस्से का
बहुत-कुछ साथ ले गया
मैंने अपने हिस्से का
थोड़ा-बहुत रख लिया
वो जाते-जाते ले गया
अपनी सारी बातें,
मैने उसकी
खामोशियाँ रख ली।
वो जाते-जाते ले गया
अपनी बेपरवाह हँसी,
मैने पलकों की
नमी रख ली।
वो जाते-जाते ले गया
अपनी सारी यादें,
मैने उनकी
महक रख ली।
वो जाते-जाते ले गया
दिन-रात का चैन,
मैने सारी
बेचैनियाँ रख ली।
वो जाते-जाते ले गया
हमारे बीच का प्यार,
मैने हमारी
लड़ाइयाँ रख लीं।
वो जाते-जाते ले गया
खिड़की से झाँकती हुई धूप,
मैने रात की
परछाइयाँ रख ली।
आज भी मेरे बचे-कुचे
हिस्से में वो पूरा है,
लेकिन उसके पूरे हिस्से में
मैं कतरा भर नहीं।
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